दिवाली: पटाखों पर कई राज्यों में बैन, जानिए कहां कितनी मिली है छूट

आतिशबाजी में धुआं बेहद खतरनाक हो जाता है. 2 मिनट तक जलाई गई फुलझड़ी से 75 सिगरेट जितने PM 2.5 कण निकलते हैं. पसंदीदा पटाखों की लड़ी अगर 6 मिनट तक लगातार जली तो मानकर चलिए कि इसने 277 सिगरेट जितने PM 2.5 कण निकाले हैं.

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सांकेतिक तस्वीर (पीटीआई) सांकेतिक तस्वीर (पीटीआई)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 02 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:15 PM IST
  • दिल्ली में हर तरह के पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक
  • पंजाब में ग्रीन पटाखों को अनुमति, MP में 2 घंटे की अनुमति
  • चकरी 5 मिनट तक जलाएं तो 68 सिगरेट के बराबर का प्रदूषण

दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर एक बार पर फिर जोरों से चर्चा है. प्रतिबंधों ने देश के तमाम परिवारों को उलझन में डाला हुआ है. घर के बच्चे पूछते हैं कि पटाखे कहां मिलेंगे. पड़ोस के बच्चों के पास पटाखे हैं तो हमारे पास क्यों नहीं है? और घर के बड़े ऐसे सवाल सुनकर असहज हो जाते हैं क्योंकि उनके पास भी इसका जवाब नहीं होता.

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पर्यावरण की बारीकियों को समझने वाले विद्वान, एक्सपर्ट, कोर्ट, सब कहते हैं कि पटाखों से बहुत कम समय में बहुत ज़्यादा प्रदूषण बहुत होता है. इसलिए इन पर प्रतिबंध है. सामान्य पटाखे खरीदना या जलाना नियमों का उल्लंघन है. ये बातें आम लोग वैचारिक रूप से समझते भी हैं, लेकिन कोरोनाकाल में घरों में बंद रहे. लोगों की भावनाएं इस बार त्यौहार पर खुशियों के पटाखे ढूंढ रही हैं ताकि सब कुछ पहले जैसा हो जाए. वैसे बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो पटाखे जलाने के खिलाफ हैं और प्रदूषण के प्रति जागरूक हैं.

वायु प्रदूषण एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक ग्रीन क्रैकर्स को मंजूरी दी गई है, लेकिन बेरियम जैसे खतरनाक रसायन वाले पटाखों पर पाबंदी है.

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कहां पर क्या-किस तरह का प्रतिबंध 
दिल्ली में हर तरह के पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर पाबंदी है. पंजाब में केवल ग्रीन पटाखों को अनुमति दी गई है. हरियाणा में एनसीआर क्षेत्र में आने वाले 14 जिलों में सभी तरह के पटाखों पर प्रतिबंध हैं. बाकी जिलों में ग्रीन पटाखे जलाए जा सकते हैं.

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उत्तर प्रदेश के एनसीआर में आने वाले शहरों में सभी तरह के पटाखों पर प्रतिबंध है. मध्य प्रदेश में पटाखे जलाने पर प्रतिबंध नहीं है. यहां केवल 2 घंटे की अनुमति दी गई है. कर्नाटक में सामान्य पटाखों पर पाबंदी है, लेकिन ग्रीन पटाखे जलाए जा सकते हैं. पश्चिम बंगाल में दो घंटे के लिए ग्रीन पटाखों को जलाने की अनुमति दी गई है. छत्तीसगढ़ में पटाखों के लिए 2 घंटे का समय तय किया गया है.  राजस्थान में ग्रीन पटाखे की बिक्री और उपयोग के लिए केवल दो घंटे की अनुमति है.

दिल्ली के प्रदूषण स्तर का पिछले 3 सालों का रिकॉर्ड चेक करने पर पता चलता है कि दिवाली से एक दिन पहले, दिवाली वाले दिन और दिवाली के एक दिन बाद होने, प्रदूषण के स्तर पर क्या असर पड़ता है.

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कितना बढ़ता है प्रदूषण
2020 में दिवाली 14 नवंबर की थी तो 13 नवंबर को प्रदूषण का स्तर 339 था, 14 नवंबर यानी दिवाली के दिन ये 414 था और उसके बाद 15 तारीख को ये स्तर 435 पहुंच गया.

इसी तरह से 2019 में 27 अक्टूबर को दिवाली थी तो 26 अक्टूबर को प्रदूषण का स्तर 287 था फिर 27 अक्टूबर को 337 हो गया और उसके बाद 28 अक्टूबर को यानी दीवाली के अगले दिन ये 368 हो गया. 

2018 में 7 नवंबर को दिवाली थी तो 6 नवंबर को प्रदूषण का स्तर 338 था 7 नवंबर को यानी दिवाली वाले दिन प्रदूषण का स्तर 281 हो गया और फिर अगले दिन यानी 8 नवंबर को ये 390 पहुंच गया था. SAFAR ऐप के अनुसार 2 नवंबर को दिल्ली NCR का एयर क्वालिटी इंडेक्स 310 के आसपास रहा है. 

नोएडा-गाजियाबाद में धारा 144
इस बार दीपावली पर पटाखों वाले प्रतिबंध के अलावा दिल्ली-एनसीआर से जुड़े शहरों में धारा 144 भी लगाई गई है. सोशल मीडिया पर इसी को लेकर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ट्रोल होने लगे थे क्योंकि गुरुग्राम में पटाखे ना जलाए जाएं. इसके लिए धारा 144 लगा दी गई थी. एनसीआर से जुड़े नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में भी धारा 144 लगाई गई है, लेकिन ये आदेश रस्म अदायगी जैसे हैं. ज़मीनी स्तर पर इन्हें लागू करना टेढ़ा काम होता है और त्यौहार पर ऐसे आदेशों के असर का लेवल अक्सर शून्य ही रहता है.

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सामान्य पटाखों पर प्रतिबंध पर ग्रीन पटाखों का मलहम कुछ हद तक लोगों को त्योहार मनाने की खुशी दे सकता है. हलांकि नियमों का पालन करवाना सबसे बड़ी चुनौती साबित होता है. सवाल ये है कि पटाखे 'ग्रीन' हैं या नहीं. ये पता कैसे चलेगा ? क्या प्रशासन घर-घर जाकर पटाखे चेक करेगा? इसीलिए, तमाम प्रतिबंधों के बावजूद.. सही मायने में ये पटाखों पर भारत के आत्मसंयम की परीक्षा है.

1 अनार जलने पर 3 मिनट में 34 सिगरेट का धुआं 
वायु प्रदूषण में Particulate Matter 2.5 (PM 2.5) सबसे खतरनाक पहलू है. दीपावली में एक अनार जलाने से अगले तीन मिनट में 34 सिगरेट जलाने के बराबर के PM 2.5 कण निकलते हैं. चकरी को अगर 5 मिनट तक जलाया जाए तो 68 सिगरेट के बराबर का प्रदूषण होता है.

इसी तरह 2 मिनट तक जलाई गई फुलझड़ी से 75 सिगरेट जितने PM 2.5 कण निकलते हैं. पटाखों की लड़ी सबको पसंद आती है, अगर ये 6 मिनट तक लगातार जली तो मानकर चलिए कि इसने 277 सिगरेट जितने PM 2.5 कण निकाले हैं. और बच्चे पटाखों के रूप में जो स्नेक टैबलेट जलाते हैं तो तीन मिनट तक जलने पर 464 सिगरेट जितने PM 2.5 कण निकालती है.

लेकिन ये आधी पिक्चर है. पूरी पिक्चर जानने के लिए आईआईटी कानपुर की वर्ष 2015 में आई एक स्टडी पर भी गौर करना होगा. इसके अनुसार दिल्ली के वायु प्रदूषण में PM 2.5 का स्तर बढ़ने में 35 प्रतिशत योगदान सड़क की धूल का है. इसके बाद 25 से 36 प्रतिशत हिस्सेदारी गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की है. 22 प्रतिशत हिस्सेदारी घर के किचन से निकलने वाले धुएं और  22 प्रतिशत हिस्सेदारी फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं की भी है.

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मतलब ये है कि प्रदूषण में दिवाली पर जलने वाले पटाखों की हिस्सेदारी होती है. ये बात सही है, लेकिन ये तर्क सही नहीं है कि वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी या इकलौती वजह पटाखे हैं.

कहां से आई आतिशबाजी
दुनिया के तमाम इतिहासकार ये मानते हैं कि आतिशबाज़ी या पटाखों की शुरुआत चीन से हुई. कामा आइनहॉर्न की किताब The Explosive Story of Fireworks में लिखा है कि आज से 2221 वर्ष पहले चीन में बांस की मदद से आतिशबाज़ी हुई थी. तब इसमें बारूद का इस्तेमाल नहीं किया गया था. उस दौर में चीन में हान वंश का शासन था.

बांस में कई तरह की गांठें होती हैं और जब बांस में आग लगाई जाती है तो वो बहुत तेज़ आवाज के साथ फटता है. चीन के लोगों ने इस बात को नोट किया और सबसे पहले इसे ही आतिशबाज़ी के तौर पर इस्तेमाल किया.

आज के दौर में जिन पटाखों का इस्तेमाल होता है. उनमें बारूद होता है. बारूद की खोज के बाद आतिशबाज़ी में ज़बरदस्त बदलाव आया. Michael S Russell की किताब The Chemistry of Fireworks के Page Number 2 पर लिखा है कि 8वीं शताब्दी के आस-पास चीन के रसायन वैज्ञानिकों ने बारूद की खोज की. हालांकि साल 1044 में चीन की एक किताब में गनपाउडर जैसे पदार्थ का ज़िक्र मिलता है.

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वायु प्रदूषण गंभीर समस्या
वायु प्रदूषण भारत के लिए एक गंभीर विषय है. आई क्यू एयर की रिपार्ट के मुताबिक 2020 में पूरी दुनिया की सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले देशों की सूची में भारत तीसरे नंबर पर था. दुनिया के सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले 20 शहरों में से 15 भारत के थे, यानी अब समय आ गया है कि हमें वायु प्रदूषण पर गंभीरता से कदम उठाने होंगे.

इस बात की गारंटी है कि ये काम सिर्फ पटाखों पर सांकेतिक प्रतिबंध लगाने से नहीं होगा. प्रदूषण की इससे भी बड़ी वजहें मौजूद हैं जिनकी बात साल में 364 दिनों में नहीं की जाती.  प्रदूषण को हटाने के लिए हर स्तर पर क्रांतिकारी प्रयास करने होंगे और पटाखों की दुनिया में ग्रीन इनोवेशन करना होगा. भारत ये काम कर सकता है. ताकि प्रदूषण तो मिटे, लेकिन जनभावनाओं पर पानी न फिरे.

(आजतक ब्यूरो)
 

 

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