'पहले 20 मील तो आसान थे, लेकिन आखिर के 6 मील के लिए मैं रब से बातें करता रहा...', 89 साल की उम्र में लंदन में आयोजित लाइफ की पहली मैराथन दौड़ने वाले एथलीट फौजा सिंह ने रेस पूरी करने के बाद यह बयान दिया था. पंजाब के जालंधर में सोमवार को हुए एक सड़क हादसे में 114 साल के फौजा सिंह का निधन हो गया. भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक फौजा सिंह ने मुंबई से लेकर कनाडा और लंदन में मैराथन दौड़कर अपनी अलग पहचान बनाई थी.
जालंधर में जन्म, दुनिया में पहचान
फौजा सिंह का जन्म एक अप्रैल 1911 को पंजाब के जालंधर जिले के ब्यास पिंड में हुआ था. उन्होंने 89 साल की उम्र में इंटरनेशनल लेवल पर मैराथन दौड़ना शुरू किया. इस उम्र में मैराथन दौड़ने के उनके फैसले ने लोगों को हैरान कर दिया. फौजा सिंह को अपने इस जुनून की वजह से ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ (पगड़ी वाला तूफान) के नाम से जाना जाता था. उनकी बायोग्राफी का टाइटल भी यही है.
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साल 2004 में फौजा सिंह ने 93 साल की उम्र में लंदन मैराथन पूरी की. 2011 में 100 साल की उम्र में उन्होंने टोरंटो मैराथन पूरी की और 100 प्लस की कैटेगरी में रिकॉर्ड बनाया. वह दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक थे. लेकिन उन्हें जिंदगी में एक बात का मलाल था कि वह अग्रेंजी बोल और पढ़ नहीं पाते थे. साल 2012 लंदन ओलंपिक की मशाल थाम चुके फौजा सिंह सिर्फ पंजाबी जानते थे और उन्हें अंग्रेजी समझने के लिए भी एक ट्रांसलेटर की जरूरत पड़ती थी.
बचपन में पैरों में थी परेशानी
पंजाब के जालंधर में जन्मे फौजा सिंह का शुरुआती जीवन आसान नहीं था. बचपन में एकदम दुबले-पतले दिखने वाले फौजा को बाकी के लड़के 'डंडा' कहकर चिढ़ाते थे. शुरुआत में कमजोरी की वजह से पैरों में कुछ दिक्कत थी, इसलिए पांच साल की उम्र तक उनके लिए चल पाना तक मुश्किल था. बाद में बड़ी मुश्किल से चल पाए तो एक किलोमीटर से ज्यादा चलना उनके लिए मुमिकन नहीं था. लेकिन धीरे-धीरे पिता के साथ खेतों में काम करते हुए शरीर को मजबूत किया और तब जाकर पैरों में भी जान आ गई.
वक्त बीता और देश आजाद हुआ. फौजा सिंह का जीवन भी आगे बढ़ा और ज्ञान कौर से उनकी शादी हुई. उनके घर में तीन बेटे और तीन बेटियों का जन्म हुआ. फौजा सिंह खेतों में काम करते और ज्ञान कौर घर संभालतीं. धीरे-धीरे बच्चे भी बड़े होते गए, नौकरी और काम की तलाश में कनाडा और लंदन चले गए. फौजा सिंह का सबसे छोटा बेटा कुलदीप जालंधर में रह गया. वही अकेला था जो पिता और मां की देखभाल करता था.
पत्नी और बेटे की मौत के बाद छोड़ा भारत
साल 1992 में फौजा सिंह की पत्नी ज्ञान कौर भी गुजर गईं. इसके बाद 80 पार हो चुके फौजा सिंह को लगा कि जिंदगी के कुछ साल बचे हैं और वे भी बेटे कुलदीप के सहारे कट जाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. साल 1994 में कुलदीप की एक हादसे में मौत हो गई और इसके बाद फौजा सिंह के लिए भारत में कोई सहारा नहीं बचा था. सिर्फ दो साल में उनकी पूरी जिंदगी उलट-पुलट कई पत्नी और बेटे की मौत ने फौजा सिंह को तोड़कर रख दिया.
इसके बाद फौजा सिंह के बच्चे उन्हें अपने साथ लंदन ले गए. यह सोचकर कि अकेले भारत में वह क्या करेंगे. फौजा लंदन जाकर बेटे सुखविंदर और उसके परिवार के साथ रहने लगे. पराए मुल्क में उन्हें न अंग्रेजी भाषा आती थी और न ही वहां का रहन-सहन उन्हें जंचता था. घर में सिर्फ टीवी के सहारे उनके दिन गुजर रहे थे. एक दिन टीवी पर उन्हें खबर दिखी कि लंदन में मैराथन होने वाली है और टीवी एंकर लोगों को इसमें हिस्सा लेने के लिए कह रहा है.
टीवी से मिली लंदन मैराथन की खबर
मैराथन की खबर टीवी पर देखकर फौजा को अपना बचपन याद आ गया. जब खेत में दौड़ लगाकर उनके पैर मजबूत हुए थे. लेकिन अब शरीर और उम्र दोनों ही साथ नहीं दे रहे थे. लेकिन मजबूत जज्बे से फौजा सिंह ने मैराथन में हिस्सा लेने की ठान ली. शुरूआत जॉगिंग के साथ हुई, लेकिन इससे पहले उन्हें यह तक नहीं पता था कि आखिर मैराथन होती क्या है. आस-पड़ोस में पता करने पर उन्हें हरमिंदर सिंह के बारे में जानकारी मिली, जो खुद मैराथन धावक और ट्रेनर थे.
फौजा सिंह ने हरमिंदर को मैराथन दौड़ने की इच्छा के बारे में बताया. लेकिन 89 साल के बुजुर्ग की ख्वाहिश को जानकर पहले तो हरमिंदर चौंक गए, लेकिन बाद में उन्होंने फौजा की मदद करने का फैसला किया. 89 साल की उम्र और मैराथन में सिर्फ दो महीने का वक्त, बावजूद इसके हरमिंदर ने फौजा सिंह को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया.
89 की उम्र में दौड़ी पहली मैराथन
इस तरह साल 2000 में फौजा सिंह ने पहली बार मैराथन में हिस्सा लिया और 6 घंटे और 54 मिनट का वक्त लिया. इस मैराथन को पूरा करने के बाद जब उनसे पूछा गया कि सरदारजी आप इतना लंबा कैसे दौड़ गए तो फौजा ने जवाब दिया, 'पहले 20 मील तो आसान थे, लेकिन आखिरी के 6 मील के लिए मैं अपने रब से बातें करता रहा.'
साल 2001 में लंदन में एक और मैराथन आयोजित हुई. फौजा सिंह अब 90 की उम्र पार कर चुके थे और इस बार एक रिकॉर्ड पर फौजा की नजर थी. तब 90 पार चुके मैराथन दौड़ने का रिकॉर्ड 7 घंटे 52 मिनट का था, जो कि 25 साल से टूटा नहीं था. फौजा सिंह ने 6 घंटे 55 मिनट में यह मैराथन पूरी की और 57 मिनट के अंतर से वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया. अगले एक साल के भीतर उन्होंने तीन और मैराथन में हिस्सा लेकर रिकॉर्ड बना दिया.
जब नफरत का जवाब देने के लिए दौड़े
सिमरनजीत सिंह ने फौजा सिंह पर एक किताब लिखी है. उनके मुताबिक न्यूयार्क मैराथन में तेज दौड़ लगाकर फौजा दुनिया को दिखा देना चाहते थे कि सिख क्या कर सकते हैं. लेकिन मैराथन में लंबा वक्त लगने के चलते उन्हें लगा कि उन्होंने दुनिया भर के सिखों का मान गिराया है. दरअसल, अमेरिका में हुए 9/11 अटैक के बाद मुस्लिमों खिलाफ हेटक्राइम के मामले बढ़ रहे थे और दाढ़ी की वजह से सिख भी इसका शिकार हो रहे थे. मैराथन के जरिए फौजा का मकसद इसी नफरत का जवाब देना था और इसी वजह से न्यूयॉर्क मैराथन में उन्होंने हिस्सा लिया था. इस रेस के बाद फौजा सिंह ने मैराथन से संन्यास लेने का फैसला कर लिया था.
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इसके बाद साल 2000-2011 तक फौजा सिंह ने कई और मैराथन में हिस्सा लिया. साल 2003 के टोरंटो मैराथन में उन्होंने 42.15 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 5 घंटे 40 मिनट में पूरी कर दी, अपने आप में एक रिकॉर्ड है. टोरंटो मैराथन में हिस्सा लेने के दौरान उनकी उम्र 100 साल थी और शतायु होने के साथ वह मैराथन पूरी करने वाले पहले व्यक्ति बन गए थे.
उन्होंने अपनी उम्र की कैटेगिरी में 200 मीटर, 400 मीटर, 800 मीटर, 3000 मीटर और 5,000 मीटर मैराथन के सारे रिकॉर्ड एक ही दिन में तोड़ दिए गए थे. कुछ रिकॉर्ड तो ऐसे थे, जो बने ही पहली बार थे क्योंकि 100 साल की उम्र में किसी भी व्यक्ति ने मैराथन में हिस्सा लेने का सोचा तक नहीं था. हालांकि बर्थ सर्टिफिकेट न होने की वजह से उनके यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में दर्ज नहीं हो पाए थे.
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