भारतीय रेलवे (Indian Railways) सफर के दौरान कोरोना की रोकथाम के लिए हर कदम एहतियात बरतने की कोशिश करता नजर आता है. त्योहारी सीजन और कोरोना (Coronavirus) की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच रेलवे यात्रियों की सुरक्षित यात्रा को सुनिश्चत करने के लिए अब कोच के भीतर कोरोना संभावित जगहों को डिसइंफेक्ट करने के लिए UVC लाइट का इस्तेमाल करना शुरू किया है. खास बात ये है कि इसके लिए रोबोट का सहारा लिया जा रहा है
कोरोना वायरस महामारी के इस समय में यात्रियों को संक्रमण से बचाने के लिए रेलवे ने एक खास तरह का वायरलेस यूवी डिवाइस तैयार किया गया है. इससे महज ढाई मिनट में पूरी बोगी सैनिटाइज हो सकती है. इस डिवाइस के प्रयोग से आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमण को रोका जा सकेगा. इस डिवाइस के जरिए पूरे रैक के 20 कोच को सैनेटाइज करने में 40 से 45 मिनट का वक्त लगता है. फिलहाल रेलवे की ओर से दिल्ली-लखनऊ शताब्दी में इसे प्रयोगिक तौर पर शुरू किया गया है. जबकि कालका शताब्दी में जल्द ही इसकी शुरुआत की जानी है.
जानें क्या है टेक्नोलॉजी ड्रिवन डिसइन्फेक्शन प्रोग्राम
असल में रेलवे के दिल्ली डिवीजन ने टेक्नोलॉजी ड्रिवन डिसइन्फेक्शन प्रोग्राम की शुरुआत की है. ट्रेनों में कोच के भीतर ये रोबोट शत प्रतिशत सैनिटाइज करने के लिए UVC लाइट का इस्तेमाल करेगा. UVC लाइट अपने अल्ट्रावायलेट किरणों से कंपार्टमेंट के भीतर यात्रियों के संपर्क में आए जगहों को अच्छी तरह से डिसइंफेक्ट करती है. ट्रेन नंबर 02004 नई दिल्ली-लखनऊ शताब्दी एक्सप्रेस में पहली बार इस यूवीसी लाइट रोबोट की मदद से डिसइनफेक्टेंट का काम किया जा रहा है. हालांकि अभी ये रेलवे का पायलट प्रोजेक्ट है, इस मशीन को चलाने के लिए रोबोट को मैनुवली ऑपरेट किया जाता है, वहीं रोबोट की स्पीड कम ज्यादा , uvc लाइट को कम ज्यादा , मशीन के सभी सिस्टम एक रिमोड से ऑपरेट होते हैं.
ग्रीनस्काइज एविएशन के डायरेक्टर कैप्टन पवन अरोड़ा बताते है की ये अपनी तरह का पहला सिस्टम है जो रेलवे ने अपनाया है , इसमे दो विंग हमने दिए है जो बोगी के किसी भी कोने में जाकर कही भी लाइट के जरिए वायरस को खत्म कर सकती है.
सालभर पहले आया था विचार
दरअसल कोच को पूरी तरह से डिसइंफेक्ट करने की लिए रोबोट के इस्तेमाल करने का एक साल पहले विचार शुरू किया गया था. अब ये रोबोट AC कोचों में खासे काम आ रहे हैं क्योंकि वहां वेंटिलेशन के लिए खिड़ियां खुली नहीं होती हैं. साथ ही रेलवे इसे न केवल कोचों के लिए बल्कि संक्रमण के लिए ज्यादा संभावित जगहों के लिए भी इस्तेमाल कर रहा है.
वरुण सिन्हा