दुनिया में जब कोरोना महामारी ने कहर ढा रखा था और लोग अपने घरों में कैद थे, तब कहा गया कि हमें घर के अंदर हवार की क्वालिटी बेहतर रखनी चाहिए. इससे कोविड-19 का वायरस फैलने का खतरा कम हो जाएगा. लेकिन वास्तविकता में इस साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है. उस समय इसे लेकर जितनी भी स्टडी की गईं, किसी भी अध्ययन की रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आ पाई. इसके बाद एक समीक्षा की गई, जिसमें सामने आया कि साफ हवा से हवा के जरिए फैलने वाली संक्रामक बीमारी को कम नहीं किया जा सकता है. 32 इंटरनेशनल स्टडीज में यह बात सामने आई है.
वैसे आमतौर पर एयर ट्रीटमेंट डिवाइस दो प्रकार के होते हैं. पहला है फिल्टर एडं एयर डिसइंफेक्टर. इसके जरिए उन कणों को हटाने का काम किया जाता है, जिनमें संक्रामक वायरस हो सकते हैं. इसमें हवा में वायरस को निष्क्रिय करने के लिए पराबैंगनी विकिरण या ओजोन का उपयोग किया जाता है. कुल मिलाकर समीक्षा के दौरान 1970 और 2022 के बीच किए गए 32 अवलोकन और प्रयोगात्मक अध्ययन मिले. कुल मिलाकर, रिजल्ट यह निकला कि इन प्रौद्योगिकियों ने बीमारी की आवृत्ति या इसकी गंभीरता को कम नहीं किया.
पब्लिश नहीं की गई कोई रिपोर्ट
जब प्रयोगशाला द्वारा पुष्टि किए गए इन्फ्लूएंजा या नोरोवायरस संक्रमणों को देखा गया तो कम संक्रमणों की ओर एक स्पष्ट रुझान था. हालांकि, प्रकाशन पूर्वाग्रह किसी भी हस्तक्षेप या उपचार के स्पष्ट प्रभाव को उससे अधिक मजबूत बनाता है, क्योंकि उन नकारात्मक अध्ययनों को प्रकाशित ही नहीं किया जाता है. समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष निकला कि इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि एयर ट्रीटमेंट तकनीक सांस से संबंधित बीमारियों के जोखिम को कम करता है. समीक्षा में शामिल कोई भी अध्ययन सीधे तौर पर कोविड के बारे में नहीं था, क्योंकि अध्ययन के दौरान कोई भी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई. हालांकि, एक हालिया जर्मन अध्ययन (जुलाई में प्रकाशित) ने किंडरगार्टन में COVID पर उच्च दक्षता वाले पार्टिकुलेट एयर (हेपा) फिल्टर के प्रभाव की जांच की. शोधकर्ताओं ने उन स्कूलों में बीमारी की दर की तुलना उन स्कूलों से की जिनमें नए फिल्टर लगाए गए थे. उन्होंने पाया कि दोनों में कोई खास अंतर नहीं है. दरअसल, जिन स्कूलों में फिल्टर लगाए गए थे, वहां के बच्चों में संक्रमण दर थोड़ी अधिक थी.
वेटिंलेशन कम होने से बढ़ा जोखिम
इस अध्ययन में बीमारी के जोखिम पर वेंटिलेशन के प्रभाव जैसे खिड़कियां खुली रखने, पर शोध पर विचार नहीं किया गया. एयर ट्रीटमेंट के अध्ययन के साथ एक संभावित मुद्दा यह है कि वेंटिलेशन दर कम हो गई है, जिससे जोखिम बढ़ गया है. हाल ही में कोविड संक्रमण पर वेंटिलेशन के प्रभाव की एक व्यवस्थित समीक्षा की गई है. हालांकि वेंटिलेशन से संक्रमण को कम करने के समर्थन में कुछ और सबूत थे, लेकिन सभी अध्ययन खराब या बहुत खराब गुणवत्ता वाले थे. परिणामस्वरूप, शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इस निष्कर्ष से जुड़ा आत्मविश्वास का स्तर कम है. इसलिए वेंटिलेशन में अंतर वायु उपचार अध्ययनों में नकारात्मक निष्कर्षों की व्याख्या करने की संभावना नहीं है.
मायने रखती है कनेक्टिविटी
यदि एयर ट्रीटमेंट से बीमारी का खतरा कम नहीं होता है, तो ऐसा क्यों हो सकता है? मैं तर्क दूंगा कि कई कारण हैं कि एयर ट्रीटमेंट तकनीक कभी भी रामबाण साबित नहीं हो पाएगी. सबसे पहले, श्वसन वायरस के संचरण का जोखिम इस बात पर निर्भर करता है कि आप संक्रमित व्यक्ति के कितने करीब हैं. महामारी की शुरुआत में वैज्ञानिकों के एक समूह ने दिखाया कि किसी संक्रामक व्यक्ति के संपर्क में आने से संक्रमण का खतरा काफी कम हो जाता है.
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