मुंबई में जन्मे मशहूर लेखक सलमान रुश्दी ने भारत में फ्री स्पीच और प्रेस की आजादी पर चिंता ज़ाहिर की है. ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उन्हें मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत के मौजूदा माहौल को लेकर काफी चिंता है और उनके कई दोस्त, जो पत्रकार, लेखक और प्रोफेसर हैं, वही चिंता महसूस कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि देश में विचारों और इतिहास को नए नजरिए से लिखा जा रहा है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समुदायों को लेकर एक बदलाव वाली सोच सामने आ रही है.
रुश्दी ने इंटरव्यू में यह भी कहा कि भारत में बढ़ते राष्ट्रवादी माहौल का असर अभिव्यक्ति की आजादी पर पड़ रहा है. उनके मुताबिक यह चिंता सालों पहले भी दिखाई दे रही थी, लेकिन अब यह ज्यादा साफ दिखती है.
हालांकि, रुश्दी के इस बयान पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई. कई लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि उनकी किताब ‘सैटेनिक वर्सेज’ को 1988 में कांग्रेस सरकार ने बैन किया था और वह फैसला इस्लामी समूहों के दबाव में लिया गया था.
आलोचकों ने कहा कि जिस सरकार ने उनकी किताब पर रोक लगाई, उस बारे में वह बात कम करते हैं, जबकि मौजूदा सरकार के बारे में ज्यादा टिप्पणी करते हैं.
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क्रिटिक्स ने यह भी कहा कि रुश्दी की किताब 2024 में पाबंदी हटाई गई और यह फैसला मोदी सरकार के दौरान आया. अदालत ने कहा कि बैन का आधिकारिक आदेश ही नहीं मिल पाया, इसलिए वह रोक हटानी पड़ी.
कुछ लोगों ने रुश्दी पर दोहरे मानदंड का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें अपनी जिंदगी पर सबसे बड़ा खतरा एक इस्लामी फतवे से मिला, लेकिन वे हिंदू राष्ट्रवाद पर ज्यादा बोलते हैं. कई यूजर्स ने कहा कि उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि हमला करने वाला व्यक्ति भी धार्मिक कट्टरता से प्रेरित था.
इन आलोचनाओं के बीच रुश्दी के समर्थकों का कहना है कि भारत में मौजूदा माहौल में बिना बैन लगाए भी फ्री स्पीच पर दबाव महसूस किया जा रहा है और कई लोग खुलकर बोलने में सहज नहीं हैं.
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