सुबह-सुबह बारिश हुई, मौसम खुशनुमा हुआ और लोगों ने नींद की झपकी थोड़ी ज्यादा देर तक ली कि चलो अब गर्मी से राहत मिली. लेकिन, आम आदमी की किस्मत में ये चैन और आराम जैसे शब्द जैसे लिखे ही नहीं हैं. अभी तक गर्मी से त्रस्त थे और अब जब पहली ही बारिश हुई है तो निजाम के इंतजामी पेंच इतने ढीले निकले कि एयरपोर्ट के बाहर छत का ढांचा गिर गया. सोचिए, ये हाल राजधानी दिल्ली का है, देश की राजधानी के सबसे पॉश, सबसे खास और सबसे अधिक सुरक्षा में रहने वाले इलाके का है कि जरा सी बारिश होती है और छत का ढांचा गिर जाता है और इसमें एक आदमी की मौत भी हो जाती है. बड़ा सवाल, जिम्मेदार कौन?
एयरपोर्ट पर ड्राईवर, ट्रेन में यात्री की मौत
दिल्ली के एयरपोर्ट पर एक गरीब कैब ड्राइवर मर जाता है, क्योंकि एयरपोर्ट के बाहर छत का ढांचा उसकी कार पर गिरा. जिम्मेदारी लेने की जगह कहा जाता है कि ये ढांचा अभी नहीं, बल्कि 2009 में बना था. केरल से दिल्ली आ रही ट्रेन में निचली सीट पर बैठे यात्री पर ऊपर की बर्थ गिर गई और यात्री की मृत्यु हो गई. रेलवे कहता है कि गलती उसकी नहीं है.दिसंबर 2022 में ट्रेन ट्रैक पर निर्माण के दौरान एक सरिया सीधे ट्रेन की खिड़की से आकर एक आम आदमी की गर्दन के आर पार हो गया. आम आदमी मर गया, लेकिन रेलवे ने जिम्मेदारी नहीं ली.
आम आदमी की जान लेते हादसे
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में पिछले ही हफ्ते कंचनजंगा एक्सप्रेस को मालगाड़ी ने टक्ककर मार दी. 9 यात्रियों की जान चली गई. गुजरात में पुल गिरता है या फिर गेमिंग जोन की आग में बच्चे और घरवाले जल कर मर जाते हैं. इन सब जगहों पर मौत के बाद आम आदमी के परिजनों को मुआवजा तो मिलता है, लेकिन ये भरोसा नहीं मिलता कि अगली बार जनता सुरक्षित रहेगी?
घर से निकलकर, जिंदा लौट के आने की गारंटी नहीं
दिल्ली में शुक्रवार को जो हुआ है, वो किसी एक शहर की, एक आदमी की खबर नहीं है. ये दस्तक हर शहर औऱ हर भारतीय की है. इसे मुआवजा या सिर्फ निंदा नहीं चाहिए. बल्कि घर से निकलकर घर वापस लौटकर जिंदा आने की सुरक्षा वाली गारंटी चाहिए. क्योंकि आम आदमी कहीं सड़क पर होर्डिंग गिरने से नीचे दबकर मर जाता है. कहीं पुल के लटक जाने, टूट जाने से मौत की नदी में समा जाता है.
कहीं ट्रेन की टक्ककर उसकी जान ले लेती है. कहीं सड़क का गड्ढा उसकी मौत की वजह बन जाता है. अबकी बार एयरपोर्ट के बाहर का ढांचा ही पूरा गिर गया है और अब दो तरीके हैं. या तो इसे सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु मानकर भुला दीजिए या फिर एक नागरिक की हत्या के बाद सियासी बचाव की बेशर्म दलील देने वालों के खिलाफ खड़े होइए।
क्या बोले राम मोहन नायडू?
दिल्ली में जो हादसा हुआ, उस पर नए-नए नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू कहते हैं कि, 'मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिसका उद्घाटन किया गया था वो इमारत दूसरी तरफ है. जो स्ट्रक्चर कैनोपी गिरा है वह 2009 का कंस्ट्रक्शन है.यह एक पुराना स्ट्रक्चर था.'
मौसम विभाग ने क्या कहा?
मौसम विभाग कहता है कि दिल्ली में गुरुवार सुबह 8:30 बजे से शुक्रवार सुबह 8:30 बजे तक, यानी 24 घंटे में 228 mm बारिश हुई. दावा हुआ कि 88 साल बाद जून महीने में एक दिन में सबसे ज्यादा बारिश हुई. तो क्या इसका मतलब है कि तेज बारिश हुई तो जिस एयरपोर्ट के रखरखाव पर साल में 119 करोड़ रुपये तक खर्च होते हैं. वहां बाहर की छत का ढांचा गिर जाएगा ?
आम आदमी की जान चली गई. विपक्ष ने पूछा क्या यही सरकार का विकास है ? जहां पीएम ने मार्च में उद्घाटन किया. वहां छत गिर गई. कैब ड्राइवर की जान गई. विपक्ष के बयान के जवाब में बीजेपी की दलील आने लगी कि जहां कैब ड्राइवर की जान गई वो हिस्सा 2009 यानी यूपीए शासन का है. पीएम ने उद्घाटन तो दूसरे हिस्से का किया था.
जहां गरीब आदमी मारा गया, वो ढांचा 2009 का बताते हैं तो क्या सरकार ये मानती है कि
1- 2014 से पहले जो बना उसके रखरखाव की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है ?
2- जो 2014 से पहले बना/खुला उसकी गारंटी नहीं ली जाएगी?
3- 2014 के बाद जो बना है वो नहीं गिरेगा, बाकी चाहे जो गिरे ?
क्या जहां फीता कटा, बस वहीं की ली जाएगी जिम्मेदारी?
सवाल है कि क्या जहां फीता कटा है वहीं की जिम्मेदारी ली जाएगी. जो पुराना ढांचा है गिरने दिया जाएगा ? सवाल इसलिए पूछना जरूरी है क्योंकि जो ढांचा बारिश का भार नहीं सह पाया. वहां दावा है कि पोल में जंग लगी हुई देखी गई. इस पर राम मोहन नायडू, नागरिक उड्डयन मंत्री, ने कहा कि तुरंत कमेंट नहीं कर सकते, फॉरेंसिक जांच होगी फिर रिपोर्ट देंगे.
सिर्फ झुनझुना बनकर रह गई है जांच
जांच हमारे देश में दरअसल वो झुनझुना है, जिसे बजाकर कुछ देर के लिए नींद में सबको सुला दिया जाता है. जब तक सब दोबारा जागते हैं, फिर कोई जांच झुनझना बजाकर हादसे के बाद बैठा दी जाती है. मृतक कैब ड्राइवर के परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने की घोषणा हुई है. मुआवजा दरअसल वो मरहम है, जिसे लगाकर सरकार औऱ सरकारी व्यवस्थाओं को लगता है कि अपनी गर्दन बचा लेंगे.
दिल्ली एयरपोर्ट हादसे का जिम्मेदार कौन?
मुआवजा के बाद चंद मोहरों पर कार्रवाई का दिखावा किया जाता है और फिर अगले हादसे के इंतजार तक सबकुछ भुला दिया जाता है, लेकिन जरूरी है कि आप जवाबदेहों को पहचानें. दिल्ली एयरपोर्ट का संचालन DIAL यानी Delhi International Airport Limited के अधीन किया जाता है. जिसमें सबसे ज्यादा 64 फीसदी हिस्सा GMR Group का है, 26 फीसदी हिस्सा एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी केंद्र सरकार का है और दस फीसदी हिस्सेदारी जर्मनी की एक कंपनी का है. दावा है कि पिछले साल इस एयरपोर्ट से 4225 करोड़ रुपये की कमाई हुई. जहां टी वन टर्मिनल के बाहर लापरवाही से गिरे छत के ढांचे ने एक गरीब ड्राइवर को मार दिया और 20 लाख रुपये उसकी जिंदगी के बदले मुआवजे का एलान करके और टर्मिनल के टूटे हिस्से को 2009 यानी यूपीए राज का बताकर पल्ला झाड़ने की तैयारी हो चुकी है.
जबलपुर में भी हुआ था IGI एयरपोर्ट जैसा हादसा
शुक्रवार सुबह जो दिल्ली एयरपोर्ट पर हुआ, एक दिन पहले उसी तरह का बड़ा हादसा जबलपुर एयरपोर्ट पर भी हुआ. जहां बस गनीमत रही कि किसी की जान नहीं गई, वरना कुछ भी हो सकता था. दिल्ली एयरपोर्ट पर जो शुक्रवार सुबह हुआ, वैसा ही हादसा जबलपुर के विकासवादी एयरपोर्ट पर गुरुवार सुबह हो गया. फर्क ये रहा कि दिल्ली की तरह यहां पोल नहीं गिरा, सिर्फ छत की कैनोपी ही फटी. गनीमत ये रही कि जबलपुर में किसी की जान नहीं गई.
आयकर विभाग के अफसर के लिए आई थी गाड़ी
यहां एक गाड़ी आयकर विभाग के अधिकारी को लेने के लिए आई थी, जिसमें ड्राइवर जैसे ही कार से निकलकर बाहर आए. जबलपुर एय़रोपर्ट के ऊपर लगी कैनोपी यानी शेड के ऊपर जो पानी भरा था, उस पानी के भार से शेड फट गया और पूरा पानी एकदम वेग के साथ इस कार के ऊपर गिरा. इसे बादल फटना जैसी स्थिति के रूप में देखिए. जहां एक साथ इकट्ठा सैकड़ों किलो वजनी पानी ऊंचाई से तेजी से गिरता है और कार की छत के आगे का हिस्सा चकनाचूर हो जाता है.
हादसे पर क्या कहती है एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया?
एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया कहती है कि एक हिस्से में पानी भरने से ये सबकुछ हुआ. सोचिए ये पानी लोगों पर गिरता तो क्या होता. जो कार तोड़ दे तो वो लोगों का क्या हाल कर सकता था. 455 करोड़ रुपये से जबलपुर एयरपोर्ट का विस्तार हुआ. प्रधानमंत्री ने तीन महीने पहले ही लोकार्पण किया था, लेकिन लोकार्पित हुआ एयरपोर्ट जनता के लिए ही जानलेवा साबित हो सकता था. सवाल ये है कि जहां गारंटी के नाम पर सियासी वादे किए जाते रहें, वहां तीन महीने में ही एय़रपोर्ट के बाहर लगी फैब्रिक केनोपी बारिश के पानी से चिंदी-चिंदी होकर ढह जाती है.
दिल्ली-जबलपुर हादसे के बाद ध्यान देने वाली तीन बातें
अब पता नहीं दिल्ली और जबलपुर की तरह देश में न जाने कितने एयरपोर्ट ऐसे हैं, जहां कभी भी मानसून की तेज बारिश में छत गिर जाए. मंत्री कहते हैं कि अब सबसे रिपोर्ट लेंगे. जांच करेंगे. दिल्ली और जबलपुर के हादसे के बाद अब ये तीन बातें सामने आती हैं, जिन्हें ध्यान रखना जरूरी हो जाता है.
1- दिल्ली मामले में तय समय में जांच करके जवाबदेहों के खिलाफ FIR हो.
2- GMR कंपनी और एयरपोर्ट अथॉरिटी के किन लोगों ने रखरखाव में ध्यान नहीं दिया उनको सजा हो.
3- देश के हर एयरपोर्ट पर जांच हो कि उनके ढांचे कितनी बारिश सह सकते हैं.
हर मानसून में परेशान होती है दिल्ली
सूरत बदलने की जरूरत तो दिल्ली में हर साल तब पड़ती है जब मानसून दस्तक देता है. शुक्रवार सुबह दिल्ली में बारिश हुई. दिल्लीवाले हर बार बरिश आते ही कुछ देर केलिए बंधक बन जाते हैं और बंधक बन जाता है दशकों से दिल्ली का मिंटो ब्रिज भी.
मानसून का आना और मिंटो ब्रिज का डूबना
दिल्ली डूबे और मिंटो ब्रिज बच जाए ऐसा हो ही नहीं सकता. अंग्रेजों के राज में 1933 में मिंटो ब्रिज बना. कहते हैं कि आजादी के बाद 1953 में भी दिल्ली की बारिश में इस मिंटो ब्रिज के नीचे पानी भरने का मुद्दा राज्यसभा तक में उठा था. साल बदलते गए. सदी बदलती गई. सरकार बदलती गई, लेकिन मिंटो ब्रिज की सूरत नहीं बदली. दिल्ली में बारिश और सरकारों की विफलताओं का स्मारक बनकर खड़ा हो जाता है. डूबा हुआ मिंटो ब्रिज. वो मिंटो ब्रिज जिसे डूबता हुए आपके दादाजी ने देखा होगा. आपने देखा होगा. आपके बच्चे भी देखेंगे. क्या पता चौथी पीढ़ी भी देखती ही रहे.
1933 में बना और दशकों से डूबता आ रहा मिंटो ब्रिज
मिंटो ब्रिज की ये तस्वीरें देखिए, 1933 में अंग्रेजों के राज में बना दिल्ली का मिंटो ब्रिज, 1987 की तस्वीरों में भी डूबा ही दिखता है. ये 1990 में भी डूबा और फिर 2024 में भी बारिश आते ही मिंटो ब्रिज के अंडरपास को बारिश में डूब जाने के डर से बंद करना पड़ गया. दशकों से मिंटो ब्रिज सरकारों और सरकारी एजेंसियों की विफलता का झंडा गाड़ रहा है. इतने सालों में देश में न जाने क्या-क्या बदल गया, लेकिन नहीं बदला मिंटो ब्रिज का डूबना.
अरविंद केजरीवाल 1990 में जमशेदपुर में टाटा स्टील की नौकरी कर रहे थे. अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. फिलहाल जेल में हैं. यानी अरविंद केजरीवाल के नौकरी करते भी मिंटो ब्रिज डूबता था और केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी मिंटो ब्रिज डूबता है और जेल जाने के बाद भी डूबता है.
34 साल में दिल्ली में 7 पीएम आए. 12 सरकारें देश में बनीं. 5 सीएम दिल्ली में बन चुके हैं. 9 बार सीएम ने शपथ ली. एक सदी बीती दूसरी सदी आ गई. तीन दशक में मिंटो ब्रिज डूबता ही रहा. इसके लिए बीजेपी आम आदमी पार्टी को ही जिम्मेदार ठहराती है. मनोज तिवारी, सांसद, बीजेपी
क्या मिंटो ब्रिज का डूबना ही दस्तूर ?
अब सवाल है कि मिंटो ब्रिज न डूबे इसका इंतजार कब तक किया जाए? मिंटो ब्रिज के हर बार डूबने और कई बार जनता के लिए जानलेवा बन जाने की वजह ये है कि जिम्मेदारी की चाभी अलग-अलग लोगों के पास होना भी है, जहां अपनी-अपनी सियासत के हिसाब से सब खेलते हैं. जो आज दिल्ली में हालत दिखी है. कुछ दिन में मुंबई में दिखेगी. फिर बेंगलुरू, लखनऊ, पटना, भोपाल, जयपुर, आप किसी भी राजधानी के बारे में सोचिए. सबका बारिश में एक जैसा हाल ही होता है. ऐसा क्यों है ? वजह है सियासत... टोपी ट्रांसफर...जवाबदेही तय ना होना,...कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करना...
परेशानी पर सियासत और परेशान आम जनता
अब आम आदमी पार्टी की तरफ से सोशल मीडिया पर एक वीडियो डाला गया, जिसमें दिल्ली, जबलपुर एयरपोर्ट से लेकर अयोध्या और प्रगति मैदान तक बारिश में दावे धुलने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया. आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच दिल्ली में फंसी इसी सियासत में एक बार फिर परेशान सिर्फ दिल्ली की जनता हुई है. दिल्ली की जनता 2 लाख करोड़ से ज्यादा का सीधे इनकम टैक्स भरती है, लेकिन बदले में बारिश से बेहाली और सियासत मिलती है. दिल्ली की जनता देश में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा टैक्स भरती है, लेकिन हर साल मानसून में कुछ घंटे की बारिश में बेहाल छो़ड़ दी जाती है. दिल्ली ने जनवरी 2024 तक 32 हजार करोड़ का जीएसटी और वैट दिया है. यानी हर चीज पर टैक्स भरने वाले दिल्ली के लोग पूछते हैं कि कब तक बारिश में झेलते ही रहेंगे.
बड़े-बड़े नेताओं के बंगलों के सामने भरा पानी
जनता ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े नेताओं के बंगले तक इस बार बारिश के पानी ने अव्यवस्थाओं की पोल खोलने के लिए दस्तक दे दी. समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव भी जलभराव से दो-चार हुए. मनीष तिवारी के घर में पानी दाखिल हो गया. पूर्व मंत्री सोम प्रकाश के घर में पानी दाखिल हुआ. देश की नीतियां बनाने वाले नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल के घर तक पानी पहुंच गया. ये उस ndmc इलाके की हालत है, जो केंद्र सरकार के अधीन आता है और दिल्ली सरकार का हाल क्या है ये आप उन्हीं की जल मंत्री के घर से समझिए. जलमंत्री के घर के पास भी जलभराव का आलम है.
टैक्स भरने वाली जनता को कब मिलेगी राहत?
अब सवाल है कि दिल्ली सरकार क्या कर रही है ? जिनके पास एमसीडी का शासन भी है. पीडब्ल्डी भी है. सरकार भी है. वो दिल्ली को अब क्यों नहीं बचा पाते.
हर साल बारिश बढ़ती जाएगी और दिल्ली की सरकार फेल होती जाएगी, तो जनता को क्या मिला ? जनता को मिली सियासत. जहां आम आदमी पार्टी बारिश के लिए बीजेपी पर निशाना साध रही तो बीजेपी आप को निशाना बना रही है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार रिकॉर्ड बारिश को कसूरवार ठहरा रही है. एलजी अब सिर पर आफत आने के बाद इमरजेंसी मीटिंग कर रहे हैं तो क्या जनता ने दिल्ली की इसीलिए दो लाख करोड़ का टैक्स भरा है?
परेशानियों से निपटने का जिम्मा किसका?
1990 में एक डॉलर 20 रुपये का था. मिंटो ब्रिज डूबता था. अब एक डॉलर की कीमत 83 रुपये के पार है. अब भी मिंटो ब्रिज डूबता है. राजनीति होने की वजह है, जिम्मेदारी की चाभी किसी एक के पास ना होना. चार विभागों के पास मिंटो ब्रिज की जिम्मेदारी है. दिल्ली नगर निगम के पास अंडरपास के एक हिस्से की सफाई का काम है. ये आप के अधीन है. पीडब्ल्यूडी विभाग के पास अंडरपास के ड्रेनेज और रखरखाव की जिम्मेदारी ये दिल्ली की आप सरकार के अधीन है. NDMC के पास कनॉट प्लेस की तरफ से आने वाली सड़क की जिम्मेदारी ये केंद्र के अधीन है. उत्तर रेलवे के पास मिंटो ब्रिज के ऊपरी हिस्से का रखरखाव, रेलवे ट्रैक की बाउंड्री वॉल बनाने का जिम्मा है.
इसीलिए दो पार्टी, चार विभाग, दो सरकारों के बीच गैरजिम्मेदारी के खांचे में खड़ा मिंटो ब्रिज 1990 से 2024 तक बारिश में सरकारी एजेंसियों की विफलता का जीता जागता स्मारक बनकर सामने आता है. सवाल ये है कि दिल्ली बार-बार क्यों डूबती है, थोड़ी सी बारिश में दरिया क्यों बन जाती है? इस मुसीबत की एक वजह नहीं है. बल्कि कई वजहे हैं.
कमियों पर भी डालते हैं एक नजर
सबसे बड़ी वजह है शहर के बुनियादी ढांचे और डिजाइन में कमी, एक और बड़ा कारण नालियों का प्रबंधन करने वाली एजेंसियों की लापरवाही
- PWD, MCD, दिल्ली जल बोर्ड समेत कई एजेंसियों के बीच तालमेल की भी कमी दिखती है.
- इसके अलावा दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम बरसों पुराना है. इसकी मरम्मत तो होती है, लेकिन इसे पूरी तरह बदलने की जरूरत है.
- 1976 में दिल्ली सरकार ने आखिरी बार जल निकासी मास्टर प्लान तैयार किया था
- बीते 42 साल में राजधानी की आबादी चार गुना बढ़ गई, लेकिन ड्रेनेज सिस्टम में कोई बदलाव नहीं हुआ
- आपदा प्रबंधन के जानकारों के मुताबिक बेहिसाब निर्माण की वजह से पानी को निकलने का रास्ता नहीं मिलता
पंकज जैन / जितेंद्र बहादुर सिंह