महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की शहरी आबादी में कहर मचाने के बाद अब कोरोना संक्रमण ने गांवों में भी दस्तक दे दी है. कोविड-19 की चपेट में अब गांव भी आ रहे हैं. लोगों की बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं. गांव में पांव पसारते कोरोना संकट पर काबू पाने के मद्देनजर, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों से जुड़े इलाकों, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के लिए कोरोना महामारी की रोकथाम और प्रबंधन पर मानक संचालन प्रकिया (एसओपी) तय की है.
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए नोडल अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे वे रैपिड एंटीजन डिटेक्शन किट का सही तरह से इस्तेमाल करना सीखें और सही समय पर कोरोना मरीजों की पहचान हो सके. ग्रामीण इलाकों में लगातार बढ़ रहे मामलों की रोकथाम के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर जोर दिया जाए, जिससे कोरोना संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए लोगों पर नजर रखी जा सके. यह प्रक्रिया इंटिग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम(आईडीएसपी) के मुताबिक होनी चाहिए.
होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों को कोरोना किट उपलब्ध कराई जाए. ऐसे लोग जिन्हें दवाइयों की जरूरत है, उन्हें पैरासिटामोल, आइवरमेक्टिन, कफ सीरप, मल्टीविटामिन्स डॉक्टर की सलाह पर ही दी जाए. कोरोना मरीज की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें बड़े स्वास्थ्य केंद्रों में रेफर किया जाए. शहरी क्षेत्रों के बाहरी इलाके और कस्बों में कम से कम 30 बेड की क्षमता वाले कोविड केयर सेंटर्स बनाए जाएं.
गंभीर मरीजों को किया जाए एडमिट
होम आइसोलेशन में रह रहे बिना लक्षण वाले मरीजों को आईसीएमआर के प्रोटोकॉल के मुताबिक क्वारनटीन और जांच की सलाह देनी चाहिए. अगर ऑक्सीजन लेवल 94 से नीचे जाता है तो उन्हें अस्पताल का रुख करना चाहिए, जहां कोविड सस्पेक्ट या मरीज मानकर एडमिट किया जाए.
आइसोलेशन पर विशेष जोर
अगर कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो कोरोना मरीजों के लिए या संदिग्धों के लिए अलग रूम की व्यवस्था की जाए, जहां उनके आने जाने की अलग व्यवस्था हो. जिन रोगियों में कोरोना संक्रमण पुष्ट हुआ हो, उनके साथ किसी को भी न रखा जाए. ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहे कोरोना संकट के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है, जिससे गांवों में कोरोना संक्रमण का फैलाव कम हो और मृत्युदर रोकी जा सके.
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स्नेहा मोरदानी