1999 की बात है जब नजमा हेपतुल्ला बताती हैं कि उन्हें फोन कॉल पर सोनिया गांधी से बात करने के लिए एक घंटे तक इंतजार करना पड़ा था. वह बर्लिन में थीं और उन्हें इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन की अध्यक्ष चुना गया था. इसके बाद उन्होंने फोन करके तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन अधिकारी ने उन्हें बताया था, "मैडम अभी व्यस्त हैं."
इस घटना का खुलासा नजमा ने अपनी नई आत्मकथा "इन परसूइट ऑफ डेमोक्रेसी: बियॉन्ड पार्टी लाइन्स" में किया है. नजमा हेपतुल्ला ने इस पद को अपनी किताब में भारत के लिए एक ऐतिहासिक सम्मान बताया. उन्होंने सबसे पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन किया, जिन्होंने तुरंत कॉल रिसीव की और इस खबर पर खुशी जताई. वे इस बात से खुश थे कि यह सम्मान एक भारतीय मुस्लिम महिला को मिला है.
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जब सोनिया गांधी से बात करने की कोशिश की!
हालांकि, जब उन्होंने सोनिया गांधी से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्हें निराशा का सामना करना पड़ा. उन्हें बताया गया कि "मैडम व्यस्त हैं," और एक घंटे तक प्रतीक्षा करनी पड़ी, लेकिन सोनिया गांधी कभी फोन पर नहीं आईं. यह घटना हेपतुल्ला के लिए निराशाजनक थी, खासकर जब उन्होंने पद के लिए अपना नाम आगे बढ़ाने के लिए सोनिया की इजाजत ली थी.
सोनिया गांधी की नेतृत्व शैली पर की बात
इस घटना का जिक्र करते हुए हेपतुल्ला ने किताब में लिखा, "यह मेरे जीवन का ऐसा क्षण था जिसने मेरे मन में हमेशा के लिए अस्वीकृति की भावना भर दी." 2004 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं हेपतुल्ला ने कहा कि सोनिया गांधी की नेतृत्व शैली कांग्रेस के पुराने संस्कृति से अलग थी. इस दूरी ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच बातचीत और सहयोग को प्रभावित किया.
मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मंत्री रहीं
2014 में मोदी सरकार के पहले टर्म में नजमा हेपतुल्ला को अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री बनाया गया था. उनका मानना था कि जब तक सोनिया गांधी ने पार्टी का नेतृत्व संभाला, तब तक पार्टी के पारंपरिक मूल्य और बातचीत के स्तर में गिरावट आ चुकी थी.
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नजमा हेपतुल्ला के मुताबिक, "इंदिरा गांधी हमेशा आम कार्यकर्ताओं के लिए सुलभ थीं," जब कि सोनिया गांधी की नेतृत्व शैली इसके उलट थी. हेपतुल्ला का मानना है कि सोनिया गांधी की शैली की वजह से पार्टी संगठन प्रभावित हुआ, और पार्टी के अनुभवी नेता हतोत्साहित हो गए.
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