लक्ष कंठ गीता पाठ, कनक कवच दान और सुवर्ण मंडप का उद्घाटन... उडुपी के कृष्ण मठ पहुंचे पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 नवंबर को कर्नाटक के उडुपी स्थित श्रीकृष्ण मठ पहुंचे हैं. यहां वे लक्ष कंठ गीता पारायण कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. इस कार्यक्रम में एक लाख प्रतिभागी श्रीमद्भगवद्गीता का सामूहिक पाठ कर रहे हैं.

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उडुपी (कर्नाटक) स्थित श्रीकृष्ण मठ में लक्ष कंठ गीता पारायण उत्सव में शामिल होंगे पीएम मोदी उडुपी (कर्नाटक) स्थित श्रीकृष्ण मठ में लक्ष कंठ गीता पारायण उत्सव में शामिल होंगे पीएम मोदी

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:20 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को उडुपी के ऐतिहासिक श्रीकृष्ण मठ पहुंच रहे हैं. यहां पीएम मोदी का पारंपरिक स्वागत किया जाएगा. इस मौके पर पीएम प्रसिद्ध ‘लक्ष कंठ गीता पारायण’ (एक लाख लोगों द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता का सामूहिक पाठ) कार्यक्रम में भी हिस्सा लेंगे.

जानकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी 28 नवंबर को कर्नाटक और गोवा का दौरा करेंगे. सुबह लगभग 11:30 बजे प्रधानमंत्री कर्नाटक के उडुपी स्थित श्री कृष्ण मठ के दर्शन करेंगे. इसके बाद, वे गोवा जाएंगे, जहां दोपहर लगभग 3:15 बजे वे श्री संस्थान गोकर्ण पर्तगाली जीवोत्तम मठ के 550वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सार्ध पंचशतामनोत्सव’ में भाग लेंगे.

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कर्नाटक के उडुपी में पीएम मोदी का रोडशो

लक्षकंठ गीता पारायण 
प्रधानमंत्री उडुपी में श्री कृष्ण मठ में दर्शन के लिए पहुंचे हैं. यहां लक्ष कंठ गीता पारायण कार्यक्रम में भी शामिल हो रहे हैं. इसमें छात्रों, भिक्षुओं, विद्वानों और विभिन्न क्षेत्रों के नागरिकों सहित एक लाख प्रतिभागी भाग ले रहे हैं जो एक स्वर में श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ कर रहे हैं.

वहीं इस मौके पर पीएम मोदी कृष्ण गर्भगृह के सामने स्थित सुवर्ण तीर्थ मंडप का भी उद्घाटन करने वाले हैं और पवित्र कनकना किंदी के लिए कनक कवच (स्वर्ण कवच) समर्पित करेंगे. कनकना किंदी एक पवित्र द्वार है. ऐसा माना जाता है कि संत कनकदास ने इसी द्वार से भगवान कृष्ण के दिव्य दर्शन किए थे. उडुपी स्थित श्री कृष्ण मठ की स्थापना 800 वर्ष पूर्व वेदांत के द्वैत दर्शन के संस्थापक श्री माधवाचार्य ने की थी.

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कनकदास और ‘कनकना किंदि’ की ऐतिहासिक कथा

16वीं शताब्दी के संत-कवि कनकदास को निम्न जाति के कारण मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था. उन्होंने बाहर बैठकर भगवान के प्रति गहरी भक्ति से प्रार्थना की. कहा जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण की प्रतिमा भीतर से मुड़कर उनकी ओर देखने लगी.दीवार में एक दरार बनी, जिसके माध्यम से कनकदास भगवान के दर्शन कर सके. बाद में इसे कनकना किंदी नामक खिड़की का रूप दिया गया.

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