डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद बनी जांच कमेटी, जानें पुणे पोर्श केस में अब तक क्या-क्या हुआ

पुणे पोर्श हादसे के बाद अब एक्शन तेज हो गया है. डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र सरकार ने जांच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. चिकित्सा शिक्षा आयुक्त राजीव निवतकर ने आदेश जारी कर ग्रांट मेडिकल कॉलेज और जे जे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की डीन डॉ. पल्लवी सपले को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है.

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pune Porsche accident (File Photo) pune Porsche accident (File Photo)

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 28 मई 2024,
  • अपडेटेड 9:23 AM IST

महाराष्ट्र के पुणे में हुए पोर्श हादसे में अब तक कई बड़े घटनाक्रम सामने आ चुके हैं. नाबालिग के ब्लड सैंपल बदलने वाले ससून अस्पताल के डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद अब महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच के लिए 3 सदस्यीय कमेटी बना दी है. चिकित्सा शिक्षा आयुक्त राजीव निवतकर ने आदेश जारी कर ग्रांट मेडिकल कॉलेज और जे जे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की डीन डॉ. पल्लवी सपले को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है.

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कमेटी में ग्रांट मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. गजानन चव्हाण और छत्रपति संभाजी नगर सरकारी मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में स्पेशल ड्यूटी अफसर डॉ. सुधीर चौधरी को भी शामिल किया गया है. कमेटी को आज पुणे पहुंचने के लिए कहा गया है.

आयुक्त ने ससून अस्पताल के डीन डॉ. विनायक काले को भी जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया है. बता दें कि पुणे पुलिस ससून अस्पताल के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. अजय तवारे, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीहरि हलनोर और डॉ. तवरे के अधीन काम करने वाले कर्मचारी अतुल घाटकांबले को गिरफ्तार कर चुकी है. उन्हें 30 मई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है.

क्या है मामला?

पुणे के कल्याणी नगर इलाके में रियल एस्टेट डेवलपर विशाल अग्रवाल के 17 साल के बेटे ने अपनी स्पोर्ट्स कार पोर्श से बाइक सवार दो इंजीनियरों को रौंद दिया था, जिससे दोनों की मौत हो गई. इस घटना के 14 घंटे बाद आरोपी नाबालिग को कोर्ट से कुछ शर्तों के साथ जमानत मिल गई थी. कोर्ट ने उसे 15 दिनों तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने और सड़क दुर्घटनाओं के प्रभाव-समाधान पर 300 शब्दों का निबंध लिखने का निर्देश दिया था. हालांकि, पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपी शराब के नशे में था और बेहद तेज गति से कार को चला रहा था. नाबालिग इस समय सुधार गृह में है.

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पुलिसकर्मियों की लापरवाही

हादसे के बाद सबसे पहले यरवदा पुलिस स्टेशन के दो अफसर घटनास्थल पर पहुंचे. लेकिन उन्होंने ना अफसरों को सूचना दी और ना कंट्रोल रूम को बताना जरूरी समझा. जोन-1 के डीसीपी गिल भी नाइट राउंड पर थे. उन्हें भी जानकारी नहीं दी. बाद में पुलिस ने दोनों अफसरों पर एक्शन लिया और उन्हें सस्पेंड कर दिया. दोनों अफसरों के नाम पुलिस निरीक्षक राहुल जगदाले और एपीआई विश्वनाथ टोडकरी हैं. आरोप है कि संबंधित अफसरों ने अपराध की देरी से रिपोर्ट की और कर्तव्य में लापरवाही बरती. आरोपी नाबालिग को मेडिकल परीक्षण के लिए भी लेकर नहीं गए.

जांच प्रभावित करने की कोशिश!

घटना के बाद वडगांव शेरी के विधायक सुनील टिंगरे भी सुबह-सुबह यरवदा पुलिस स्टेशन पहुंचे. उनके थाने जाने से विवाद खड़ा हो गया. आरोप है कि उन्होंने नाबालिग के पक्ष में जांच को प्रभावित करने की कोशिश की. क्योंकि उन्हें रियल एस्टेट कारोबारी विशाल अग्रवाल का करीबी माना जाता है. हालांकि, टिंगरे ने पुलिस पर दबाव बनाने के आरोपों को खारिज कर दिया. 

गायब कर दिए ब्लड सैंपल

शुरुआत मेडिकल रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि आरोपी नशे की हालत में नहीं था. जबकि पब और कार के सीसीटीवी फुटेज कुछ और ही हकीकत बयां कर रहे थे. इन फुटेज में आरोपी को अपने दोस्तों के साथ शराब पार्टी करते देखा जा रहा था. खुद आरोपी नाबालिग के सामने शराब से भरा गिलास रखा था. लेकिन मेडिकल रिपोर्ट ने चौंकाया तो डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भी जांच के दायरे में आ गया. नाबालिग को सबसे पहले मेडिकल टेस्ट के लिए ससून हॉस्पिटल ले जाया गया था. इस दौरान उसके ब्लड सैंपल को ऐसे शख्स के सैंपल से बदल दिया गया, जिसने शराब का सेवन नहीं किया था. ऐसे में जांच रिपोर्ट में शराब की पुष्टि नहीं हो सकी. इससे संदेह पैदा हो गया. दोबारा ब्लड रिपोर्ट आने पर शराब की पुष्टि हुई. बाद में पता चला कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने नाबालिग को बचाने के लिए ब्लड सैंपल से छेड़छाड़ की थी. पुलिस ने इस मामले में फॉरेंसिंक डिपार्टमेंट के HOD समेत 2 डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है. 

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सिर्फ 14 घंटे में ही मिली जमानत

आरोपी नाबालिग था, इसलिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के सामने पेश किया गया. JJ बोर्ड ने 300 शब्दों का निबंध लिखने समेत अन्य मामूली शर्तों पर जमानत दे दी. आरोपी को सिर्फ 14 घंटे में जमानत मिली तो सिस्टम पर सवाल उठने लगे. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को ये हादसा इतना गंभीर नहीं लगा कि जमानत ना दी जाए. रिहाई के लिए जो शर्तें रखीं गईं, उनमें 15 दिन तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करना होगा. मानसिक जांच और इलाज करवाना होगा. किसी नशा मुक्ति केंद्र में जाकर रिहैबिलिटेशन लेना होगा. ट्रैफिक नियमों को पढ़ना होगा और किशोर न्याय बोर्ड के सामने इन नियमों पर प्रेजेंटेशन देना होगा. भविष्य में अगर वो किसी सड़क दुर्घटना को देखें तो पीड़ितों की मदद करनी होगी.

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