'हिंदू राष्ट्र का विचार बहिष्कार नहीं, साझा सभ्यता की विरासत का', मुखपत्र के संपादक ने बताया RSS का दर्शन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एडिटर प्रफुल्ल केतकर ने हिंदू राष्ट्र को लेकर संघ का दर्शन बताया है. उन्होंने कहा है कि हिंदू राष्ट्र का विचार बहिष्कार का नहीं, साझा सभ्यता की विरासत का विचार है.

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उपेक्षा और नफरत से गुजर स्वीकृति तक पहुंचा संंघ- प्रफुल्ल केतकर (Photo: ITG) उपेक्षा और नफरत से गुजर स्वीकृति तक पहुंचा संंघ- प्रफुल्ल केतकर (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:27 PM IST

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव मुंबई के मंच पर शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ साल पूरे होने को लेकर आयोजित सेशन में संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एडिटर और 'द आरएसएस सेंचुरीः आइडियोलॉजी, आइडेंटिटी एंड इंडियाज डेस्टिनी' पुस्तक के लेखक प्रफुल्ल केतकर और लेखक तुषार गांधी शामिल हुए. प्रफुल्ल केतकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दर्शन को इस विचार पर आधारित बताया कि 'हिंदू' भारत की यूनिक सिविलाइजेशनल ताकत को परिभाषित करता है.

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उन्होंने यह भी कहा कि सभ्यता के लिहाज से देखें तो आध्यात्मिक लोकतंत्र भारत की यूएसपी है. प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि आपको अपना ईश्वर चुनने का अधिकार है. आपके पास एक गांधी हैं, जो नास्तिक होने का दावा कर सकते हैं और हिंदू हो सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि आपके पास एक और गांधी हैं, जिन्होंने कहा कि पूरी तरह धार्मिक हूं और हिंदू हो सकता है.

प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि एकेश्वरवादी हिंदू हो सकता है, बहुदेववादी हिंदू हो सकता है और एक सर्वेश्वरवादी हिंदू हो सकता है. ऐसी आजादी केवल इसी जमीन पर दी गई है और यही यहां की यूएसपी भी है. संघ के सफर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संघ उपेक्षा, नफरत के दौर से गुजरते हुए अब स्वीकृति तक पहुंचा है. केतकर ने कहा कि शुरुआती वर्षों में संघ का मजाक बना और आज इसक83 हजार से अधिक शाखाएं और 32 इंस्पायर्ड संगठन हैं.

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उन्होंने कहा कि संघ को आप पसंद कर सकते हैं, नापसंद कर सकते हैं, लेकिन इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते. केतकर ने हिंदू राष्ट्र के विचार को लेकर कहा कि संघ का दर्शन यह मानता है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति सभ्यता के लिहाज से हिंदू है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानता हो. उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का विचार बहिष्कार का नहीं, साझा सभ्यता की विरासत की स्वीकृति का विचार है. हिंदू राष्ट्र कोई बनाने की चीज नहीं, स्वीकार करने की चीज है और इस एका का निर्माण ही भारत का विचार है.

आरएसएस नफरत और विभाजन के दर्शन का प्रतीक- तुषार गांधी

राष्ट्रपति महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने कहा कि आरएसएस नफरत, विभाजन और हत्या के दर्शन का प्रतीक है, इसे लेकर मेरे मन में कोई संदेह नहीं है. उन्होंने कहा कि यह विचारधारा आजादी के बाद से अब तक चली आ रही है. तुषार गांधी ने कहा कि भारत में आज मोहनदास करमचंद गांधी के मुकाबले नाथूराम गोडसे की आवाज की गूंज अधिक है, अधिक सहानुभूति रखती है. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे विचारक भी गांधी जितने पीड़ित थे, जबकि ये 1948 नहीं है.

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उन्होंने ऑर्गनाइजर में छपे पुराने लेख और गुरु गोलवलकर जैसे संघ नेताओं के भाषण कोट करते हुए कहा कि विभाजनकारी बयानबाजियां इस संगठन (आरएसएस) के इतिहास का हिस्सा रही हैं. तुषार गांधी ने कहा कि दुर्भाग्य से आज का भारत नाथूराम गोडसे को खोज रहा है और उसी विचारधारा को अपना रहा है. यह हम गांधीवादी लोगों की विफलता है. उन्होंने कहा कि जो संगठन नफरत, विभाजन और हत्या की बुनियाद पर पनपता है, उसे उसके वास्तविक रूप में नकारा नहीं जा सकता.

गांधी की हत्या को गोलवलकर ने बताया था घृणित- केतकर

तुषार गांधी की बात के जवाब में केतकर ने जोर देकर कहा कि गोलवलकर ने खुद गांधी की हत्या को घृणित कृत्य बताया था और कहा था कि यह हमारे समाज पर कलंक है. उन्होंने यह भी कहा कि संघ के कई आलोचक आरोपी संगठन से अधिक नफरत और अधिक गैरगांधीवादी भाषा फैलाते हैं. केतकर ने महात्मा गांधी की ओर से रामराज्य जैसे शब्दों के इस्तेमाल और गोरक्षा की वकालत किए जाने का उल्लेख किया और सवालिया अंदाज में कहा कि क्या महात्मा गांधी भी सांप्रदायिक थे?

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तुषार गांधी ने इसके जवाब में कहा कि महात्मा गांधी का रामराज्य कानून के शासन और समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति के लिए भी समानता के संबंध में था, न कि आरएसएस के बहिष्कारवादी दृष्टिकोण के संदर्भ में. उन्होंने केतकर से बापू का उल्लेख करते समय शब्दों के चयन में अधिक सतर्कता बरतने का आग्रह किया और कहा कि महात्मा गांधी के लेखन में गहराई थी. कुल मिलाकर, संघ के सौ साल की यात्रा पर प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि यह समावेशी विचार के साथ एकीकृत सभ्यता के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं, तुषार गांधी ने कहा कि यह नफरत की बुनियाद पर फला-फूला है.

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