यूं तो पिछले लगभग 1 महीने में किसान आंदोलन के कई पहलू देखने को मिले हैं, लेकिन आंदोलन में सबसे बड़ा योगदान युवाओं का है, जो अपने जोश से लगातार माहौल गर्म किए हुए है. मगर युवाओं के साथ बुजुर्ग भी पीछे नहीं है हैं. आंदोलन यात्रा में अगर आप गाजीपुर बॉर्डर पर एक चक्कर मारेंगे तो कई सारे ऐसे बुजुर्ग भी मिल जाएंगे, जिनकी उम्र 90 से भी अधिक है. कोई अपनी लाठी के सहारे चल रहा है, तो कोई इसी आंदोलन में अपने जोश खरोश के दम पर 24 घंटे इसका हिस्सा बना हुआ है. ऐसे ही कई बुजुर्ग किसानों से 'आज तक' ने खास बातचीत की और उनके आने का मकसद भी जाना, साथ ही इस उम्र में उनके जोश की कहानी भी जानी.
90 की उम्र कर चुके राजे सिंह (शामली) और श्याम सिंह (हापुड़)
किसान आंदोलन में यह दोनों एक साथ जोड़ी में दिखाई पड़े. चेहरे पर झुर्रियों ने ऐसी जगह बना ली है, मानो उनके अपने खेत बिन पानी सूख गए हों. दोनों एक साथ ही चलते-फिरते हैं, साथ बैठते हैं हुक्का गुड़-गुड़ करते हैं और साथ ही अलाव भी सेंकते हैं. दिसंबर की सुबह-सुबह जब हमारी मुलाकात उनसे हुई, तो उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. कहा- हम किसानों के साथ पहले भी थे, आज भी हैं और जब तक रहेंगे सिपाही बनकर रहेंगे.
अपनी गर्म टोपी निकाल कर फट से भारतीय किसान यूनियन की टोपी पहन लेते हैं राजे सिंह और फिर कहते हैं, जब तक हरी टोपी लगाई नहीं तब तक अपनी पहचान होती नहीं. श्याम सिंह भी साथ साथ है, घनी दाढ़ी है जो बिल्कुल सफेद हो चुकी है. लेकिन जज्बा अभी राजे सिंह जितना ही हरा भरा है. कहते हैं, आएं हैं तो अब जीत कर ही जाना है.
मुजफ्फरनगर के 90 वर्षीय आरिफ
अभी हम कुछ ही दूर आगे बढ़े थे कि आरिफ साहब दिखाई पड़े. 90 साल की उम्र में लाठी टेककर घुटनों के बल बैठे थे. कल ही मुजफ्फरनगर से आए हैं, इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए. कहते हैं कि यह लाठी सिर्फ मुझे इस उम्र में संभालने के लिए नहीं है, बल्कि वक्त आए तो किसान इसी लाठी का अलग-अलग तौर पर इस्तेमाल भी करता है.
आरिफ आगे कहते हैं हमने कई आंदोलन देखें, लेकिन यह आंदोलन हटकर है. यहां पर हर उम्र के लोग हैं और सब से मिलकर मजा भी खूब आ रहा है. कहते हैं कि सरकार आंदोलन को कमजोर करना चाहती है, लेकिन हम यहां तब तक डटे रहेंगे जब तक यह आंदोलन चलेगा, चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए.
देखें- आजतक LIVE
पीलीभीत के 89 वर्षीय सरदार जीत सिंह
इस बीच सरदार जीत सिंह आंदोलन के मंच के आसपास ही दिख जाते हैं. लंबी चौड़ी कद काठी के जीत सिंह जिला पीलीभीत से आते हैं और आंदोलन की शुरुआत से ही उसका हिस्सा बने हुए हैं. उनके लिए उम्र सिर्फ एक संख्या भर है, देखने में स्वस्थ तो हैं ही, युवाओं से भी काफी फुर्तीले हैं. जब 'आज तक' की टीम से मिले तो वह युवा प्रदर्शनकारियों को ही उनकी ट्रैक्टर ट्रॉलीयों से लेने पहुंचे थे.
धान की खेती के तुरंत बाद जीत सिंह ने यह फैसला लिया कि वह इस आंदोलन का हिस्सा जरूर बनेंगे. खुद के जोश के साथ ही लगातार युवाओं से बात करते हैं, ताकि उन्हें भी जोश की कमी ना हो और उनके अनुभव से सबको फायदा भी मिले. हिंदी समझने में थोड़ी दिक्कत तो होती है, लेकिन अपनी पंजाबी में साफ-साफ कहते हैं कि इस बार तो लड़ाई आर-पार की है. हम यहां कतई हारने नहीं आए हैं.
मुजफ्फरनगर के 85 वर्षीय जगबीर
वहीं, जगबीर का इस आंदोलन में आने का मकसद बिल्कुल अलग है. तकरीबन पिछले 35 सालों से वह भारतीय किसान यूनियन में सक्रिय रहे हैं और आज भी उतना ही सक्रिय हैं. भारतीय किसान यूनियन की टोपी, झंडे, बिल्ले सब कुछ वह अपनी दुकान में रखते हैं और दिन भर लोगों को सस्ती में बेचते हैं. 'आज तक' से बातचीत में कहते हैं कि जब से यूनियन पैदा हुआ उसी दिन से वह यूनियन के साथ जुड़े हैं और बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के बहुत मजबूत और करीबी सिपाही भी रहे.
जगबीर कहते हैं कि उन्होंने पूरा जीवन किसानों के लिए लगा दिया और आगे जितनी उम्र बाकी है वह भी ऐसा ही करने में बिता देंगे. चाय की चुस्की के साथ वह अपने पुराने दिनों के कई रोचक पहलू याद करते हुए कहते हैं कि आंदोलन में उनकी भूमिका सहयोगी की है और मुख्य तौर पर युवा ही इस आंदोलन की जान हैं.
तो अगली बार अगर आंदोलन के चेहरों को याद करें तो सिर्फ युवा जोश को याद करने की जरूरत नहीं है बल्कि ऐसे बुजुर्गों को भी आप पीछे नहीं आंक सकते जिन्होंने अपने अनुभव से इस आंदोलन में रंग भरे हैं.
ये भी पढ़ें:
कुमार कुणाल