बंटवारे के बाद जो मुस्लिम पाकिस्तान चले गए, उन्हें वहां न इज्जत मिली, न प्रतिष्ठा: भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में कहा कि बंटवारे के जो मुस्लिम पाकिस्तान चले गए, उन्हें वहां न तो सम्मान मिला और न ही प्रतिष्ठा. भागवत ने ये भी कहा कि हम सभी के पूर्वज एक ही हैं.

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फाइल फोटो-PTI) आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फाइल फोटो-PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST
  • भागवत बोले- हमारे पूर्वज एक ही
  • कहा, हमें अंतर क्यों करना चाहिए?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने मंगलवार एक कार्यक्रम में कहा कि जो मुसलमान पाकिस्तान (Pakistan) चले गए, उन्हें न वहां सम्मान मिला और न ही प्रतिष्ठा. जबकि यहां रहने वाले मुसलमान भारत के हैं, भले ही उनकी पूजा पद्धति कुछ भी हो.

भागवत ने इस दौरान एक बार फिर से हिंदू और मुस्लिम के पूर्वज एक ही होने की बात दोहराते हुए कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक हैं और अगर ये विचार स्वतंत्रता आंदोलन के समय जारी रहता तो भारत के बंटवारे को रोका जा सकता था.

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मोहन भागवत ने ये बातें वीर सावरकर पर लिखी एक किताब के विमोचन के दौरान कही. उन्होंने कहा कि भारत की हिंदुत्व और सनातन संस्कृति उदार है. भागवत ने कहा, 'हमें ये संस्कृति विरासत में मिली है और किसी को भी उसकी पूजा पद्धति के तरीकों पर अलग नहीं किया जा सकता. हमारे (हिंदू और मुस्लिम) पूर्वज एक हैं और अगर ये विचार स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी कायम होता तो बंटवारे को रोकने का एक रास्ता होता.'

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भागवत ने कहा कि सावरकर का हिंदुत्व अखंड भारत के बारे में था, जहां किसी को भी उसके धर्म, जाति और स्टेटस के आधार पर अलग नहीं समझा जाता और ये राष्ट्र प्रथम के विचार पर आधारित था. उन्होंने कहा, 'भारतीय समाज में कई लोगों ने हिंदुत्व और एकता के बारे में बात की, लेकिन सावरकर ही थे जिन्होंने इसे पुरजोर तरीके से कहा और अब सालों बाद ऐसा महसूस किया जा रहा है कि अगर सभी ने पुरजोर तरीके से बात की होती तो कोई विभाजन नहीं होता.'

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उन्होंने कहा, 'जो मुस्लिम बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे, उनकी वहां कोई प्रतिष्ठा नहीं है क्योंकि वो भारत के हैं और इसे बदला नहीं जा सकता. हमारे पूर्वज एक ही हैं, सिर्फ हमारी पूजा पद्धति अलग है और हमें सनातन धर्म की अपनी संस्कृति पर गर्व है.' 

उन्होंने कहा कि चाहे सावरकर का हिंदुत्व हो या विवेकानंद का हिंदुत्व, सभी एक ही हैं क्योंकि वो सभी एक ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करते हैं जहां किसी के साथ उसकी विचारधारा के अधार पर भेदभाव नहीं किया जाता. उन्होंने कहा, 'हमें अंतर क्यों करना चाहिए? हम एक ही देश में पैदा हुए हैं. हमने इसके लिए लड़ाई लड़ी है.' 

 

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