संघ के 100 साल: RSS के भगीरथ, लुप्त सरस्वती की खोज में इन दो स्वयंसेवकों का रहा बड़ा योगदान

सरस्वती का उदगम, उसका प्रवाह भारतीय जनमानस को आकर्षित करता रहा है. कुछ स्वयंसेवकों ने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित पवित्र सरस्वती नदी की खोज में दिलचस्पी दिखाई. जिस सरस्वती को संगम में लुप्त बताया जाता रहा है, वो उसके प्रवाह का रास्ता जानना चाहते थे. इस काम में मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले और दर्शन लाल जैन ने भगीरथ कोशिश की. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.

Advertisement
सरस्वती नदी को वैदिक सभ्यता के काल का माना जाता है. (Photo: AI generated) सरस्वती नदी को वैदिक सभ्यता के काल का माना जाता है. (Photo: AI generated)

विष्णु शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:58 AM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्षों के इतिहास में हजारों ऐसे मेधावी प्रचारक व स्वयंसेवक संगठन जुड़े, जिनकी मेधा को बड़े अभियान नहीं मिलते तो शायद उनकी प्रतिभा के साथ अन्याय होता. ऐसे में सरसंघचालकों के पास हमेशा से ये जिम्मेदारी रही कि बड़े अभियानों, संकल्पों के लिए एकनाथ रानाडे जैसे मेधावी कर्मवीर ढूंढना और कभी कभी मेधावियों के लिए उतने बड़े संकल्प तय करना.

Advertisement

कुछ स्वयंसेवक ऐसे भी जुड़े जो इतिहास व पुरातत्व के क्षेत्र में काम करना चाहते थे. उनको ये तो समझ आ गया था कि लगातार उनके इतिहास को तोड़मरोड़ के एजेंडे के तहत पढ़ाया गया है, लेकिन उनके प्राचानी ग्रंथों व शास्त्रों में कुछ और ही वर्णित है. उनमें भीमबेटका गुफाएं ढूंढने वाले विष्णु वाकणकर जैसे विद्वान भी थे.

कुछ स्वयंसेवकों ने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित पवित्र सरस्वती नदी की खोज में दिलचस्पी दिखाई. जिस सरस्वती को संगम में लुप्त बताया जाता रहा है, वो उसके प्रवाह का रास्ता जानना चाहते थे. इसके लिए कई प्रचारकों, स्वयंसेवकों ने अभियान चलाकर काम किया और उनकी मेहनत काफी हद तक रंग लाई भी. ऐसे दो संघ स्वयंसेवक थे मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले और दर्शन लाल जैन. चूंकि लगातार ये अभियान चलाया जाता रहा था कि हिंदू प्राचीन ग्रंथों में वर्णित कई तथ्य कपोल कल्पनाएं हैं, जैसे सरस्वती नदी, जो कहीं थी ही नहीं.
 
मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले के कई अभियानों में ‘सरस्वती अभियान’ अहम था

Advertisement

यूं तो मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले यानी मोरोपंत पिंगले को राम मंदिर आंदोलन के उस चेहरे के तौर पर जाना जाता है, जिसको संघ प्रमुख बालासाहब देवरस ने मंदिर आंदोलन से पहले के कई अभियानों, यात्राओं की जिम्मेदारी सौंपी और उनके ये सफल अभियान ही राम मंदिर आंदोलन का माहौल तैयार करने की नींव बन गए थे.

मोरोपंत पिंगले हाल ही में इस वजह से चर्चा में आए थे क्योंकि लोग संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान का उदाहरण देने लगे थे कि उन्होंने 75 साल में संन्यास लेने का बयान दिया है. तब संघ प्रमुख भागवत ने स्पष्ट किया कि ये बयान मेरा नहीं बल्कि मोरोपंत पिंगले का था. दरअसल मोरोपंत पिंगले पर एक किताब के विमोचन के दौरान मोहन भागवत ने वृंदावन में हुई आरएसएस की एक पुरानी बैठक का किस्सा सुनाया. भागवत के अनुसार बैठक के दौरान 75 साल पूरे होने पर मोरोपंत पिंगले को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया था. इस अवसर पर पिंगले ने कहा कि '75 वर्ष की शॉल पहनने का अर्थ मैं जानता हूँ... इसका मतलब है कि अब आपकी उम्र हो गई है, आप साइड में हो जाओ... अब और बाकी लोगों को काम करने दो', संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जब ये घटना लोगों को सुनाई तो लोगों ने इसे उनकी निजी राय मान लिया था.

Advertisement

मोरोपंत जबलपुर में पैदा हुए थे, 1930 में स्वयंसेवक बने, 1941 में नागपुर के मौरिस कॉलेज से जब कला स्नातक बने, तब उन्हें प्रचारक बनने के योग्य माना गया. पहली जिम्मेदारी मिली खंडवा (एमपी) में, दायित्व सह विभाग प्रचारक का था. उसके बाद उनका नया दायित्व था महाराष्ट्र के सह प्रांत प्रचारक का. संघ के साथ साथ काम करते हुए उन्हें अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख, बौद्धिक प्रमुख, प्रचारक प्रमुख, सह सरकार्यवाह जैसे दायित्व मिले. अंतिम समय में वे संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से सदस्य रहे. लेकिन उनको जाना जाता है उनके अभियानों से. इतिहास सहेजने को लेकर उनकी रुचि शुरूआत से ही दिखती थी. इस दिशा में उन्होंने पहला बड़ा अभियान लिया बाबा साहेब आप्टे स्मारक समिति की स्थापना का. 1973 में नागपुर में स्थापित ये स्मारक समिति ही संघ की ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’ की नींव बनी. इसे स्मारक समिति के अंतर्गत ही शुरू किया गया था, आज ये वटवृक्ष बन चुकी है.

उनको छत्रपति शिवाजी की 300वीं पुण्यतिथि पर रायगढ़ में एक भव्य कार्यक्रम करवाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी, गांधीजी की हत्या के बाद उन्मादी भीड़ ने डॉ हेडगेवार की समाधि को तोड़ फोड़ दिया गया था, उसके पुर्ननिर्माण में भी उनका योगदान रहा. इतना ही नहीं, आन्ध्रप्रदेश-स्थित डा॰ हेडगेवार जी के पैतृक गांव कंदकूर्ति में उनके परिवार के कुलदेवता के मन्दिर को भी भव्य रूप दिया. पारडी (गुजरात) के प्रख्यात वैदिक विद्वान् पं॰ श्रीपाद दामोदर सातवलेकर के ‘स्वाध्याय मण्डल’ के कार्य की पुर्नस्थापना की. महाराष्ट्र के वनवासी-क्षेत्र में उन्होंने विभिन्न सेवा-कार्य, जैसे- ‘देवबोध’ (ठाणे का सेवा-प्रकल्प), कलवा-स्थित कुष्ठ-रोग निर्मूलन-प्रकल्प आदि शुरू किये, मोरोपन्त पिंगले ‘साप्ताहिक विवेक’ (मुम्बई) की विस्तार-योजना के जनक भी थे तथा ‘नारायण हरि पालकर-स्मृति समिति’ (रुग्ण सेवा-प्रकल्प, मुम्बई) की प्रेरणा भी उन्होंने ही दी थी. गोरक्षा, गो-अनुसन्धान एवं वैदिक गणित के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी और इसके संवर्धन के लिए वह आजीवन जुटे रहे. उन्होंने ‘लघु उद्योग भारती’ की भी स्थापना की थी. सन् 1975-‘77 के आपातकाल के दौरान उन्होंने 19 महीने भूमिगत रहकर अनेक योजनाओं के द्वारा आन्दोलन को सशक्त बनाया.

Advertisement

आपातकाल में भूमिगत रहकर तानाशाही के विरुद्ध आंदोलन चलाने में मोरोपंत की बहुत बड़ी भूमिका थी. 1981 में मीनाक्षीपुरम् के विशाल धर्मांतरण कांड के बाद संघ ने हिन्दू जागरण की जो अनेक स्तरीय योजनाएं बनाईं, बाला साहब देवरस के निर्देशों के बाद उनके मुख्य योजनाकार वही थे. इसके अन्तर्गत 'संस्कृति रक्षा निधि' का संग्रह तथा 'एकात्मता रथ यात्राओं' का सफल आयोजन हुआ. 'विश्व हिन्दू परिषद' के मार्गदर्शक होने के नाते उन्होंने 'श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन' को हिन्दू जागरण का मंत्र बना दिया. श्री रामजानकी रथ यात्रा, ताला खुलना, श्रीराम शिला पूजन, शिलान्यास, श्रीराम ज्योति, पादुका पूजन आदि कार्यक्रमों ने देश में धूम मचा दी. छह दिसम्बर, 1992 की कारसेवा से पहले देश में जो माहौल बना, उनकी भी बड़ी भूमिका थी.
 
गोवंश की रक्षा की जिम्मेदारी बाजार और किसान पर

गोवंश रक्षा के क्षेत्र में भी उनकी सोच बिल्कुल अनूठी थी. उनका मत था गाय की रक्षा किसान के घर में ही हो सकती है, गोशाला या पिंजरे में नहीं. वे मानते थे कि गोबर एवं गोमूत्र भी गोदुग्ध जैसा ही उपयोगी पदार्थ है. यदि किसान को इनका मूल्य मिलने लगे, तो फिर कोई गोवंश नहीं बेचेगा. उनकी प्रेरणा से गोबर और गोमूत्र से साबुन, तेल, मंजन, कीटनाशक, फिनाइल, शैंपू, टाइल्स, मच्छर क्वाइल, दवाएं आदि सैकड़ों प्रकार के निर्माण प्रारम्भ हुए. ये मानव, पशु और खेती के लिए बहुउपयोगी हैं. अब तो गोबर और गोमूत्र से लगातार 24 घंटे जलने वाले बल्ब का भी सफल प्रयोग हो चुका है. देश भर में आज अनेक गोशालाओं में तमाम स्वयंसेवक छोटी छोटी कम्पनियां बनाकर गाय के पंचगव्य से ढेरों उत्पाद बनाकर लाखों गोवंश को हर साल कटने से बचा रहे हैं तो इसके लिए बड़ी प्रेरणा मोरोपंत पिंगले से ही मिली थी.
 
वैदिक सभ्यता की सरस्वती नदी की खोज में जुटे

Advertisement

सन् 1983 में मोरोपन्त पिंगले ने लुप्त वैदिक सरस्वती नदी के अनुसन्धान के लिए एक अभियान शुरू किया. उन्होंने हरियाणा में सरस्वती नदी के उद्गम-स्थल से चलते हुए राजस्थान, बहावलपुर तथा गुजरात की कच्छ की खाड़ी तक विद्वानों की टोली (पुरातत्त्ववेत्ता व इतिहासकारों) के साथ एक लम्बी शोधपरक यात्रा की. इस शोध-अभियान से यह सिद्ध हो गया कि सारस्वत सभ्यता की आधार सरस्वती नदी किन्हीं प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो गई थी. शोध में सरस्वती-सभ्यता के प्राचीन अवशेष मिले. इस योजना ने मोरोपन्त के निर्देशन में सरस्वती के विलुप्त मार्ग की उपस्थिति को स्थापित किया और भारतीय-इतिहास को एक नया आयाम दिया जिससे उन सभी मान्यताओं को गलत साबित करने में सहायता मिली जो लगातार भारतीय प्राचीन ग्रंथों को कपोल कल्पित बताते आए थे. आज शायद ही कोई आपको मिले जो ये कहे कि सरस्वती नदी की कहानी झूठी है. ऐसे में मोरोपंत पिंगले का ये योगदान हमेशा बना रहेगा.

दर्शन लाल जैन का भी था सरस्वती की खोज में अहम योगदान

2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद जब नरेंद्र मोदी यमुनानगर के दौरे पर गए, तो नई पीढ़ी के युवा उस वक्त बड़े चौंके, जब उन्होंने देखा कि मंच पर मोदी सबके सामने एक स्थानीय वृद्ध के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले रहे थे. उनका नाम था दर्शन लाल जैन. जब अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे, तब उन्हें राज्यपाल बनने के लिए पूछा था, लेकिन विनम्रता से दर्शन लाल जैन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. उनका सक्रिय राजनीति में शामिल होने की ओर कभी झुकाव नहीं रहा. 1954 में जनसंघ द्वारा एमएलसी सुनिश्चित सीट के लिए मिले प्रस्ताव को उन्होंने अस्वीकार कर दिया था. दर्शन लाल जैन दशकों तक हरियाणा में प्रांत संघचालक के पद पर रहे.

Advertisement

RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी 
 
पद्मभूषण से सम्मानित समाजसेवी दर्शन लाल जैन, संघ और सामाजिक जीवन में 'बाबूजी' के नाम से ज्यादा चर्चित थे. इनका जन्म 12 दिसंबर 1927 को हरियाणा के जगाधरी में एक धार्मिक एवं उद्योगपति जैन परिवार में हुआ था. बचपन से ही उनमें राष्ट्रभक्ति का भाव सहज रूप से अंकुरित था. इसी सहज भाव और गुणों ने आगे चलकर उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ दिया. उन्होंने उच्च शिक्षा राजकीय उच्च विद्यालय, जगाधरी से किया था. स्नातक की उपाधि पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की. छात्र जीवन में ही 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लेकर उन्होंने समाज और देश के प्रति भावों को दर्शा दे दिया था. 1944 में वे संघ के संपर्क में आए. वर्ष 1946 में उन्होंने संघ के प्रचारक जीवन को अपनाने का संकल्प किया.
 
सरस्वती उपासकों की सेवा और सरस्वती की खोज

स्वास्थ्य खराब रहने की वजह से 1952 में उन्हें फिर से घर वापस लौटना पड़ा. परन्तु संघ से उन्होंने नाता नहीं तोड़ा. 25 जून 1975 को घोषित आपातकाल के दौरान उन्हें भी जेल यात्रा करनी पड़ी. उनके जीवन में शायद दो ही उद्देश्य थे, सरस्वती के उपासकों की सेवा और सरस्वती नदी की खोज. जीवन भर वे सामाजिक उत्थान और शिक्षण संस्थानों के विस्तार के लिए समर्पित रहे. आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और युवतियों की शिक्षा को उन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया. हरियाणा में सरस्वती विद्या मंदिर जगाधरी, डीएवी कॉलेज फॉर गर्ल्स (यमुनानगर), भारत विकास परिषद, विवेकानंद रॉक मेमोरियल सोसाइटी, वनवासी कल्याण आश्रम हरियाणा, हिंदू शिक्षा समिति हरियाणा, गीता निकेतन आवासीय विद्यालय (कुरुक्षेत्र) तथा नंदलाल गीता विद्या मंदिर (अंबाला) सहित अनेक शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना उन्होंने की. ये शिक्षा की देवी सरस्वती के चरणों में उनका योगदान था.

Advertisement

लेकिन उनको पद्मभूषण सम्मान मिला, उनके नाम मनोहर लाल सरकार ने एक सम्मान की हरियाणा में शुरूआत की तो इसकी वजह थी सरस्वती नदी की खोज में उनका अहम योगदान. माना जाता है कि दर्शन लाल जैन के भरसक प्रयासों से ही विलुप्त सरस्वती नदी का प्रवाह पुनः सम्भव हो सका. उन्हें सरस्वती नदी के पुनर्प्रवाह के लिए बनाई गई समिति का संस्थापक अध्यक्ष बनाया गया. दो दशकों तक अथक परिश्रम करते हुए सरस्वती के राजस्व अभिलेखों, प्राचीन संदर्भों और भूगर्भीय साक्ष्यों का संकलन करते रहे. उन्होंने इस दौरान सरस्वती नदी के राजस्व रिकार्ड को एकत्र करने में काफी योगदान दिया. उनकी कठिन मेहनत, परिश्रम और उनके प्रयासों से सरस्वती नदी की खुदाई शुरू हुई. उनकी सूक्ष्म पड़ताल और अटूट निष्ठा के फलस्वरूप आदि बद्री और यमुनानगर के मुगलवाली गांव में सरस्वती की पुराधारा खोजी गई तथा इसके पुनर्जीवन का कार्य प्रारंभ हुआ. उनके सतत प्रयासों से ही 21 अप्रैल 2014 को रूला खेड़ी गांव में सरस्वती की प्रथम धारा पुनः प्रवाहित हुई.

वर्तमान में हरियाणा सरकार इसी परियोजना को आगे बढ़ा रही है. दर्शन लाल जैन ने पानीपत में शहीद स्मारक निर्माण के लिए लंबा संघर्ष किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस दिशा में निर्णायक कदम उठाने हेतु प्रेरित किया. इनके प्रयास से ये कार्य भी सफल हो पाया. 17 मार्च 2019 को नई दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया. 8 फरवरी 2021 को 94 वर्ष की आयु में हरियाणा के यमुनानगर में उनका निधन हो गया. उन्हें हरियाणा में ‘कलयुग का भागीरथ’ भी कहा जाता है.

पिछली कहानी: जब संघ के बैंड ‘घोष’ को शादियों में किराये पर चाहते थे लोग

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement