अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने खरी-खरी टिप्पणियां की हैं. उनके बयान न केवल इस केस के संदर्भ में, बल्कि व्यापक सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी असर रखते हैं.
जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सामाजिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय संवेदनशीलता के बीच एक संतुलन की जरूरत पर बल देती है. जस्टिस सूर्यकांत के कमेंट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में राष्ट्र के एक जिम्मेदार शख्स को उसकी नागरिक बोध वाली जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं करते हैं.
इस केस की सुनवाई करते हुए बुधवार को जस्टिस सूर्यकांत और एन के सिंह की बेंच ने प्रोफेसर को जमानत तो दे दी है, लेकिन जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने का निर्देश देते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन इस तरह की टिप्पणी अभी ही क्यों?
जस्टिस सूर्यकांत का ये कमेंट उनके चीफ जस्टिस के रूप में भविष्य के दृष्टिकोण का एक संकेत हो सकती है, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव से जुड़े मामलों में. हालांकि हर केस का मेरिट अलग होता है और उसमें मुकदमा और पैरवी की प्रकृति भी अलग होती है.
बता दें कि देश के मौजूदा चीफ जस्टिस बीआर गवई 23 नवंबर 2025 को रिटायर हो रहे हैं. वरिष्ठता के नियमों के आधार पर जस्टिस सूर्यकांत देश के अगले चीफ जस्टिस हो सकते हैं. वे 1 साल 2 महीने तक देश के चीफ जस्टिस रहेंगे. सामान्य गणना के आधार पर उनका कार्यकाल 24 नवबंर 2025 से 9 फरवरी 2027 तक होगा.
इस केस की सुनवाई करते हुए बुधवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन क्या इस मुद्दे पर बोलने का यह सही समय है? उन्होंने कहा, "सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन क्या यह समय इतना सांप्रदायिक होने की बात करने का है? देश ने एक बड़ी चुनौती का सामना किया है. दहशतगर्द हर तरफ से आए और हमारे मासूमों पर हमला किया. हम एकजुट रहे. लेकिन इस समय इस अवसर पर सस्ती लोकप्रियता क्यों हासिल की जाए?"
हरियाणा के सोनीपत स्थित अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर की ऑनलाइन पोस्ट की जांच करने वाली पीठ ने उनके शब्दों के चयन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका इस्तेमाल जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने, उनका तिरस्कार करने या उन्हें असहज करने के लिए किया गया था.
जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा, "शब्दों का चयन जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने, नीचा दिखाने या असुविधा पैदा करने के लिए किया गया है. प्रोफेसर, जो एक विद्वान व्यक्ति हैं, उनके पास शब्दकोष की कमी नहीं हो सकती... वे दूसरों को चोट पहुंचाए बिना सरल भाषा में उन्हीं भावनाओं को व्यक्त कर सकते थे. उन्हें दूसरों की भावनाओं के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए था. उन्हें दूसरों का सम्मान करते हुए सरल और तटस्थ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था."
उन्होंने यह भी कहा कि, "आप को अभिव्यक्ति का अधिकार है, लेकिन दूसरों की भावनाओं का भी ख्याल रखें. ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करें जो सिंपल और सहज हो, सम्मानजनक हो और तटस्थ हो."
केस की सुनवाई के दौरान जब प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा कि प्रोफेसर सैनिकों की तारीफ कर रहे थे, उन्हें बदनाम नहीं कर रहे थे.
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन जिम्मेदारियां भी होनी चाहिए. दूसरों की रक्षा करने का कर्तव्य कहां है? सभी लोग अधिकारों की बात करते हैं, मुझे ये करने का अधिकार है, वो करने का अधिकार है. ऐसा लगता है कि जैसे पूरा देश पिछले 75 सालों से लोगों को सिर्फ अधिकार बांट रहा है उन्हें ये बताये बिना कि देश के प्रति उनका कर्तव्य क्या है?
इस पर जब कपिल सिब्बल प्रोफेसर महमूदाबाद के शब्दों का भाव समझाने की कोशिश की तो जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "श्रीमान सिब्बल आप अपनी शैक्षणिक योग्यता आप बहुत आसानी से समझ सकते हैं. इसे कानून की भाषा में Dog whistling कहा जाता है.
अदालत ने कहा, "इसे हम कानून में डॉग व्हिसलिंग कहते हैं. उन्हें अधिक सम्मानजनक और तटस्थ भाषा का प्रयोग करना चाहिए था."
बता दें कि राजनीति में डॉग व्हिसिल (dog whistle) का मतलब ऐसे पैगाम से है जो कि एक खास समूह या वर्ग का समर्थन जुटाने और उन्हें भड़काने की गरज से दिया गया हो. महमूदाबाद की पोस्ट के बारे में यह आरोप लगा था कि पाकिस्तान से युद्ध के बीच उन्होंने यह पोस्ट वामपंथियों, इस्लामिस्ट कट्टरपंथियों और कथित छद्म लिबरलों का समर्थन पाने के लिए लिखी. और फिर जब मेहमूदाबाद की पोस्ट पर कार्रवाई होने लगी तो यही समर्थक वर्ग उनके बचाव में उतरा.
जस्टिस सूर्यकांत और एन के सिंह की बेंच ने इस केस की सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों द्वारा उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन करने संबंधी कुछ रिपोर्टों का भी हवाला दिया और कहा, "यदि वे कुछ भी करने की हिम्मत करते हैं, तो हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, यदि वे एकजुट होने आदि का प्रयास करते हैं, तो हम जानते हैं कि इन लोगों से कैसे निपटना है, वे हमारे अधिकार क्षेत्र में हैं."
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को 18 मई 2025 को हरियाणा पुलिस ने "ऑपरेशन सिंदूर" और महिला सैन्य अधिकारियों, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह पर कथित तौर पर आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया था. प्रोफेसर अली ने अपनी पोस्ट में कहा था कि दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को कर्नल कुरैशी की तारीफ करने के साथ-साथ लिंचिंग हिंसा और बुलडोजर कार्रवाइयों के खिलाफ भी बोलना चाहिए.
aajtak.in