रेलवे की सबसे लंबी एस्‍केप टनल बनकर तैयार, घोड़े की नाल का है आकार, जानें क्या है खासियत

Longest Escape Tunnel: उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना के तहत भारत की सबसे लंबी एस्केप टनल बनकर तैयार हो गई है. यह सुरंग दक्षिण की ओर सुंबर स्टेशन यार्ड और सुरंग टी-50 को जोड़ते हुए उत्तर की ओर खोड़ा गांव में खोड़ा नाला पर ब्रिज नंबर 04 को जोड़ती है. यहां जानें क्या है इस टनल की खासियत.

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भारत की सबसे लम्‍बी एस्‍केप टनल टी-49 भारत की सबसे लम्‍बी एस्‍केप टनल टी-49

वरुण सिन्हा

  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:56 PM IST

रेलवे का प्रयास है कि रेल नेटवर्क को बेहतर तरीके के साथ आम यात्रियों के लिए तैयार किया जाए. यूएसबीआरएल (उधमपुर श्रीनगर बारामूला रेल लिंक) परियोजना के कटरा-बनिहाल सेक्शन पर सुंबर और खारी स्‍टेशनों के बीच भारत की सबसे लंबी एस्‍केप टनल टी-49 का ब्रेक-थ्रू कर एक बड़ी उपलब्‍धि हासिल की है. असल में इस सुरंग के दोनों छोर को मिलाकर टनल के कार्य को लगभग पूरा कर लिया गया है. 

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रेलवे ने भारत की सबसे लंबी एस्‍केप टनल की लाइन और लेबल को सटीकता के साथ ब्रेक-थ्रू के दौरान हासिल किया. घोड़े की नाल के आकार की यह सुरंग दक्षिण की ओर सुंबर स्टेशन यार्ड और सुरंग टी-50 को जोड़ते हुए उत्‍तर की ओर खोड़ा गांव में खोड़ा नाला पर ब्रिज नंबर 04 को जोड़ती है. 

टनल टी-49 एक जुड़वां ट्यूब सुरंग है जिसमें मुख्य सुरंग (12.75 किलोमीटर) और एस्‍केप टनल (12.895 किलोमीटर ) है तथा यह प्रत्‍येक क्रॉस-पैसेज पर 33 क्रॉस पैसेजों से जुड़ी है. मुख्‍य सुरंग की खुदाई का कार्य पहले ही पूरा हो चुका है. इसकी फाइनल लाइनिंग का कार्य तेज गति से चल रहा है. 

क्यों बनाई जाती है एस्‍केप टनल? 
असल में आपातकालीन परिस्थितियों में बचाव और राहत कार्यों के लिए इसका निर्माण किया जाता है. एस्केप सुरंग युवा हिमालय के रामबन फॉर्मेशन के साथ-साथ खोड़ा, हिंगनी, पुंदन, नालों जैसी चिनाब नदी की विभिन्न सहायक नदियों/नालों के साथ-साथ गुजरती है. इससे सुरंग खुदाई का कार्य बहुत ज्‍यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

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रेलवे ने किन किन दिक्कतों का सामना किया
उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना (USBRL परियोजना) की कुल 272 किलोमीटर लंबाई में से 161 किलोमीटर को पहले ही चालू किया जा चुका है. कटरा-बनिहाल के बीच के शेष 111 किलोमीटर पर काम तेजी से चल रहा है. कटरा-बनिहाल सेक्शन निचले हिमालय के पहाड़ी इलाकों से गुजर रहा है जिसमें कमजोर भूविज्ञान, क्षेत्र की दुर्गमता, मौसम की प्रतिकूल स्थितियां, भूस्खलन, और मार्गों पर पत्थरों का गिरना प्रमुख चुनौतियां हैं. 

 

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