जनरल जिया की सस्ती फोटो कॉपी... आसिम मुनीर की 'टेरर डॉक्ट्रिन' पाकिस्तान को किन संकटों की ओर ले जा रही है

पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल जिया-उल-हक और जनरल असीम मुनीर की नीतियों में कई समानताएं देखी जा सकती हैं. ये समानताएं दोनों जनरलों की सैन्य और राजनीतिक रणनीतियों, धार्मिक कट्टरता, और भारत-विरोधी दृष्टिकोण में दिखती हैं. 

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जनरल असीम मुनीर और पाक के पूर्व तानाशाह जनरल जिया उल हक. जनरल असीम मुनीर और पाक के पूर्व तानाशाह जनरल जिया उल हक.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:52 PM IST

"संविधान क्या है? यह 12 या 10 पन्नों वाली एक किताब है, मैं उन्हें फाड़कर कह सकता हूं कि कल हम एक अलग व्यवस्था के तहत रहेंगे. आज मैं लोगों को जहां ले जाउंगा वे वहां रहेंगे. सभी शक्तिशाली सियासतदां, जिनमें कभी ताकतवर रहे मिस्टर भुट्टो भी शामिल हैं, दुम हिलाते हुए मेरा अनुसरण करेंगे." 

ये टिप्पणी जनरल जिया उल हक ने 1977 में एक ईरानी अखबार के साथ बातचीत के दौरान की थी. जम्हूरियत और सियासतदानों को हेय दृष्टि से देखने की सोच इस पाकिस्तानी जनरल को विरासत में मिली थी. अपने कार्यकाल के दौरान जनरल जिया ने इस 'संस्कार' को सख्ती से जिया. वे अपने कार्यकाल के दौरान भुट्टो को लताड़ते रहे. और आखिरकार उन्हें फांसी पर चढ़वा दिया.

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जनरल जिया की इस विरासत का दंश पाकिस्तान आज भी झेल रहा है. जनरल असीम मुनीर के 'अवतार' में. जिन्हें पाकिस्तान में मुल्ला जनरल भी कहा जाता है.

इस समय पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की हरकतें भारतीय उपमहाद्वीप को संकट के कगार पर ले गई हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बंकर में छिपने वाले असीम मुनीर इस वक्त नीतियों और कर्तव्यों के मामले में जनरल जिया उल हक की सस्ती फोटो कॉपी साबित हो रहे हैं. जिन्हें न तो मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों की समझ है और न ही कर्जे में डूबे पाकिस्तान की आर्थिक हैसियत का ध्यान है. 

आप 1977-88 का दौर याद कर सकते हैं या फिर इतिहास की पुस्तकों के पन्ने पलट सकते हैं. जनरल जिया-उल-हक और जनरल असीम मुनीर की नीतियों में कई समानताएं देखी जा सकती हैं. ये समानताएं दोनों जनरलों की सैन्य और राजनीतिक रणनीतियों, धार्मिक कट्टरता, और भारत-विरोधी दृष्टिकोण में दिखती हैं. 

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धार्मिक कट्टरता और इस्लामीकरण

जनरल जिया-उल-हक ने 1977-1988 के अपने शासन में पाकिस्तान में इस्लामीकरण को बढ़ावा दिया. उन्होंने शरिया कानून लागू किए, मदरसों को प्रोत्साहन दिया और कट्टरपंथी विचारधारा को सेना और समाज में फैलाया. जिया की आधिकारिक जीवनी के अनुसार उनके पिता ने उन्हें इस्लामिक तौर तरीके सिखाए और कट्टरता की खुराक दी. दिल्ली के टॉप सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ने वाले जनरल जिया जवान होते होते कट्टर बन गए उनका नजरिया सिमट गया.

अफगानिस्तान के खिलाफ सोवियत रुस की जंग के दौरान उन्होंने अफगान जिहाद का नारा दिया और मुजाहिद्दिनों के फंड इकट्ठा किया. संविधान को नजरअंदाज करने वाले जिला उल हक ने तख्तापलट के बाद शरिया लागू किया. इस जनरल के राज में पाकिस्तान में दंड के लिए नए प्रावधान शुरू किए गए जैसे कोड़े मारना, अंग काटना और पत्थर मारकर मौत की सज़ा देना. ईशनिंदा कानून जल्द ही धार्मिक अल्पसंख्यकों को सताने का एक हथियार बन गया. 

पाकिस्तान के मौजूदा जनरल असीम मुनीर ने भी अपनी मजहबी छवि का पाकिस्तान में खूब प्रचार किया है. वे खुद को 'हाफिज-ए-कुरान' बताते हैं और 'मुल्ला जनरल' के रूप में जाने जाते हैं. 'हाफिज-ए-कुरान' यानी कि जिसने कुरान को कंठस्थ कर लिया हो.

इन दोनों जनरलों ने धार्मिक कट्टरता को अपनी सैन्य और राजनीतिक रणनीति का आधार बनाया, जिससे पाकिस्तान में उदारवादी मूल्यों कमजोर हुए और कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हुईं. 

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कश्मीर पर नजरिया

जिया-उल-हक और असीम मुनीर दोनों ही जनरलों ने कश्मीर को अपनी नीतियों के फोकस में रखा. जिया ने भारत के खिलाफ 'हजार घावों की नीति' (Bleed India with a Thousand Cuts) अपनाई. इसमें कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन देना और सिख उग्रवाद को बढ़ावा देना शामिल था.  

जनरल जिया ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को भारत के खिलाफ "स्ट्रैटेजिक एसेट्स" के रूप में इस्तेमाल किया. इस दौर में भारत में आतंकी ताकतों ने सिर उठाया.

जनरल असीम मुनीर का 'टेरर डॉक्ट्रिन' पाकिस्तानी डीप स्टेट के इसी थ्योरी पर काम कर रहा है. पहलगाम हमले से कुछ ही दिन पहले जनरल असीम मुनीर का एक हेट स्पीच काफी चर्चा में आया था. इस भाषण में मुनीर ने पाकिस्तानियों को हिन्दुओं से एकदम अलग बताया था. मुनीर ने जिन्ना के टू नेशन थ्योरी की पुरजोर वकालत करते हुए कहा था कि हम एक साथ रह ही नहीं सकते हैं. यही नहीं उन्होंने कश्मीर को 'पाकिस्तान की गले की नस' कहा था. इस भाषण में मुनीर ने कहा था, "हमारा रुख बिल्कुल स्पष्ट है, यह हमारी गले की नस थी, यह हमारी गले की नस रहेगी, और हम इसे नहीं भूलेंगे. हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनके वीरतापूर्ण संघर्ष में नहीं छोड़ेंगे."

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असीम मुनीर के इसी भाषण के बाद पहगाम में निर्दोष पर्यटकों पर आतंकियों ने गोलियां चलाई. आतंकियों ने धर्म पूछकर निहत्थे सैलानियों को उनके परिवार के सामने मारा. 

कट्टरता और भारत के प्रति नफरत असीम मुनीर की पुरानी पॉलिसी है. 

यह महज संयोग नहीं है कि मुनीर कुख्यात पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई का प्रमुख था, जब इसने 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा आतंकी हमले की साजिश रची थी. इस हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हुए थे. छह साल बाद मुनीर जो अब पाकिस्तान के डी-फैक्टो सुप्रीमो हैं, एक बार फिर से भारत के निशाने पर हैं. इसमें पाकिस्तान के आतंकी संगठनों का नाम आया था. गौरतलब है कि आतंकवादी समूह पाकिस्तानी सेना की विस्तारित शाखा रहे हैं, पाकिस्तानी सेना इन समूहों को स्पॉन्सर करती है, फंड देती है और ट्रेनिंग देती है और उनका इस्तेमाल प्रॉक्सी के रूप में करती है.

दरअसल असीम मुनीर की छटपटाहट के पीछे पाकिस्तान की राजनीतिक परिस्थितियों का भी काफी रोल है. मुनीर पर सिविलियन सरकार को कमजोर करने और इमरान खान की पार्टी पीटीआई को दबाने का आरोप है. इमरान की पार्टी पीटीआई फरवरी 2024 के चुनावों में धांधली का आरोप लगाती रही है और इसमें सेना की भूमिका को भी बताती है. इससे पाकिस्तान में कई तत्वों ने सेना पर सवाल खड़े किए हैं. ऐसे समय में अपनी और सेना की छवि मजबूत करने के लिए असीम मुनीर भारत विरोधी गतिविधियों का सहारा लेकर अपना चेहरा छिपाते रहे हैं. 

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जिया के समय पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और वैश्विक भू-राजनीति अलग थी, इन परिस्थितियों की वजह से जिया को कुछ समय के लिए समर्थन भी मिला. लेकिन बाद में वे अपने ही देश के लिए संकट साबित हो गए. जनरल जिया की रहस्यमयी विमान दुर्घटना में मौत इसकी ओर एक महत्वपूर्ण इशारा है. 

आज असीम मुनीर की यही नीतियां पाकिस्तान के लिए गंभीर संकट बनकर उभरी हैं. अगर भारत -पाकिस्तान के बीच की हाल की जंग अनियंत्रित होती तो दक्षिण एशिया परमाणु संकट के गंभीर फेज में जा सकता था. इसके अलावा पाकिस्तान आज आर्थिक संकट, वैश्विक निगरानी (FATF जैसे संगठन) और गंभीर आतंरिक असंतोष (ब्लूचिस्तान का अलगावाद, सिंध का आंदोलन) से गुजर रहा है. 

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