मुंबई: दिंडोशी सेशन कोर्ट ने सीरियल रेपिस्ट को तीसरे मामले में किया बरी

मुंबई के दिंडोशी सेशन कोर्ट ने 34 वर्षीय सीरियल रेपिस्ट रियान अब्दुल कुरैशी को एक नाबालिग के बलात्कार के मामले में बरी कर दिया है. कुल 22 मामलों का सामना कर रहे कुरैशी के लिए यह तीसरा मामला है जिसमें उन्हें बरी किया गया. अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश की गई पहचान परेड (TIP) को गंभीर रूप से दोषपूर्ण पाया, जिसके चलते उसे 'संदेह का लाभ' दिया गया.

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दोंडशी सेशन कोर्ट ने तीसरे मामले में रेप के आरोपी को किया बरी. (photo: Representational) दोंडशी सेशन कोर्ट ने तीसरे मामले में रेप के आरोपी को किया बरी. (photo: Representational)

विद्या

  • मुंबई,
  • 13 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:32 PM IST

दिंडोशी सेशन कोर्ट ने सीरियल रेपिस्ट रियान अब्दुल कुरैशी को एक नाबालिग से बलात्कार के मामले में बरी कर दिया. अदालत ने ये फैसला अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों में खामी के कारण दिया. विशेष न्यायाधीश नीता एस अनेकर ने पाया कि अभियोजन पक्ष ये साबित करने में विफल रहा कि कुरैशी ही अपराधी था. ये तीसरा मामला है, जिसमें उसे बरी किया गया है. 34 वर्षीय सीरियल रेपिस्ट पर मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई समेत बलात्कार के कुल 22 मामले दर्ज हैं.

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पीड़ित की मां द्वारा 8 जून, 2017 को गोरेगांव पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराई गई थी. कथित तौर पर ये अपराध 6 जून, 2017 को हुआ था. घटना के वक्त पीड़ित की उम्र 11 वर्ष थी. 

पीड़ित ने गवाही दी कि एक अज्ञात व्यक्ति उसे उसकी मां द्वारा खरीदे गए गीजर को लेने के बहाने से बहला-फुसलाकर उसके भवन के ग्राउंड फ्लोर से ले गया. इस मामले में कुरैशी पर IPC और POCSO अधिनियम के तहत गंभीर भेदक यौन हमला, बलात्कार, अपहरण और आपराधिक धमकी समेत कई आरोप लगाए गए थे.

पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि वह व्यक्ति उसे कई इमारतों में ले गया, लेकिन अंत में वह उसे एक छत या सीढ़ी पर ले गया, जहां उसे नाबालिग को कपड़े उतारने को मजबूर किया और फिर दुष्कर्म किया. साथ ही आरोपी ने धमकी दी कि अगर वह चिल्लाई तो वह उसे जान से मार देगा.

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मेडिकल सबूत और जांच में देरी

अभियोजन पक्ष की ओर से एपीपी गीता मालनकर ने पीड़िता और उसकी मां के साथ-साथ मेडिकल और पुलिस अधिकारियों के बयानों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि पीड़िता की गवाही घटना के बारे में स्पष्ट और विश्वसनीय थी, जिसकी पुष्टि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसके बयान से भी होती है. मेडिकल सबूत, जांच में तीन दिन की देरी के कारण कोई गंभीर चोट नहीं दिखी, लेकिन इससे पीड़िता की मौखिक गवाही की विश्वसनीयता कम नहीं होती.

कुरैशी के वकीलों ने उठाए सवाल

कुरैशी के वकीलों नाज़नीन खत्री और आशिया शेख ने पहचान प्रक्रिया को अविश्वसनीय करार देने की कोशिश की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पीड़ित अभियुक्त के लिए अजनबी थी. वकीलों ने बताया कि पीड़ित अपने शुरुआती बयान में न तो आरोपी का नाम, न दुकान का नाम, और न ही इमारतों का नाम बता सकी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वकीलों ने टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) को चुनौती दी और उसे अविश्वसनीय बताया.

कोर्ट ने TIP को पाया दोषपूर्ण

सभी दलीलों पर विचार करने के बाद विशेष न्यायाधीश नीता एस अनेकर ने देखा कि अभियोजन पक्ष आरोपी कुरैशी को अपराध का दोषी साबित करने में असफल रहा.

अदालत ने प्री-ट्रायल पहचान (टीआईपी) को गंभीर खामियां और विश्वसनीयता की कमी थी.

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कोर्ट ने ये भी कहा कि टीआईपी वर्तमान मामले और उसी अभियुक्त से जुड़े एक अन्य अन्य विशेष मामले के लिए किया गया था और पंचनामा की पूरी कॉपी का इस्तेमाल किया गया था.

अदालत ने कहा कि अधिकारियों ने दोनों मामलों की गवाहों-पीड़ितों के बीच बातचीत रोकने के लिए  सावधानी बरतने में विफल रहे जो सतर्कता का उल्लंघन है. इस बात का उल्लेख नहीं था कि परेड़ में इस्तेमाल किए गए डमी की शारीरिक बनावट, रूप-रंग अभियुक्तों से मिलता-जुलता था, जिससे पक्षपात हुआ है.

आरोपी को मिला संदेह का लाभ

कोर्ट ने कहा कि चूंकि पीड़िता अभियुक्त के लिए अजनबी थी. इसलिए काफी वक्त बीत जाने के बाद, वैध पूर्व परेड द्वारा पुष्टि न किए जाने के कारण, अदालत में उसकी पहचान पर भरोसा करना असुरक्षित माना गया, जिसके कारण आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया. हालांकि, इस मामले में बरी होने के बावजूद कुरैशी अभी भी जेल में रहेगा, क्योंकि उनके खिलाफ अभी 19 मामले बाकी हैं.

वहीं, पिछले साल दिंडोशी सत्र न्यायालय ने 2015 में दर्ज 10 वर्षीय नाबालिग से यौन शोषण के एक मामले में कुरैशी को साक्ष्य की कमी के कारण बरी किया था. इस साल की शुरुआत में मुंबई सत्र न्यायालय ने 2016 में भोइवाड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज 13 वर्षीय नाबालिग के बलात्कार और अपहरण के मामले में उसे बरी किया.

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