केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया पिछले दिनों ईशा ग्रामोत्सव 2025 के ग्रैंड फिनाले में पहुंचे. इस दौरान उन्होंने कहा, "हर ग्रामीण खेल केवल उस गांव का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करता है. यही ईशा ग्रामोत्सव की आत्मा है, जो हमें गांव से विश्व तक की यात्रा दिखाती है."
भारत के सबसे बड़े ग्रामीण खेल महोत्सव, ईशा ग्रामोत्सवम 2025 का यह ग्रैंड फिनाले कल कोयंबटूर स्थित मशहूर 112-फीट ऊंचे आदियोगी की प्रतिमा के सामने आयोजित हुआ.
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “मैं ईशा ग्रामोत्सव में यह जानने के लिए आया हूं कि सद्गुरु ने इतने बड़े पैमाने पर इस आयोजन को कैसे मुमकिन बनाया है.” इसके साथ ही उन्होंने ईशा ग्रामोत्सव 2025 के विशाल स्वरूप और उसकी व्यापक पहुंच की सराहना की.
'12 हजार से ज्यादा महिला खिलाड़ी...'
ईशा ग्रामोत्सव के 17वें संस्करण का आयोजन दो महीनों में 183 जगहों पर हुआ, जिसमें 63,220 लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें 12 हजार से ज्यादा महिला खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. पहली बार यह उत्सव ओडिशा तक पहुंचा और इसके साथ ही छह राज्यों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी आयोजित हुआ. कुल मिलाकर 35 हजार से ज्यादा गांवों की 5,472 टीमों ने इसमें हिस्सा लिया.
ग्रैंड फिनाले के मौके पर सद्गुरु, केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया, लोकप्रिय बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल, शतरंज ग्रैंडमास्टर वैशाली रमेशबाबू और पैरा ओलंपियन भाविना पटेल मौजूद रहे.
ग्रामीण प्रतिभा और उत्साह से प्रभावित होकर, खेल मंत्री ने सद्गुरु से ग्रामीण प्रतिभाओं की पहचान में सहयोग करने की गुजारिश की और ईशा फाउंडेशन के साथ एमओयू और साझेदारी करने में अपनी ख्वाहिश जाहिर की.
'28 राज्यों में होना चाहिए...'
सद्गुरु ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, “मेरा संकल्प है कि 2028 तक ईशा ग्रामोत्सव देश के सभी 28 राज्यों में होना चाहिए. यह सिर्फ खेल के बारे में नहीं है, बल्कि ग्रामीण भारत में ऊर्जा और उत्साह को फिर से जगाने के बारे में है.”
खेलों की उत्साहजनक भावना और जीवन में खेलभावना (उल्लास और सहजता) की अहमियत पर जोर देते हुए सद्गुरु ने कहा, “अगर हमारी आबादी मजबूत, जीवंत, सक्षम और प्रेरित होगी, तो हम इस धरती पर सबसे बड़ा चमत्कार बन सकते हैं. जब जिंदगी में खेलभावना होगी, तो आप खाली पेट भी खुशी-खुशी काम कर सकते हैं. और अगर आप सफल होना चाहते हैं, तो आपका शरीर और मन अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने चाहिए.”
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सद्गुरु ने सोशल मीडिया में कहा, “एक जीवंत और उत्साही इंसान को रोका नहीं जा सकता, फिर चाहे उसे कितनी भी चुनौतियों का सामना क्यों न करना पड़े. यह बहुत जरूरी है कि हम इस भावना को ग्रामीण भारत में वापस लाएं, जहां हमारी आबादी का ज्यादातर हिस्सा रोजाना की जटिल चुनौतियों के साथ जीता है. ईशा ग्रामोत्सवम लोगों के जीवन में, हर घर में, हर गांव में आनंद और उन्मुक्तता की भावना लाने की एक कोशिश है, जिससे वे जिंदगी के खेल का आनंद लेना सीखें और बहुत गंभीर न हो जाएं."
उन्होंने आगे कहा, "हम चाहते हैं कि आप सभी 2028 तक ग्रामोत्सवम को भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक ले जाने में हमारे साथ खड़े हों. आइए इसे संभव बनाएं.“
ग्रामीण खिलाड़ियों के जोश और हौसले से प्रभावित होकर बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने कहा कि यहां का माहौल भरे हुए क्रिकेट स्टेडियम जैसा था. उन्होंने खेल मंत्री को बताया कि ईशा ग्रामोत्सव देश में खेल संस्कृति को मजबूत करने के लिए एक जरूरी सबक देता है.
'सकारात्मक ऊर्जा की लहर...'
शतरंज ग्रैंडमास्टर वैशाली रमेशबाबू ने कहा, “ईशा ग्रामोत्सव को देखकर सकारात्मक ऊर्जा की लहर महसूस होती है. खेल सिर्फ जीत या हार तक सीमित नहीं हैं, वे हमें बढ़ना सिखाते हैं, जीत और हार को संतुलित मन से स्वीकार करना सिखाते हैं और चुनौतियों में शांत रहना सिखाते हैं."
ग्रैंड फिनाले ने अपनी प्रसिद्धि के मुताबिक रोमांचक मुकाबलों का मंच पेश किया, जिसने दर्शकों को पूरी तरह उत्साहित कर रखा था. महिला थ्रॉबॉल और पुरुष वॉलीबॉल दोनों फाइनल मैच अंतिम क्षण तक टक्कर में रहे. महिला थ्रॉबॉल में कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले की टीम बादगन्नौरु ने तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले की टीम देवरायपुरम को हराकर चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया.
पुरुष वॉलीबॉल में तमिलनाडु के सेलम जिले की टीम उत्तमसोलापुरम ने कर्नाटक के बेंगलुरु ग्रामीण जिले की टीम हेग्गडिहल्ली को हराकर खिताब अपने नाम किया. चैंपियनों को ₹5 लाख, रनर-अप्स को ₹3 लाख, जबकि दूसरे और तीसरे रनर-अप्स को क्रमशः ₹1 लाख और ₹50,000 इनाम के रूप में दिए गए, इसी के साथ टूर्नामेंट का रोमांचक अंत हुआ.
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ग्रैंड फिनाले की खास बात पैरावॉलीबॉल प्रतियोगिता रही, जिसने विशेष रूप से सक्षम खिलाड़ियों की अडिग और प्रेरक भावना को दर्शाया. खेलों के रोमांच से परे, इस उत्सव ने ग्रामीण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी जश्न मनाया. दो हजार महिलाओं ने तमिलनाडु की वल्ली कुम्मी, ओयिलत्तम और थेरुकुथु प्रस्तुत किया.
सद्गुरु द्वारा 2004 में शुरू किया गया ईशा ग्रामोत्सव सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावशाली साधन बन गया है, जो गांव वालों को लत से बाहर आने में मदद करता है, जातिगत बाधाओं को तोड़ता है, महिलाओं को सशक्त बनाता है और ग्रामीण जीवन की उत्साह और खेलभावना को फिर से जिंदा करता है. टीमें सिर्फ उसी गांव पंचायत के खिलाड़ियों से बनाई जा सकती हैं, जिससे समुदाय एकजुट होता है और स्थानीय गर्व का जश्न मनाया जाता है.
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