प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि भारत खुद को "विश्वमित्र" के रूप में देखता है और दुनिया इस देश को मित्र कहती है. कान्हा शांति वनम में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि देश को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, जब अतीत में इसे गुलाम बनाने वालों ने इसकी मूल शक्ति- योग, ज्ञान और आयुर्वेद जैसी परंपराओं पर हमला किया. उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि गुलामी जब भी और जहां भी आई, उस समाज की मूल ताकत को निशाना बनाया गया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत को गुलाम बनाने वालों ने योग और आयुर्वेद जैसी इसकी परंपराओं पर हमला किया. ऐसी कई महत्वपूर्ण परंपराएं थीं और उन पर हमला किया गया. इससे देश को भारी नुकसान हुआ. लेकिन समय बदल रहा है, भारत भी बदल रहा है. भारतीय जो भी निर्णय लेंगे, हम जो काम करेंगे वह आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तय करेगा.
उन्होंने इस साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से की गई 'पंच प्रण' घोषणा को याद किया- एक विकसित भारत के लिए संकल्प, औपनिवेशिक मानसिकता के किसी भी निशान को हटाना, हमारी विरासत पर गर्व करना, एकता का निर्माण करना और कर्तव्यों को पूरा करना.
पीएम ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में सरकार ने देश की सांस्कृतिक विरासत को हर तरह से सशक्त बनाने का प्रयास किया है, चाहे वह योग या आयुर्वेद के संबंध में हो, आज भारत की चर्चा ज्ञान केंद्र के रूप में की जा रही है. उन्होंने याद दिलाया कि देश के प्रयासों के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया. एक विकसित भारत सुनिश्चित करने के लिए, हमें चार स्तंभों, 'नारी शक्ति', 'युवा शक्ति', 'श्रम शक्ति' और 'उद्यम शक्ति', अर्थात् महिलाओं, युवाओं, श्रमिकों और उद्यमों के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.
पीएम मोदी ने कहा कि गरीब, मछुआरे, किसान, छात्र, युवा... उनका सशक्तिकरण समय की मांग है और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. पहले लोगों को लाभ प्राप्त करने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते थे, लेकिन आज सरकार लाभार्थियों तक पहुंच रही है, एक समय था जब नागरिक सरकार के दरवाजे खटखटाते थे. आज, हम आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं.
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