'चूल्हा चौका नहीं... अब महिलाएं आंदोलन करना सीख गईं हैं', सिंघु बॉर्डर पर दिखे मुस्कुराते चेहरे

सिंघु बॉर्डर पर मौजूद महिला ब्रिगेड कभी मजाक करती नजर आ रही है, तो कभी स्माइल के साथ सेल्फी लेती नजर आ रही हैं. महिला ब्रिगेड में मौजूद एक महिला ने कहा, जैसे एक फौजी एक साल बाद घर वापस जाकर महसूस करता है, हम भी अपने घर पहुंचकर वैसा ही महसूस करेंगे.

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 महिला आंदोलनकारियों के चेहरे पर झलक रही खुशी महिला आंदोलनकारियों के चेहरे पर झलक रही खुशी

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:26 PM IST
  • सरकार के लिखित प्रस्ताव के बाद आंदोलन वापस लेने के पक्ष में किसान
  • घर जाने को लेकर उत्साहित हैं महिला आंदोलनकारी

सिंघु बॉर्डर पर आज सुबह से ही अलग तरह का माहौल है. ऐसा लग रहा है कि किसानों ने 1 साल चली लंबी जंग जीत ली हो. किसानों को घर की ओर कूच करने का भी इंतजार है. उधर, यहां मौजूद महिला आंदोलनकारियों के चेहरे पर भी एक अलग तरीके की रौनक और खुशी दिखाई पड़ रही है. 

सिंघु बॉर्डर पर मौजूद महिला ब्रिगेड कभी मजाक करती नजर आ रही हैं, तो कभी स्माइल के साथ सेल्फी लेती नजर आ रही हैं. महिला ब्रिगेड में मौजूद एक महिला ने कहा, जैसे एक फौजी एक साल बाद घर वापस जाकर महसूस करता है, हम भी अपने घर पहुंचकर वैसा ही महसूस करेंगे.

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महिला ने कहा, पहले वह कभी घर से बाहर नहीं निकली थी. घर में चूल्हा चौका करती थी, बच्चों को संभालती थी और अपने रूटीन के काम में खुश रहती थी लेकिन इस आंदोलन में वह घर से बाहर निकली, मोर्चा संभाला और अब जीतकर वापसी करेंगे. महिला बताती है, इस जीत ने उनके अंदर गजब का आत्मविश्वास पैदा किया. उन्होंने अपनी शक्ति को पहचाना है और आगे घर पर जाकर भी वह सिर्फ चूल्हा चौका नहीं करेंगी. अब तो आगे और आंदोलन की तैयारी होगी. अब तो 2024 में हम संसद जाएंगे. 

'महिला घर का बजट संभालती थी, ये लड़ाई असल रूप से महिलाओं की ही थी'

सिंघु बॉर्डर पर मौजूद एक महिला सुमन हुड्डा बेहद आत्मविश्वास से कहती हैं कि महिला की जिम्मेदारी होती है कि वह अपना घर संभाले, बजट संभाले और इसी लिहाज से यह आंदोलन की असली लड़ाई महिलाओं की थी. हम घर पहुंचकर खुशी जरूर मनाएंगे लेकिन अपने शहीद किसान भाइयों को श्रद्धांजलि भी देंगे. ये जीत महिलाओं के लिए एक नई पहल जैसा है. महिलाओं ने एकता सीखी है भाईचारा की शक्ति समझी है. 

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'पहले घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था...अब छोटी सोच को पीछे छोड़ने का वक़्त'

आंदोलन में मौजूद नीतू शोकन नाम की कार्यकर्ता बताती हैं कि पहले महिलाओं को बाहर नहीं निकलने दिया जाता था, लेकिन इस आंदोलन में महिलाओं को नाक से घर से बाहर निकलने दिया बल्कि उन्हें लड़ाई में भी आगे किया महिलाओं ने लाठियां भी खाईं. अच्छी बात है कि इस बार घर के पुरुषों नहीं, महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. अब वक्त आ गया है की महिलाओं को लेकर छोटी-छोटी सोच से आगे बढ़ा जाए और एक नई शुरुआत की जाए.

'ये हमारी दूसरी आजादी है'

आंदोलन में मौजूद एक महिला कहती है कि ये हमारी दूसरी आजादी है. पहले हम घर मे चूल्हा चौका और बर्तन तक सीमित थे. इस आंदोलन में आकर हमने बहुत कुछ सीखा , अब इन सब चीजों का आगे इस्तेमाल करेंगे. अब महिला शक्ति रुकने वाली नहीं. 

(इनपुट- मनीष चौरसिया)

 

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