9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 6 हफ्ते टली

9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की जा रही है. फिलहाल मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 6 हफ्ते के लिए टल गई है.

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9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग उठी है 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग उठी है

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST
  • 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग उठी
  • पंजाब-पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक

हिंदुओं की कम जनसंख्या वाले 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है. अब 6 हफ्ते बाद यानी मई या फिर गर्मी की छुट्टी के बाद इस पर सुनवाई हो सकेगी. कोर्ट ने केंद्र सरकार से चार हफ्ते में याचिका से जुड़े सभी मुद्दों पर जवाब दायर करने को कहा है. याचिकाकर्ता को सरकार के जवाब के प्रतिउत्तर के लिए दो हफ्ते का समय दिया गया है, उसके बाद मामले पर सुनवाई होगी.

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इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा था कि हिंदुओं की कम जनसंख्या वाले राज्यों में राज्य सरकारें भी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा है कि राज्य अपने नियमों के अनुसार संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में मान्यता दे सकते हैं. केंद्र सरकार ने हिंदू अल्पसंख्यक मामले पर दाखिल अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि जहां हिंदू या अन्य समुदाय अल्पसंख्यक हैं, वो राज्य उन समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकते हैं, जिसके जरिए वो संचालित हो सकते हैं.

केंद्र सरकार ने किया महाराष्ट्र का उदाहरण

केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कि महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों के लिए धार्मिक और कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी, और गुजराती को भाषाई आधार पर उन्हें अल्पसंख्यक घोषित किया है अन्य राज्य भी ऐसा कर सकते हैं.

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केंद्र सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता का ये कहना कि जम्मू कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय ,अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, लक्षद्वीप, लद्दाख में हिन्दू, यहूदी धर्म के अनुयायी अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन नहीं कर सकते, सही नहीं है.

 

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