चीन से नहीं भारत-तिब्बत से मिलता है नेपाली नागरिकों का DNA, नई रिसर्च में दावा

चीन लगातार दावा करता रहता है कि नेपाली नागरिकों का DNA उनसे मैच खाता है. अब एक नई रिसर्च सामने आई है जिसने चीन के दावों की हवा निकाल दी है. कहा गया है कि नेपालियों का डीएनए भारत से मिलता है.

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भारत से मिलता है नेपालियों का DNA (फाइल फोटो- रॉयटर्स) भारत से मिलता है नेपालियों का DNA (फाइल फोटो- रॉयटर्स)

रोशन जायसवाल

  • वाराणसी,
  • 19 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 8:14 PM IST

चीन लगातार ऐसा दावा करता रहा है कि नेपाली लोगों का डीएनए उनसे मिलता है, कई मौकों पर उसकी तरफ से समान कनेक्शन दिखाने की कोशिश की गई है. लेकिन अब चीन के उन दावों की हवा एक रिसर्च ने निकाल दी है. एक रिसर्च से बात निकलकर सामने आई है कि नेपाल वासियों का DNA भारत और तिब्बती लोगों के काफी करीब है, ना कि चीन से मेल खाता है. CSIR- सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र(CCMB) हैदराबाद और BHU के वैज्ञानिकों ने मिलकर नेपाल की आबादी में मातृत्व वंश पर रिसर्च की है. यह अध्ययन 15 अक्टूबर को जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित भी हो चुका है. 

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रिसर्च में क्या बताया गया है?

अध्ययन में शामिल काशी हिंदू विवि के जंतु विज्ञान के वैज्ञानिक ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि नेपाल के त्रिभुवन विवि के एक छात्र नेपाल में रहने वाले 18 पॉपुलेशन का सैंपल लेकर सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक (CDFD) हैदराबाद गए थे. वहां उस सैंपल का जीनोमिक एनालिसिस हुआ. जिसमें उनका भी सहयोग रहा. हम लोगों ने नेपाल को तिब्बत और भारत के परिप्रेक्ष्य में मातृत्व के लिहाज से DNA मैच कराया. नतीजा ये आया कि नेपाल की घाटी में रहने वाले लोग भारत के ज्यादा नजदीक थे, जबकि ऊंचाई पर रहने वाले जैसे शेरपा लोग तिब्बतियों के नजदीक के निकले. लेकिन कुल मिलाकर भारत के साथ नेपाल की नजदीकी इस अध्ययन में बहुत ज्यादा निकली जो सांस्कृतिक रूप से भी है और आर्कियोलॉजिकल रूप से भी. तिब्बत का जीन जो माइग्रेट करके नेपाल आया वे नेपाल के पूरी आबादी में कम या ज्यादा है. जबकि गंगा की तरफ जीरो है. इसका मतलब है कि तराई का क्षेत्र नेचुरल बैरियर की तरह का काम किया था. जहां से नार्थ इंडियन जीन नेपाल की तरफ चला गया, लेकिन नेपाल के इस्ट एशियन यानी तिब्बतीयन जीन गंगा प्लेन की तरफ नहीं आया. नेपाल को लेकर चीन के दावे पर भी प्रो ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि चीन के साथ नेपाल का जीन नहीं मिल रहा है, अगर मिल भी रहा है तो तिब्बत और भारत के साथ.

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वहीं इस रिसर्च पर डीबीटी-सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी), हैदराबाद के निदेशक डॉ के थंगराज ने कहा कि नेपाली लोगों पर यह पहला सबसे बड़ा अध्ययन है, जहां हमने नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग और काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी सहित नेपाल के विभिन्न जातीय समूहों के 999 व्यक्तियों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए सीक्वेंस का विश्लेषण किया है. 

वैज्ञानिकों ने क्या बोला?

इस अध्ययन के पहले लेखक राजदीप बसनेट ने बताया कि इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों ने शोधकर्ताओं को इतिहास और अतीत की डेमोग्राफ़िक घटनाओं के बारे में काफी कुछ बताया है. हमारे अध्ययन से पता चला है कि नेपालियों के प्राचीन अनुवांशिक डीएनए को धीरे-धीरे विभिन्न मिश्रण एपिसोड द्वारा बदल दिया गया था, साथ ही दक्षिणपूर्व तिब्बत के रास्ते 3.8-6 हजार साल पहले लोगों के हिमालय पार करने के प्रमाण मिले हैं. इतिहास, पुरातात्विक और आनुवंशिक जानकारी का उपयोग करते हुए इस अध्ययन ने हमें नेपाल के तिबेतो-बर्मन समुदायों के जनसंख्या इतिहास को समझने में मदद की है.'

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