तिहाड़ जेल से मकबूल भट्ट और अफजल गुरु की कब्रें हटाने की मांग, दिल्ली HC में याचिका दाखिल

दिल्ली हाई कोर्ट में तिहाड़ जेल में मौजूद आतंकियों मकबूल भट्ट और अफजल गुरु की कब्रों को हटाने की याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि इन कब्रों के कारण जेल परिसर कट्टरपंथी तीर्थ स्थल बन गया है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हो रही है.

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याचिकाकर्ता ने जेल परिसर में कब्रों की उपस्थिति से संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बताया है. (File Photo: PTI) याचिकाकर्ता ने जेल परिसर में कब्रों की उपस्थिति से संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बताया है. (File Photo: PTI)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:29 PM IST

तिहाड़ जेल में मौजूद आतंकियों मकबूल भट्ट और अफजल गुरु की कब्रों को वहां से हटाने की अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की गई है. आतंकवाद से संबंधित अपराधों के लिए इनको फांसी दी गई थी. मोहम्मद मकबूल भट्ट और मोहम्मद अफजल गुरु की कब्रों को दिल्ली की सेंट्रल जेल तिहाड़ से हटाने की मांग की गई है.

एक विकल्प के रूप में प्रार्थना की गई है कि जेल के संबंधित अधिकारियों को अदालत आदेश दे कि वो कानून के अनुसार आतंकियों के कब्र में मौजूद पार्थिव अवशेष को किसी गुप्त स्थान पर स्थानांतरित करें. ताकि आतंकवाद के महिमामंडन और जेल परिसर के दुरुपयोग को रोका जा सके.

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विश्व वैदिक सनातन संघ ने दायर की याचिका

विश्व वैदिक सनातन संघ की याचिका में कहा गया है कि जेल के अंदर इन कब्रों का निर्माण और उनका अस्तित्व अवैध, असंवैधानिक और सार्वजनिक हित के खिलाफ है. इससे दिल्ली जेल नियम, 2018 के प्रावधानों का उल्लंघन भी होता है. फांसी दिए गए कैदियों के शवों का इस तरह से निपटान अनिवार्य है जिससे महिमामंडन रुके, जेल अनुशासन और कानून व्यवस्था बनी रहे. तिहाड़ में इन कट्टरपंथी आतंकियों की कब्रों ने सेंट्रल जेल, तिहाड़ को 'कट्टरपंथी तीर्थ स्थल' में बदल दिया है. यहां चरमपंथी तत्व दोषी आतंकवादियों की पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं.

'जेल में कब्रों से कमजोर हो रही राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था'

याचिका में कहा गया है कि यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि भारत के संविधान के तहत ही धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों के सीधे उल्लंघन में आतंकवाद को भी पवित्र करता है. याचिकाकर्ता के अनुसार, प्रार्थनाओं के समर्थन में, याचिका में फांसी दिए गए आतंकवादी अजमल कसाब और याकूब मेमन के मामले का हवाला दिया गया है, जिन्हें दफनाया गया था. याचिकाकर्ता के अनुसार, उन्हें इस तरह से दफनाया गया था ताकि कब्रों का महिमामंडन न हो सके.

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'संक्रामक और खतरनाक बीमारियों का गंभीर खतरा'

जेल अधिनियम, 1894, दिल्ली जेल मैनुअल, 2018, डीएमसी अधिनियम और दिल्ली के मास्टर प्लान-2021 का हवाला देते हुए, यह तर्क दिया जाता है कि कानूनी प्रावधान और नियम जेल परिसर के भीतर धार्मिक संरचनाओं, मंदिरों या कब्रों के निर्माण की अनुमति नहीं देते हैं. न तो उक्त अधिनियम और न ही नियम जेल परिसर के अंदर किसी आतंकवादी या दोषी को दफनाने का प्रावधान करते हैं. हालांकि, यह रिकॉर्ड की बात है कि दिल्ली की तिहाड़ सेंट्रल जेल में मौत की सजा सुनाए गए दो आतंकवादियों को इसके परिसर में ही दफनाया गया था. 

याचिकाकर्ता ने आगे दावा किया कि जेल परिसर के भीतर कब्रों की उपस्थिति से तिहाड़ जेल के कैदियों और कर्मचारियों दोनों के लिए संक्रामक और खतरनाक बीमारियों का गंभीर खतरा है. यह याचिका एडवोकेट बरुण कुमार सिन्हा के माध्यम से दायर की गई है.

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