रेलवे मंत्रालय ने शुक्रवार को लोकसभा को बताया कि पिछले एक दशक में परिणामी (Consequential) ट्रेन दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में गिरावट आई है. 2024-25 में केवल 18 मौतें दर्ज की गईं, जबकि 2004-05 से 2013-14 के बीच दस साल की अवधि में 904 मौतें हुई थीं. रेलवे सुरक्षा से जुड़े एक प्रश्न के जवाब में यह डेटा लिखित बयान के रूप में संसद के पटल पर रखा गया.
हालांकि, मंत्रालय ने यह भी स्वीकार किया कि पिछले पांच वर्षों में रेलवे ट्रैकों पर होने वाली मौतें, बिना फाटक वाले क्रॉसिंग पर हादसे और ट्रैक मेंटेनेंस कर्मचारियों की मौतें एक बड़ी सुरक्षा चुनौती बनी हुई हैं. इसमें अवैध रूप से पटरियों पर चढ़ना, जोखिम भरी पैदल आवाजाही और संचालन संबंधी खतरे प्रमुख कारण हैं. हालांकि 20 वर्षों में 95% से अधिक कमी आई है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार परिणामी ट्रेन दुर्घटनाएं और मौत के आंकड़ों की बात करें तो 2004-05 से 2013-14 के बीच 904 मौतें दर्ज की गईं. वहीं 2014-15 से 2023-24 के बीच 748 मौतें दर्ज हुईं और 2024-25 में सिर्फ 18 मौत के मामले सामने आए.
सरकार ने बताया कि यह भारतीय रेल के इतिहास में दुर्घटना संबंधी मौतों में सबसे तेज गिरावट में से एक है. उसी तरह दुर्घटनाओं की संख्या भी तेजी से गिरी है. 2014-15 में 135 ट्रेन दुर्घटनाएं हुई थीं, जो 2024-25 में घटकर 31 रह गईं और 2025-26 (नवंबर 2025 तक) में यह और घटकर 11 रह गई हैं. यह सिग्नलिंग, ट्रैक ढांचे और सुरक्षा प्रणालियों में लगातार उन्नयन का परिणाम बताया गया है.
सांसदों ने उठाई स्टाफ की कमी और खाली पदों की बात
सांसद विजय कुमार हंसदक और बलवंत बसवंत वानखड़े ने सरकार से अलग-अलग श्रेणियों में जोन-वार आंकड़े मांगे. उन्होंने रेलवे ट्रैकों पर मौतें, बिना फाटक वाले लेवल क्रॉसिंग पर मौतें, ट्रैक मेंटेनेंस कर्मचारियों की मौतें और पिछले पांच वर्षों में ट्रेन दुर्घटनाओं में मौत के आंकड़ों को पेश करने की मांग की. सांसदों ने यह भी पूछा कि सुरक्षा और ट्रैक मेंटेनेंस श्रेणियों में खाली पद क्या दुर्घटनाओं और मौतों के लिए जिम्मेदार हैं.
इस पर मंत्रालय ने कहा कि ऐसे कई हादसे अक्सर अलग-अलग कारणों से होते हैं. इनमें पटरियों पर अवैध प्रवेश (ट्रेसपासिंग), जोखिमभरी पैदल आवाजाही, मानवीय त्रुटियां, ट्रैक कर्मचारियों का संचालन जोखिम और अनधिकृत क्रॉसिंग शामिल है. सरकार ने कहा कि वह खाली पदों को भरने के प्रयास कर रही है और ट्रैक निरीक्षण व नवीनीकरण को मशीनीकृत किया जा रहा है ताकि मानव जोखिम कम हो.
भारी सुरक्षा खर्च से संभव हुई दुर्घटनाओं में गिरावट
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि मौतों में आई यह गिरावट कई वर्षों की बहु-स्तरीय सुरक्षा सुधार प्रक्रिया का परिणाम है. सुरक्षा खर्च में भारी बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने बताया कि 2013-14 में 39,463 करोड़ खर्च हुए. वहीं 2022-23 में 87,327 करोड़, 2023-24 में 1,01,651 करोड़, 2024-25 में 1,14,022 करोड़ और 2025-26 में 1,16,470 करोड़ खर्च किए गए. एक दशक में यह तीन गुना तक बढ़ा है.
लागू किए जा रहे प्रमुख सुरक्षा उपाय
मंत्रालय ने बताया कि ट्रैकों और ट्रेन संचालन दोनों में मौतें कम करने के लिए 20 से अधिक प्रमुख कदम उठाए गए हैं. 6,656 स्टेशनों पर इलेक्ट्रिकल/इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की गई है ताकि सिग्नल संबंधी मानवीय त्रुटियां रोकी जा सकें. 10,098 लेवल क्रॉसिंग गेट्स की इंटरलॉकिंग की गई है. 6,661 स्टेशनों पर ट्रैक सर्किटिंग की गई है ताकि ट्रैक ऑक्युपेंसी की पुष्टि हो सके. कवच (ATP सिस्टम) दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्गों पर बड़े हिस्सों में लागू किया गया है. इसके लिए 15,512 रूट किमी चिन्हित है. विजिलेंस कंट्रोल डिवाइस, फॉग सेफ्टी डिवाइस, अल्ट्रासोनिक फ्लॉ डिटेक्शन द्वारा रेल की खामियों की पहचान, PQRS, TRT और T-28 मशीनों से ट्रैक बिछाने का मशीनीकरण आदि भी किया गया है.
ग्राफ ने दिखाया रिकॉर्ड गिरावट का ट्रेंड
लोकसभा में पेश ग्राफ के अनुसार, परिणामी ट्रेन दुर्घटनाएं 2005-06 में 234 थीं, जो 2025-26 (नवंबर तक) में घटकर सिर्फ 11 रह गईं यानी 95% से अधिक की गिरावट. इसमें कोविड अवधि 2020-21 और 2021-22 भी शामिल है जब ट्रेन संचालन न्यूनतम था.
सांसदों ने यह भी पूछा कि 2020 से अब तक मौतों या घायल होने वालों के परिजनों को दिए गए मुआवजे का प्रतिशत क्या है. मंत्रालय ने कहा कि इसका ज़ोन-वार विवरण अलग से सदन के पटल पर रखा गया है. सरकार ने बताया कि भारतीय रेल में सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है. रेल मंत्री ने जोड़ा कि लगातार निवेश, तकनीकी उन्नयन जैसे कवच 4.0 और ट्रैक संचालन का मशीनीकरण, ये सभी कदम दुर्घटना से होने वाली मौतों और ट्रैकों पर होने वाली रोकी जा सकने वाली मौतों को खत्म करने के उद्देश्य से उठाए जा रहे हैं.
पीयूष मिश्रा