ग्लोबल वार्मिंग को लेकर दुनियाभर के संगठन लगातार सचेत कर रहे हैं. अगर आपको लगता है कि ये सिर्फ साइंस या पर्यावरण का टर्म है और आपकी जिंदगी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला, तो संभल जाइए. एक्सपर्ट मान रहे हैं कि गर्मी बढ़ने का सीधा असर लोगों की नौकरी पर भी पड़ेगा. साल 2030 तक देश में करोड़ों नौकरियां इसी वजह से छिन जाएंगी. पिछले साल के आखिर में ये अनुमान लगाया गया. इसके साथ ही ये भी बताया गया कि साल-दर-साल कितना तापमान बढ़ सकता है. ये अनुमान सही भी साबित हो रहा है.
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट 'वर्किंग ऑन अ वार्मर प्लानेट: इंपेक्ट ऑफ हीट स्ट्रेस ऑन लेबर प्रोडक्टिविटी' में माना गया कि हीट स्ट्रेस की वजह से कम के घंटे सीधे कम होंगे. जिसका फर्क नौकरी पर पड़ेगा.
काम के घंटे क्यों कम होंगे?
गर्मी की वजह से शरीर के काम करने की क्षमता पर असर होता है. जैसे-जैसे पारा ऊपर जाता है, पसीना ज्यादा आने लगता है और काम करने की क्षमता घटती जाती है. आमतौर पर टेंपरेचर 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाते ही असर होने लगता है. खुले में काम करने वाले मजदूर और किसान इसकी जद में सबसे पहले आते हैं. गर्मी आते ही या तो उनके काम के घंटे कम हो जाते हैं या फिर काम लंबा खिंचता है. ऑक्युपेशन हेल्थ रिस्क भी इससे बढ़ जाता है. जैसे हीट वेव से मौत या गंभीर हालातों में पहुंचना. यहां तक कि रोड रेज की घटनाएं भी बढ़ती हैं, जिससे दफ्तर पहुंचने वाले लोग काम की जगह पर वैसा परफॉर्म नहीं कर पाते, जैसा करते आए हों.
किस तरह हुई नुकसान की गणना?
आईएलओ की ये रिपोर्ट इस बात पर आधारित है, जिसमें माना जा रहा है कि सदी के आखिर तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा. ये पूरी दुनिया का औसत है. भारत में ये ज्यादा भी हो सकता है. जैसे मान लीजिए, अभी राजस्थान के चुरू में गर्मियों का एवरेज तापमान 48 डिग्री सेल्सियस है तो उस समय 50 हो जाए. ऐसे में काम के घंटे घटेंगे. अनुमानित तौर पर अगले 7 सालों के भीतर गर्मी में वर्किंग आवर्स ग्लोबली 2.2 प्रतिशत कम हो जाएंगे. इससे दो तरह से नुकसान होगा. एक तो ये होगा कि औसतन 8 घंटे में होने वाला काम 12 घंटे लेगा. दूसरा, बहुत से लोग नौकरियों से निकाले जाएंगे और बहुत से लोग खुद ही काम छोड़ देंगे. इससे लगभग ढाई हजार बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होगा.
संगठन का ये भी कहना है कि इतना नुकसान तभी होगा, जब तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस ही बढ़े. जिस रफ्तार से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है, मुमकिन है कि ग्लोबल अवरेज टेंपरेचर इससे कहीं ज्यादा हो जाए. ऐसे में नुकसान का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.
पहले भी हो चुका है नुकसान
दक्षिण एशियाई देशों को सबसे ज्यादा घाटा होगा. इसमें भी भारत टॉप पर है. साल 1995 में ही हीट वेव के चलते लगभग 4.3% वर्किंग आवर्स कम हो गए, जो लगभग दो करोड़ से ज्यादा नौकरियां जाने जितना था. अगले 7 सालों में गर्मी और बढ़ेगी, जिससे लगभग साढ़े 3 करोड़ जॉब्स चले जाएंगे. सबसे ज्यादा असर खेती-किसानी पर होगा. काम के घंटे कम होने से पैदावार भी घटेगी, जिससे महंगाई और बढ़ेगी. ये सब मिले-जुले ढंग से और जॉब्स खाएंगे.
आएगा 6वां सामूहिक विनाश
घर के हर कोने में एसी लगाकर या पहाड़ों पर जाकर आप ग्लोबल वार्मिंग से बच नहीं रहे, बल्कि वैज्ञानिक ये तक कह रहे हैं कि अगला महाविनाश यानी कयामत ही बढ़ती गर्मी की वजह से आएगी. बता दें कि अब तक दुनिया 5 महाविनाश देख चुकी, जिसमें डायनोसोर का खत्म होना पांचवां और आखिरी सामूहिक विनाश था. लगभग 65.5 मिलियन साल पहले आई इस प्रलय की वजह एक एस्टेरॉयड का धरती से टकराना था. लेकिन भविष्य का विनाश कुदरती न होकर, हमारी वजह से होगा, ऐसा माना जा रहा है.
गर्मी से गायब हो रही प्रजातियां
इसकी शुरुआत हो भी चुकी है. दरअसल प्रलय के बिना भी धरती से लगातार कई स्पीशीज खत्म होती रहती हैं. इसे बैकग्राउंड रेट कहते हैं. फॉसिल रिकॉर्ड्स अक्सर ही इस बारे में बात करते हैं. ये तो हुई सामान्य बात, लेकिन इंसानों की वजह से धरती पर स्पीशीज के गायब होने की रफ्तार लगभग 100 गुना तेज हो चुकी है. यानी हमारी वजह से 100 गुनी स्पीड से जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है. इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग ही है.
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