अभी भी ऑपरेट कर रही हैं किलर कफ सिरप बनाने वाली कंपनियां, गाम्बिया-उज्बेकिस्तान में हुई थी कई मौतें!

कुछ साल पहले उज्बेकिस्तान और गाम्बिया में भारतीयों कंपनियों द्वारा एक्सपोर्ट किए गए कफ सिरप से बच्चों की कथित मौत पर बहुत हंगामा हुआ था. क्या इन कंपनियों पर कोई कार्रवाई हुई थी? आजतक ने अपनी जांच में पाया है कि कफ सिरप निर्यात करने वाली ये दोनों ही कंपनियां अभी भी मेडिकल सेक्टर में सक्रिय हैं.

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गाम्बिया और उज्बेकिस्तान को भारत से निर्यात किए गए कफ सिरप कई मौतों का कारण बने थे. (Photo: ITG) गाम्बिया और उज्बेकिस्तान को भारत से निर्यात किए गए कफ सिरप कई मौतों का कारण बने थे. (Photo: ITG)

मिलन शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:59 PM IST

मिलावटी कफ सिरप और बच्चों की मौत पर देश में आक्रोश ज़ोरदार जरूर है, लेकिन जैसा कि भारतीयों की याददाश्त छोटी होती है, उसी तरह कफ सिरप पर हमारा गुस्सा ज्यादा देर तक नहीं टिकता है. सितंबर 2022 में जब गाम्बिया और उज़्बेकिस्तान में भारतीय कंपनियों द्वारा बनाए गए खराब कप सिरप पीने से दर्जनों बच्चों की मौत हो गई तो दुनिया भर में हंगामा हुआ. इसकी जांच शुरू हुई, बयान जारी हुए, उंगलियां उठीं, लेकिन आखिरकार किसी को सजा नहीं मिली. 

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2022 में दो भारतीय दवा कंपनियां हरियाणा स्थित मेडेन फार्मास्युटिकल्स और दिल्ली स्थित मैरियन बायोटेक इस विवाद के कारण चर्चा में आ गईं. 

गाम्बिया और उज़्बेकिस्तान को निर्यात किए गए इन दवा कंपनियों के कफ सिरप किडनी पर नुकसानदेह असर डालने वाले साबित हुए और दर्जनों बच्चों की मौत का कारण बने. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी जारी करते हुए सभी देशों से इन प्रोडक्ट को तुरंत हटाने को कहा. 

बावजूद इसके भारत में इन कंपनियों पर कोई जवाबदेही तय नहीं की गई. आज तक ने अपनी जांच में यहां तक पाया है कि मेडेन फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड दूसरी दवाएं अभी बना रहा है और निर्यात करना जारी रखे हुए है. इनमें इंजेक्शन पाउडर से लेकर टैबलेट और कैप्सूल तक शामिल है. मानो कुछ हुआ ही न हो. 

इसी तरह मैरियन बायोटेक जिसका कफ सिरप उज़्बेकिस्तान में 65 बच्चों की मौत से जुड़ा था ने कुछ समय के लिए दवा बनाने का अपना लाइसेंस खो दिया. लेकिन एक अस्थायी निलंबन के बाद इसके अन्य विभाग चालू हैं और घरेलू और विदेशी बाजारों में अलग-अलग फ़ॉर्मूले बेच रहे हैं. 

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मेडेन फार्मास्युटिकल्स के मामले में भारत सरकार ने इस कंपनी को क्लीन चिट दे दी. क्योंकि सरकारी परीक्षणों में कंपनी के हरियाणा स्थित कारखाने से लिए गए नमूनों में कथित तौर पर "कोई मिलावट" नहीं पाया गया था. यह तब हुआ जब विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्वतंत्र जांच में गाम्बिया को निर्यात किए गए सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) पाए गए है. ये दोनों ही चीजें जहरीले औद्योगिक सॉल्वेंट की कैटेगरी में आती हैं. रिपोर्ट के अनुसार इस सिरप को पीने से कथित तौर पर  70 बच्चों की मौत हो गई थी. इसके परिणामस्वरूप मेडेन फार्मास्युटिकल्स ऑपरेशन अस्थायी रूप से बंद हो गया, लेकिन इस कंपनी पर कोई आपराधिक आरोप या आर्थिक दंड नहीं लगाया गया. 

सिर्फ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा, लेकिन कारोबार बरकरार

इस विवाद का दोनों कंपनियों की इ्मेज पर असर पड़ा, लेकिन प्रशासनिक तौर पर इसका कोई असर नहीं हुआ. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी बदनामी हुई, लेकिन ब्लैकलिस्टिंग, आर्थिक दंड या आपराधिक मुकदमा जैसे दंडात्मक उपायों का न होना एक व्यवस्थागत विफलता को दर्शाता है. 

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भारत में कमजोर नियमों की वजह से निर्यात उल्लंघन अक्सर नज़रअंदाज़ हो जाते हैं. इसके पीछे उचित इको सिस्टम का अभाव है. विदेशी बाजारों के लिए भेजी जाने वाली दवाओं की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा कड़ी निगरानी नहीं हो पाती हैं. जब मौतें विदेश में होती हैं, तो अधिकार क्षेत्र की दुविधा अक्सर कंपनियों को घरेलू जवाबदेही से बचने का मौका देती है. 

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नियामक खामियों का खतरनाक परिणाम: किसी कंपनी की छवि को नुकसान हो सकता है, लेकिन उसका कारोबार बच जाता है. 

मेडेन फार्मा का मामला

मेडेन फार्मा के मामले में जब WHO ने मेडेन की चार खांसी की सिरप को गाम्बिया में बच्चों की किडनी की समस्याओं और मौतों से जोड़ा तो हरियाणा के ड्रग्स कंट्रोलर और केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने मेडेन के सोनीपत फैक्ट्री में प्रोडक्शन रोकने का आदेश दिया. कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. 

इस दौरान निरीक्षण में पाई गई खामियों (जैसे पुराने प्रोपीलीन ग्लाइकॉल का उपयोग, डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG)/एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) की जांच न करना) का जवाब मांगा गया. इसका जवाब न संतोषजनक होने पर लाइसेंस रद्द हो सकता था. हालांकि भारतीय अधिकारियों ने दावा किया कि उनके टेस्ट में निर्यात किए गए बैच में DEG/EG नहीं मिला. 

मैरियन बायोटेक का मामला

दिसंबर 2022 में उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौतों के बाद मैरियन की सिरप (Dok-1 Max, Ambronol) की जांच हुई. नोएडा के कारखाने में दस्तावेजों की कमी और क्वालिटी कंट्रोल में खामियां पाई गईं. यहां  तो कंपनी  DoK-1 Max बनाने की अनुमति से जुड़े दस्तावेज ही उपलबंध नहीं करवा पाई.  प्रशासन ने तुरंत सिरप का प्रोडक्शन रुकवा दिया और जनवरी 2023 में लाइसेंस निलंबित कर दिया गया. बाद में उत्तर प्रदेश ड्रग्स अथॉरिटी ने लाइसेंस रद्द कर दिया. एक FIR दर्ज की गई, तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया, और दो निदेशक फरार घोषित हुए. 

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डीसीजीआई (केन्द्रीय औषधि नियंत्रक) ने राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकारियों को निर्देश जारी कर यह सुनिश्चित करने को कहा कि अन्य निर्माता माया केमटेक इंडिया से कच्चा माल (प्रोपिलीन ग्लाइकॉल) न खरीदें. ये कंपनी मैरियन को संदिग्ध सामग्री की आपूर्ति करने में शामिल था. 

असली पेच यह है कि प्रोपिलीन ग्लाइकॉल जैसे कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली कंपनियां जो कफ सिरप में सॉल्वेंट  के रूप में इस्तेमाल होती हैं, अस्थायी रूप से इसका खामियाजा भुगतती हैं. बता दें कि मेडिकल ग्रेड की बजाय जब कफ सिरप में औद्योगिक ग्रेड मिलाया जाता है, तो वह जहर बन जाता है. यह मामला कोविड-19 जैसा ही है जब मरीजों को मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन देने के बजाय औद्योगिक ग्रेड ऑक्सीजन दी गई थी. इसी वजह से कुछ मरीजों में ब्लैक फंगस के मामले सामने आए थे.

किसी कंपनी को "क्लीन चिट" देने का मतलब है कि भारतीय नियामक/परीक्षण अधिकारियों द्वारा की गई जांच में उन्हें ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत आरोप लगाने या दोषी ठहराने के लिए कानूनी मानकों को पूरा करने वाले सबूत नहीं मिले.

कानूनी तौर पर, केवल संदेह या विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के आधार पर निरीक्षण नमूने लिए जा सकते हैं और यदि कमियां पाई जाती हैं, तो कारण बताओ नोटिस,  लाइसेंस निलंबन या कैंसिलेशन संभव है. लेकिन मुकदमा चलाने के लिए, ठोस सबूत (लैब रिपोर्ट, कस्टडी चेन, निर्यात किए गए बैचों का परीक्षण किए गए बैचों के समान होने का प्रमाण) की आवश्यकता होती है.
 

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