21वीं सदी में दुनिया बहुत आगे पहुंच चुकी है. विज्ञान के जरिये दुनियाभर में तेजी से विकास हो रहा है. इस विकास में 'रेयर अर्थ मैग्नेट्स' अहम भूमिका निभाता है. अमूमन यह लोगों को तो दिखाई नहीं देता है. लेकिन, ये आपके इलेक्ट्रिक वाहनों, स्मार्टफोन, लैपटॉप से लेकर हर इलेक्ट्रिक उपकरणों में इस्तेमाल किया जाता है.
यहां तक ही नहीं, आसमान में जो F-35 लड़ाकू विमान गरजते नज़र आते हैं वो भी इसी का कमाल है. इन सभी चीजों में एक चीज़ कॉमन है, वो है - रेयर अर्थ मैग्नेट्स.
दुनिया का विकास अगले चरण में कितना होगा यह इसी चीज़ पर निर्भर कर ही है. भारत अभी विकासशील देश है और आने वाले दो दशक में विकसित देश बनने की राह पर चल रहा है.
भारत के विकास को और मज़बूती देने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 7,280 करोड़ रुपये की योजना का ऐलान किया है.
फ़िलहाल दुनिया में रेयर अर्थ मैग्नेट्स के उत्पादन पर ड्रैगन यानि चीन का लगभग एकाधिकार है. बीजिंग दुनिया के 90 फीसदी बाज़ार को नियंत्रित करता है और इसकी ताक़त का इस्तेमाल कई मायनों में करता है. चीन रेयर अर्थ मैग्नेट्स का इस्तेमाल भू-राजनीतिक फायदा के लिए करता है.
भारत सरकार की ओर से यह 7,280 करोड़ की योजना ऐसा लाया गया जब हाल में ही चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स को लेकर सख्ती बरती और इसके निर्यात पर कड़े नियम लागू कर दिए. इसकी वजह से भारत समेत पूरी दुनिया के लिए आने वाले समय में इसकी आपूर्ति में चुनौतियां बढ़ने वाली हैं.
फ़िलहाल भारत रेयर अर्थ मैग्नेट्स को लेकर पूरी तरह आयात पर निर्भर है. हालांकि, सरकार के इस कदम से आने वाले समय में बड़ा लाभ होगा. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स (REPM) की पूरी घरेलू विनिर्माण व्यवस्था स्थापित करने के लिए इस योजना को मंजूरी दी है.
भारत की रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स योजना क्या है?
भारत अपनी ‘रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स’ योजना के जरिए एक ऐसी घरेलू सप्लाई चेन तैयार कर रहा है, जो एनडीपीआर (नियोडिमियम–प्रासियोडिमियम) ऑक्साइड को सीधे हाई-परफॉर्मेंस सिंटर्ड NdFeB मैग्नेट्स में बदल सके. ये वही शक्तिशाली मैग्नेट होते हैं जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों, विंडमिल्स, डिफेंस टेक्नोलॉजी, मेडिकल इमेजिंग मशीनों और कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में बेहद जरूरी माने जाते हैं.
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सरकार की ओर से प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) ने बताया कि इस पहल से भारत पहली बार अपनी खुद की एकीकृत आरईपीएम (रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स) मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएं स्थापित करेगा. लक्ष्य है - हर साल करीब 6,000 मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता तैयार करना.
यह योजना अगले 7 से 10 साल में लागू होगी, जिसमें सरकार पूंजी सब्सिडी, वायबिलिटी गैप फंडिंग और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसे आर्थिक सहारे देगी. इसके तहत पूरी वैल्यू चेन देश में ही विकसित होगी. यानी रेयर अर्थ ऑक्साइड से धातु, धातु से मिश्रधातु और मिश्रधातु से तैयार मैग्नेट बनाने तक की हर प्रक्रिया भारत में होगी.
ये मैग्नेट इतने अहम इसलिए हैं क्योंकि ये दुनिया के सबसे मजबूत व्यावसायिक मैग्नेट माने जाते हैं और कई हाई-परफॉर्मेंस मशीनों में इनका कोई विकल्प मौजूद नहीं है. उदाहरण के तौर पर, एक सामान्य इलेक्ट्रिक कार को 1-2 किलो एनडीएफईबी मैग्नेट चाहिए होते हैं, जबकि 3 मेगावॉट की पवन चक्की में करीब 600 किलो मैग्नेट की जरूरत पड़ती है.
भारत 2030 तक 30 फीसदी EV अपनाने और बड़ी मात्रा में रिन्यूएबल एनर्जी बढ़ाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. ऐसे में आने वाले सालों में इन मैग्नेट्स की मांग कई गुना बढ़ने वाली है.
फिलहाल भारत इनकी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, जबकि चीन दुनिया के 90 फीसदी प्रोसेस्ड मैग्नेट और करीब 70 फीसदी रेयर अर्थ माइनिंग पर कब्जा रखता है.
रेयर अर्थ खनिजों के सबसे बड़े स्रोत दक्षिण भारत में हैं
भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े रेयर अर्थ मिनरल्स भंडारों में से एक है, लेकिन क्षमता के मुकाबले उत्पादन बेहद कम है. वैश्विक स्तर पर भारत के हिस्से सिर्फ करीब 1 फीसदी उत्पादन आता है, जबकि हमारे पास लगभग 6.9 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड समतुल्य संसाधन मौजूद हैं.
भारत में जो खनिज अभी निकाले जा सकते हैं, वे ज्यादातर दक्षिण भारत में फैले हुए हैं. सबसे समृद्ध भंडार केरल में मिलते हैं. खासकर कोल्लम, अलाप्पुझा और कन्याकुमारी के बीच मौजूद ‘मोनाजाइट बेल्ट’. यहां इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) के दो बड़े संयंत्र - चावरा और मनावलाकुरुची चलते हैं.
मोनाजाइट एक लाल-भूरे रंग का फॉस्फेट खनिज होता है, जो सीरियम, लैंथनम, नियोडिमियम जैसे रेयर अर्थ तत्वों और थोरियम से भरपूर होता है. यह खनिज आमतौर पर समुद्र तटों और नदी की रेत में पाया जाता है, इसलिए दक्षिण भारत के तटीय इलाकों में इसकी भरपूर मौजूदगी है.
दूसरा बड़ा केंद्र ओडिशा है. गंजम, बालासोर और मयूरभंज के इलाकों में, खासतौर पर छत्रपुर मिनरल सैंड बेल्ट में, तीन मिलियन टन से अधिक भारी खनिज संसाधन पाए गए हैं.
इसी तरह, आंध्र प्रदेश का तटीय क्षेत्र - रीकाकुलम, विशाखापत्तनम और कृष्णाृ, गोदावरी और तमिलनाडु के तूतीकोरिन, तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी जिले भी रेयर अर्थ के प्रमुख स्रोत हैं.
इसके अलावा, राजस्थान, बिहार और झारखंड में छोटे पैमाने पर भंडारों का पता चला है, जो भविष्य में खनन और प्रोसेसिंग के लिहाज से अहम साबित हो सकते हैं.
रेयर अर्थ तत्वों को निकालना क्यों मुश्किल है?
रेयर अर्थ तत्वों का नाम भले “रेयर” हो, लेकिन इन्हें निकालना मुश्किल इसलिए है क्योंकि ये तत्व जिस खनिज में पाए जाते हैं. मोनाजाइट वह खुद रेडियोधर्मी घटकों जैसे थोरियम और यूरेनियम से भरा होता है. यही वजह है कि इसका खनन और प्रोसेसिंग परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) की कड़ी निगरानी में होता है.
इन तत्वों को अलग करना एक बेहद जटिल रासायनिक प्रक्रिया है. 17 रेयर अर्थ तत्वों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन के सैकड़ों चरण अपनाने पड़ते हैं. इसमें बहुत अधिक एसिड की खपत होती है और यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर विषाक्त और रेडियोधर्मी कचरा पैदा करती है. अनुमान है कि 1 टन रेयर अर्थ ऑक्साइड बनाने में 70–100 टन खतरनाक वेस्ट बन सकता है.
इसी सेंसिटिविटी के कारण इस पूरे कार्यक्रम की देखरेख परमाणु ऊर्जा विभाग, खान मंत्रालय और नीति आयोग मिलकर कर रहे हैं.
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नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने आरईपीएम योजना के महत्व को समझाते हुए कहा कि अब भारत दूसरों पर निर्भर नहीं रहेगा. सालों तक वैश्विक सप्लाई चेन ने भारत की रफ्तार तय की, लेकिन अब देश अपनी गति और अपनी शर्तों पर एक मजबूत तकनीकी ढांचा खड़ा करेगा.
7,280 करोड़ रुपये की इस योजना के साथ भारत न सिर्फ एक लॉन्ग टर्म रेयर अर्थ इकोसिस्टम स्थापित कर रहा है, बल्कि धीरे-धीरे चीन की सप्लाई चेन पर अपनी निर्भरता से बाहर निकलने की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है.
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