हाथ में लेंस, सिर पर गोल टोपी और बदन पर गहरे रंग की लंबी सी जैकेट... जासूसों की बात होते ही दिमाग में यही छवि उभरकर सामने आ जाती है. एक ऐसा शख्स जो सबके बीच रहकर भी अपनी पहचान उजागर नहीं होने देता. लेकिन क्या वाकई जासूसों की जिंदगी इतनी ही सीक्रेट होती है. एक डिटेक्टिव अपने काम को अंजाम कैसे देता है और किन बातों का पता लगाने के लिए जासूसों की मदद ली जा सकती है?
इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए aajtak.in ने दिल्ली के दो जासूसों से संपर्क किया और सवाल-जवाब किए. तो आइए जानते हैं कि जासूसों की लाइफ कितनी चैलेंजिंग है. पर सबसे पहले हम उन 3 किस्सों के बारे में बताते हैं, जिन्हें इन जासूसों ने पड़ताल के बाद सॉल्व किया है.
केस नं. 1: रंगेहाथों पकड़ा गया सातवीं शादी करने जा रहा दूल्हा
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार की बेटी प्रांजलि के लिए भोपाल से बेहद शानदार रिश्ता आया. लड़का अभिनव बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था. उसके 40 लाख के पैकेज बारे में सुनकर प्रांजलि के पिता जल्द से जल्द अपनी बेटी की शादी अभिनव के साथ करना चाहते थे. उन्होंने बेंगलुरु में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार को लड़के के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंपा. रिश्तेदार कुछ ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाए, इसलिए प्रांजलि के परिवार ने और ज्यादा इंफॉर्मेशन के लिए दिल्ली की अभिषेक डिटेक्टिव एजेंसी (Abhishek detective Agency) को हायर किया.
डिटेक्टिव अमित प्रताप सिंह ने केस की इंवेस्टिगेशन शुरू की. उन्होंने भोपाल में तैनात अपने साथियों को लड़के की जासूसी पर लगाया. तीन दिन बाद ही जासूसों की टीम को अभिनव के बारे में चौंकाने वाली जानकारियां मिलने लगीं. उन्हें पता चला कि अभिनव पहले से ही शादीशुदा है. भोपाल के विद्या नगर इलाके में उसकी पत्नी किराए के फ्लैट में रहती है.
जासूसों की एक टीम 24 घंटे अभिनव पर निगरानी रखने लगी. तीसरे दिन वह भोपाल से जबलपुर के लिए निकला. जासूसों की टीम भी उसके पीछे लग गई. यहां अभिनव के बारे में एक और हैरान करने वाला खुलासा हुआ. जबलपुर में भी उसने एक लड़की से शादी कर रखी थी. यहां एक दिन रुकने के बाद अभिनव प्रयागराज के लिए निकल गया. उसके पीछा करते हुए, जब टीम भी प्रयागराज पहुंची तो एक नई कहानी सामने आई. यहां अभिनव ने तीसरी पत्नी को किराए के फ्लैट में रखा था.
जासूसों की पड़ताल जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई भोपाल, जबलपुर और प्रयागराज के बाद दिल्ली और बेंगलुरु में भी अभिनव की शादियों की बात सामने आने लगी. इन जानकारियों से प्रांजलि के परिवार के साथ-साथ जासूस भी चौंक गए. आगे पता चला कि प्रांजलि के साथ शादी करने से पहले अभिनव मध्य प्रदेश के गुना में एक और लड़की का जीवन बर्बाद करने जा रहा है. उस लड़की के घरवालों को भी अभिनव की पुरानी 5 शादियों के बारे में कुछ नहीं पता था.
प्रांजलि के परिवार से सलाह-मशविरा करने के बाद डिटेक्टिव्स की टीम ने तय किया कि अभिनव को शादी के मंडप से रंगे-हाथों गिरफ्तार कराया जाएगा. तय प्लान के मुताबिक जासूस, पुलिस के साथ रात दो बजे गुना पहुंचे और लड़की के साथ फेरे लेने की तैयारी कर रहे अभिनव को गिरफ्तार करवा दिया. अभिनव की यह काली करतूत जब उसकी 5 पत्नियों को पता चली तो उनके पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई. सभी ने अदालत का रुख किया. लेकिन पिछले 3 साल से इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है.
केस नं. 2: दामाद की सच्चाई जानकर ससुर को लगा सदमा
'मुझे लगता है कि राहुल का किसी और महिला के साथ अफेयर है, उन्होंने पिछले ढाई साल में मेरे साथ सिर्फ 5 या 6 बार ही शारीरिक संबंध बनाए हैं.' यह बात जब पायल ने अपनी मां को बताई तो वह बेहद परेशान हो उठीं. उन्होंने तुरंत पायल के पिता हवलदार सुनील ठाकुर को इस बारे में बताया. पायल पिछले 15 दिनों से अपने डेढ़ साल के बच्चे विहान के साथ मायके में ही रह रही थी.
अपने एक पुलिसकर्मी दोस्त की सलाह पर सुनील दिल्ली के नेहरू प्लेस इलाके में डीडीएस डिटेक्टिव (DDS Detective) एजेंसी के ऑफिस पहुंचे. यहां उनकी मुलाकात कंपनी के सीईओ डिटेक्टिव संजीव कुमार से हुई. उन्होंने अपनी परेशानी संजीव को बताई और कहा कि वह उस महिला के बारे में जल्द से जल्द जानना चाहते हैं.
कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के बाद डिटेक्टिव संजीव ने 3 जासूसों की एक टीम बनाई. डिटेक्टिव संजीव के कहने पर पायल आधे घंटे के लिए राहुल की कार ले आई. संजीव की टीम ने उसमें जासूसी डिवाइस लगा दिए. कार की स्टीयरिंग में एक ऐसा डिवाइस फिट किया गया, जिससे लोकेशन के साथ कार के अंदर होने वाली बातें भी सुनी जा सकें.
तीनों डिटेक्टिव्स 8 दिनों तक राहुल का पीछा करते रहे. सबूत के तौर पर कई फोटोग्राफ्स क्लिक किए और कार के अंदर होने वाली बातचीत की रिकॉर्डिंग से एक सीडी तैयार की. आठ दिन बाद संजीव ने अपनी फाइनल रिपोर्ट सौंपने के लिए पायल के पिता सुनील को अपने ऑफिस बुलाया. डीडीएस डिटेक्टिव के दफ्तर पहुंचते ही संजीव ने जो रिपोर्ट दी, उसे सुनकर सुनील सन्न रह गए. संजीव ने बताया कि उनका दामाद किसी दूसरी महिला के चक्कर में नहीं है बल्कि, उनका दामाद गे (Gay) है.
संजीव ने राहुल के कई फोटोग्राफ्स दिखाए, जिनमें वह अलग-अलग लड़कों से गले मिल रहा है और उन्हें अपनी कार में बैठाकर कहीं ले जा रहा है. उन्होंने राहुल के 10-12 गे दोस्तों के साथ हर हफ्ते पार्टी करने की बात भी बताई और इससे जुड़ी तस्वीरें दिखाईं. आखिर में उन्होंने 5 मिनट की एक रिकॉर्डिंग सुनाई, जिसे राहुल की कार में लगे जासूसी डिवाइस की मदद से रिकॉर्ड किया गया था. इस क्लिप में राहुल और उसके गे पार्टनर के बीच हुई बातचीत थी.
ऑडियो में राहुल का गे पार्टनर उससे कह रहा था कि अगर उसने (राहुल) किसी और (गे) से संबंध बनाने के बारे में सोचा भी तो उससे (गे पार्टनर) बुरा कोई नहीं होगा. इन सारे सबूतों के साथ गुस्से से तमतमाए सुनील सीधे राहुल के घर पहुंचे. राहुल के सामने आते ही उन्होंने सीधे उसे पीटना शुरू कर दिया. सुनील ने मामले को कोर्ट तक ले जाने की धमकी दी. इससे राहुल और उसका परिवार काफी डर गया, क्योंकि यह बात समाज के सामने आ गई तो उनकी बहुत बदनामी होगी.
दोनों परिवार के लोग बातचीत के लिए एक साथ बैठे. अंत में तय हुआ कि दोनों का तलाक ही सही है. बात सार्वजनिक न करने की शर्त पर राहुल के परिवार ने पायल के पिता सुनील को शादी में खर्च हुए 1 करोड़ रुपए का पेमेंट कर दिया. सुनील ने एक एग्रीमेंट के तहत पायल के बेटे विहान को राहुल के परिवार के हवाले कर दिया. पिता के दबाव के आगे पायल की एक न चली और इस घटना के 1 साल बाद सुनील ने बेटी पायल की शादी कहीं और कर दी. डिटेक्टिव ने बाद में सुनील को यह भी बताया कि राहुल ने गे होने के बाद भी 4-5 बार पायल के साथ बेमन से फॉल्स लिबिडो की गोली खाकर संबंध बनाए थे.
केस नं. 3: आठ महीने तक कर्मचारी बनकर काम करते रहे जासूस
दिल्ली में रहने वाले देश के नामचीन बिजनेसमैन दीपक मल्होत्रा को पिछले 1 साल से बिजनेस में काफी नुकसान हो रहा था. उन्होंने अपनी कंपनी में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से लेकर मैनेजर तक सभी बड़े पदों पर अपने रिश्तेदारों को नियुक्त कर रखा था. इसलिए वो समझ नहीं पा रहे थे कि किस पर शक करें और किससे सवाल-जवाब.
थक-हारकर दीपक ने दगाबाज शख्स को रंगे हाथों पकड़ने की ठानी और दिल्ली के डिटेक्टिव संजीव कुमार को यह कॉन्ट्रैक्ट दे दिया. कॉर्पोरेट फर्जीवाड़े का खुलासा करने के लिए संजीव ने 3 जासूसों को दीपक की कंपनी में नौकरी पर रखवाया. तीनों कर्मचारी 8 महीने तक कंपनी के अलग-अलग विभागों में काम करते हुए फर्जीवाड़े से जुड़ी जानकारी जुटाते रहे.
आखिरकार आठ महीने बाद वह दिन भी आ गया, जब तीनों ने अपनी रिपोर्ट डिटेक्टिव संजीव को दी. संजीव ने दीपक को अपनी रिपोर्ट में जो बताया वह हैरान करने वाला था. दीपक के सगे जीजा और कंपनी के CEO के साथ ही उनके मौसा और कंपनी में डायरेक्टर भी इस फर्जीवाड़े में शामिल थे. दीपक के मामा भी इनके साथ मिलकर उन्हें चूना लगा रहे थे.
आपस में सांठगांठ करके तीनों बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स की डिटेल दीपक के दुश्मनों को देते थे, जिसके बदले उन्हें मोटा पैसा मिलता था. संजीव की बातों पर जब दीपक ने यकीन करने से इनकार किया तो उन्होंने सबूत के तौर पर कई दीपक को कई फोटोग्राफ्स दिखाए. इनमें दीपक के रिश्तेदार दूसरी कंपनियों के अधिकारियों से मिलते नजर आ रहे थे. और आखिर में क्योंकि यह कॉर्पोरेट जासूसी से जुड़ा मुद्दा था, इसलिए इस केस की फीस भी लाखों में थी.
यह तो हुई जासूसी किस्सों की बात. लेकिन इन्हें जानने के बाद अब आपके मन में कई सवाल उठ रहे होंगे. जैसे कि अगर आप डिटेक्टिव हायर कर लें तो किसी के बारे में क्या-क्या जानकारी जुटा सकते हैं और आखिर जासूसों को इस काम के बदले कितने पैसे मिलते हैं या वह अपने काम की फीस कैसे तय करते हैं? या फिर फील्ड पर काम करते समय जासूसों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? इन्हीं सवालों के जवाब हमने सीधे जासूसों से जानिए.
इन्वेस्टिगेशन का कितना चार्ज लेते हैं?
जासूसी के ज्यादातर मामले प्री-मैट्रिमोनियल के ही आते हैं. इन मामलों में सामान्य तौर पर 25 से 30 हजार रुपए लेते हैं, लेकिन अलग-अलग केस में ये फीस घटती-बढ़ती रहती है. फीस की निर्भरता इस बात पर भी होती है कि आखिर आप सामने वाले के बारे में कितनी पड़ताल करवाना चाहते हैं. एक बेहद ही साधारण से प्री-मैट्रिमोनियल केस की इन्वेस्टिगेशन करने में करीब 10 से 15 दिन का समय लगता है. अगर मामला ज्यादा पेचीदा हो तो कभी-कभी एक महीने से ज्यादा भी लग जाते हैं. कॉर्पोरेट इंवेस्टिगेशन के मामलों में फीस लाखों रुपए तक जाती है और समय भी लंबा देना पड़ता है.
क्या-क्या जानकारियां जुटाते हैं?
बात अगर मैट्रिमोनियल इन्वेस्टिगेशन की करें तो सबसे पहले लड़का/लड़की के परिवार और जॉब प्रोफाइल या बिजनेस के बारे में पता किया जाता है. इसके बाद उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड, फिर लोगों के साथ उसका व्यवहार पता करते हैं. इसके बाद सबसे अहम इस बात की पड़ताल की जाती है कि सामने वाला या वाली पहले से शादीशुदा तो नहीं है या उसका किसी के साथ कोई अफेयर तो नहीं चल रहा है. जनरल इन्वेस्टिगेशन में नशे की आदत के बारे में भी पता किया जाता है. इतनी जानकारी मिलने के बाद आप किसी के बारे में आसानी से राय बना लेते हैं.
कैसे दबे-पांव की जाती है पड़ताल?
इन्वेस्टिगेशन के दौरान इस बात का खास खयाल रखा जाता है कि सामने वाले व्यक्ति को पता न चल पाए कि उसकी जासूसी हो रही है. कस्टमर से नाम और पता जैसी सामान्य जानकारी लेने के बाद जासूसों की एक टीम 24 घंटे सब्जेक्ट पर निगरानी रखती है. वो कहां जाता है, क्या खाता है, किससे मिलता है और कब घर लौटता है? इन सारी एक्टिविटीज बारीकी से निगरानी की जाती है. कुछ भी संदिग्ध लगने पर फोटोग्राफ्स लेना और वीडियो रिकॉर्ड करने का काम भी होता है, ताकि कस्टमर के सामने सबूत के तौर पर पेश किए जा सकें.
इन्वेस्टिगेशन से कितना फायदा होता है?
अमीर घरों से रिश्ते और मोटे दहेज के लालच में कई लोग गलत जानकारियां देकर शादी तय कर लेते हैं. ऐसे में जासूसी कराने पर कच्चा चिट्ठा सामने आ जाता है. कई मामलों में लड़का या लड़की पहले से शादीशुदा भी निकलते हैं. यह जानकारी पहले पता चल जाए तो जीवन बर्बाद होने से बच जाता है.कई मामलों में शादी के बाद पति या पत्नी एक दूसरे को धोखा दे रहे होते हैं. इनके बारे में डिटेक्टिव आसानी से पता कर लेते हैं.
जासूसी के काम में कितनी चुनौती?
इस काम में हर मोड़ पर एक नई चुनौती सामने आती रहती है. एक जासूस को हमेशा अपना दिमाग दौड़ाते रहना पड़ता है. इस प्रोफेशन में काम करने का कोई फिक्स तरीका नहीं होता. हर केस में अपनी रणनीति बदलनी पड़ती है.
उदाहरण के तौर पर अगर जासूसों की टीम किसी शख्स के घर से बाहर आने का इंतजार कई दिनों से कर रही है और इसके बाद भी वह घर से बाहर ही न आए. तो ऐसी स्थिति में जासूस सेल्समैन बनकर उसके घर के अंदर जाने की कोशिश भी करते हैं.
किन मामलों के केस सबसे ज्यादा आते हैं?
ज्यादातर केस प्रीम मैट्रिमोनियल या पोस्ट मैट्रिमोनियल इन्वेस्टिगेशन के ही आते हैं. इनमें अधिकर शिकायतकर्ता लड़कियां ही होती हैं. कभी कभार ही ऐसा मामला आता है, जब किसी लड़की के बारे में पड़ताल करने पर कोई बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ जाए.
शादी हो जाने के बाद भी होते हैं खुलासे
कई केस ऐसे भी सामने आते हैं, जिसमें शादी के बाद लड़की को लड़के के बारे में शक होता है और डिटेक्टिव के पड़ताल करने पर उनकी एक और शादी की बात सामने आती है. कई मामलों में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का भी पता चलता है. जासूसी फर्म सबूतों के साथ पूरी जानकारी जुटाकर उसे कस्टमर को प्रोवाइड करती देती है. इसके बाद आगे क्या एक्शन लेना है, इसका फैसला कस्टमर खुद करता है. हालांकि, जासूस अपने कस्टमर को ऐसी स्थिति में गाइड करने का काम भी करते हैं. कई मामलों में तो जासूस खुद कोर्ट में गवाही तक देने जाते हैं.
जासूसी कानूनन कितनी सही?
किसी की जासूसी कराना कानूनन सही है या नहीं, इसके अलग-अलग पैरामीटर होते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर आप किसी महिला को फॉलो कर रहे हैं तो यह भारतीय कानून के सेक्शन 354-डी के तहत गैरकानूनी है. लेकिन इसमें भी दो कंडीशन होती हैं. इस सेक्शन के तहत मुकदमा तब ही बनता है, जब महिला के मना करने के बाद या छेड़खानी करने की नीयत से कोई उसका पीछा कर रहा हो. अगर आदमियों की बात की जाए तो भारतीय कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी आदमी को नुकसान पहुंचाए बिना उसका पीछा करने पर मुकदमा दर्ज कराया जा सके.
कई डिटेक्टिव पुलिस को रिश्वत देकर किसी की भी कॉल डिटेल्स निकलवा लेते हैं. लेकिन यह सीधे तौर पर अपराध की श्रेणी में आता है. इसमें करप्शन और चीटिंग दोनों अपराध जैसे दो अपराध होते हैं. कोई भी जासूस किसी को बंदूक दिखाकर पूछताछ नहीं करता. ये उसकी स्किल्स होती हैं कि बिना सामने वाले को पता चले वह उनकी जानकारी हासिल कर लेता है. एक दूसरे उदाहरण से समझें तो पत्नी से तलाक लेते समय कई लोग अदालत से कहते हैं कि वे बेरोजगार हैं. ऐसी स्थिति में अगर एक जासूस ये पता लगा लेता है कि सामने वाला व्यक्ति कहीं नौकरी करता है तो इससे न सिर्फ जासूस के क्लाइंट को फायदा मिलता है, बल्कि डिटेक्टिव भी कानून की ही मदद कर रहा होता है.
क्या किसी जासूस पर प्राइवेसी के उल्लंघन का केस कर सकते हैं?
अगर कोई कोर्ट में ऐसा केस आता है तो यह सस्टेनेबल नहीं रहेगा. वैसे भी जासूस अपना काम क्लाइंट के लिए करते हैं और किसी भी तरह से अदालत में पार्टी नहीं बनना चाहते. इस बात की पूरी संभावना है कि अगर कोर्ट में ऐसी बातें आती हैं तो अदालत इसे एंटरटेन ही नहीं करेगी.
जासूस कौन से टूल्स का इस्तेमाल करते हैं?
हर जासूस टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल करता है. उसके पास हिडन कैमरे होते हैं. जीपीएस लोकेटर और ट्रैकिंग डिवाइस भी होती हैं. मिनिएचर्स का इस्तेमाल भी किया जाता है, ताकि उन्हें महिलाओं के बैग में लगाकर उसकी मदद से वीडियो रिकॉर्ड किया जा सके. ट्रैकिंग डिवाइस इसलिए जरूरी होता है, क्योंकि हर समय किसी का पीछा नहीं किया जा सकता. शक होने पर कभी-कभी जासूस दूर से ही मॉनिटरिंग करते हैं. इसके अलावा डिटेक्टिव्स के पास कई ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं, जिनका इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जाता है.
डिटेक्टिव एजेंसी कौन खोल सकता है?
अभी तक देश में ऐसा कोई कानून या सर्टिफिकेट नहीं बना है, जो किसी के जासूस होने की पुष्टि कर दे. अगर किसी को लगता है कि वह जासूसी का काम बखूबी कर सकता है तो कोई भी नागरिक डिटेक्टिव एजेंसी खोल सकता है. इसके लिए उसे किसी भी व्यक्ति, संस्था या प्रशासन से अनुमति नहीं लेनी पड़ती.
(नोट: डिटेक्टिव की अपील के बाद स्टोरी में बताई गई घटना के असल किरदारों के नाम बदल दिए गए हैं, ताकि जासूसों के कस्टमर्स की पहचान उजागर न हो)
अक्षय श्रीवास्तव