EWS आरक्षण: क्यों पेचीदा फैसला
आरक्षण की कई गिरहें हैं. आप इसकी एक डोर को सुलझाते हैं, दूसरी उलझ जाती है. ऐसी ही एक डोर है EWS... यानि गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था. इसके लिए 103वां संविधान संशोधन किया गया जिसको बहुत से लोगों ने संविधान की मूल भावना के खिलाफ़ माना. लेकिन आज 5 जजों की बेंच में से 3 जजों ने इसे सही बताया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS आरक्षण के समर्थन में फैसला सुनाया. तो चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने असहमति जताई.
लेकिन कुछ सवाल और भी हैं. जैसे एक चीज़ तो ये क्लियर है कि अब तक जो रिजर्वेशन सामाजिक और शैक्षणिक था, वो अब आर्थिक आधार पर भी दिया जा सकेगा लेकिन जो आरक्षण अभ तक अपवाद था, क्या इस फैसले ने उसको नियम बना दिया है और क्या EWS आरक्षण 50 परसेंट की सीमा का उलंघन करता है? एक बातचीत इस पर हो रही है कि क्या आने वाले समय में ईडब्ल्यूएस के 10 परसेंट की सीमा भी बढ़ेगी या फिर जो ओबीसी, एससी एसटी रिजर्वेशन अब तक 50 परसेंट के दायरे में ही समेटने की बात होती थी, क्या उस दिशा में भी खिड़कियां खुलेंगी? 'दिन भर' में सुनने के लिए यहां क्लिक करें.
भारत जोड़ो यात्रा की असल परीक्षा!
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा आज महाराष्ट्र में एंटर कर गई. महाराष्ट्र में दो हफ्तों तक ये यात्रा रहनेवाली है. इस दौरान ये 15 विधानसभाओं और 6 संसदीय क्षेत्रों को कवर करेगी. राहुल गांधी इस दौरान दो रैली भी करेंगे.
दरअसल, दक्षिण भारत के पांच राज्य, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना होते हुए ये यात्रा जब नांदेड़ होते हुए महाराष्ट्र में आज एंटर कर रही थी तो चर्चा इस पर होने लगी कि क्या यहां उद्धव ठाकरे और शरद पवार जैसे रीजनल प्लेयर्स का साथ मिलेगा या राहुल एकला चलो रे के मंत्र पर चलेंगे?
सवाल ये भी है कि दक्षिण भारत में जो स्वागत और समर्थन राहुल को मिला क्या नॉर्थ इंडिया में भी वो बरकरार रहेगा क्योंकि इन स्टेट्स में बीजेपी न सिर्फ इलेक्टोरली बल्कि आइडियोलॉजी के लेवल पर भी बहुत मजबूत है. क्या यहां से इस यात्रा को मिल रहे जन समर्थन में कमी आएगी या फिर और बड़ी संख्या में लोग जुड़ेंगे, कितना बड़ा चैलेंज है यहां से आगे कांग्रेस के लिए, कांग्रेस जो सिर्फ चार राज्यों में सिमट कर रह गई है, दो अपने बलबूते और तमिलनाडु और झारखंड में जूनियर प्लेयर के तौर पर, क्या ये यात्रा उनसे आगे बढ़कर, कम से कम दक्षिण भारत में कांग्रेस को कुछ संजीवनी दिला पाई है? 'दिन भर' में सुनने के लिए यहां क्लिक करें.
मंदी कितनी दूर…?
सात महीने पहले से ही वैश्विक मंदी की आहट है. लेकिन धीरे-धीरे ये आहट आमद में बदलने लगी है. दुनिया भर के आर्थिक जानकारों की मानें तो इस आर्थिक मंदी का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर होगा. इसके बाद ब्रिटेन और यूरोप को मंदी की गहरी चोट पड़ सकती है. चीन भी लपेटे में आएगा. हालांकि भारत के लिए कहा जा रहा है कि यहां असर कम होगा. IMF की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत बेहतर स्थिति में है लेकिन मंदी के खतरे के बीच IMF ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 के लिए भारत की Economic Growth Rate का अनुमान घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया है.
दूसरी तरफ फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा भी छंटनी करने वाली है. ऐसा न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है. कंपनी का कहना है कि अगले साल मेटावर्स की वजह से उन्हें काफी नुकसान होगा. इस साल कंपनी का शेयर भी 70 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है. तो क्या ये भी मंदी की ओर इशारा कर रहा है.. हम इसपर आएंगे लेकिन सबसे पहले वैश्विक मंदी को लेकर बात करते हैं कि IMF क्यों कह रहा है कि भारत में इसका असर कम दिखेगा, 'दिन भर' में सुनने के लिए यहां क्लिक करें.
जलवायु परिवर्तन: भारत के सामने चुनौतियां!
पिछले कुछ बरसों से दुनिया अजीबोगरीब बदलाव देख रही है. सूखाग्रस्त रहनेवाले इलाकों में बाढ़, गर्मी का लगातार बढ़ता प्रकोप तो जंगलों में लगती आग. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनमें से बहुत-सी घटनाएं जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रही है. क्लाइमेट चेंज से कैसे डील किया जाए, इसके लिए हर साल दुनिया भर के नेता यूनाइटेड नेशंस के क्लाइमेट समिट में जमा होते हैं. इसे COP यानी कांफ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज कहा जाता है. इस साल 27वीं सालाना बैठक इजिप्ट के शर्म अल-शेख में हो रही है, सो शॉर्ट फॉर्म में इसे COP 27 कहा जा रहा है.
6 नवंबर को शुरू हुआ ये सम्मेलन 18 नवंबर तक चलेगा. लगभग 200 देशों के नेता इसमें हिस्सा ले रहे हैं. भारत से पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव इसमें शामिल हैं. पिछले साल के COP26 सम्मेलन में करीब 200 देशों ने अपने कार्बन एमिशन को कम करने का टारगेट रखा था. भारत की तरफ से पीएम मोदी ने साल 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन एमिशन का लक्ष्य तय किया था. COP 27 में इस बार किन चीज़ों पर खासकर सबकी नज़र रहेगी?
रूस यूक्रेन युद्ध के बाद ऊर्जा के डायनेमिक्स बदले हैं, और एक समझ ये है कि भारत को अपनी डिपेंडेंसी कोल पर पहले से भी ज्यादा बढ़ानी पड़ेगी, दूसरी तरफ दुनिया के बड़े देश मांग कर रहे हैं कि कोयले का खनन कम किया जाना चाहिए. ऐसे में, भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था के लिए इन दोनों स्थितियों के बीच तालमेल बिठाना कितना आसान होगा? 'दिन भर' में सुनने के लिए यहां क्लिक करें.
शुभम तिवारी / ख़ुशबू कुमार