दिल्ली हाई कोर्ट ने आतंकी हमलों की साजिश में शामिल अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रों को तिहाड़ जेल से हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. इसके बाद, याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि इन कब्रों से उनके किस मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है और यह किस नियम का उल्लंघन है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी की इच्छा के मुताबिक किसी जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह बात सार्वजनिक है कि इन आतंकियों की कम्युनिटी के कुछ लोग जेल जाने के लिए अपराध करते हैं, जिससे वे तिहाड़ में उनकी कब्रों पर श्रद्धांजलि दे सकें.
उन्होंने कहा कि यह आतंकियों का महिमामंडन करने जैसा है. हालांकि, कोर्ट ने इस दलील पर आपत्ति जताई और कहा कि कानूनी पहलुओं तक ही सीमित रहें.
जेल में दफनाने पर सवाल...
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो फांसी पाए किसी दोषी को जेल में ही दफनाने की इजाजत देता हो. इस पर हाई कोर्ट ने जवाब दिया कि यह घटना 2013 में हुई थी और अब 12 साल बीत चुके हैं. कोर्ट ने कहा कि किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए. सरकार ने इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए ही यह फैसला लिया होगा.
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जेल एक सार्वजनिक स्थान नहीं...
हाई कोर्ट ने कहा कि कब्र अधिकारियों की सहमति से बनाई गई है. जेल कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है, बल्कि यह राज्य के स्वामित्व वाली एक जगह है, जिसका निर्माण दोषियों को कैद करने के मकसद से किया गया है.
याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन कब्रों की मौजूदगी ने तिहाड़ सेंट्रल जेल को कट्टरपंथी तीर्थस्थल में बदल दिया है, जहां चरमपंथी तत्व दोषी ठहराए गए आतंकवादियों का महिमामंडन करने के लिए इकट्ठा होते हैं.
संजय शर्मा