पाकिस्तान-चीन के खिलाफ 'चिनाब चक्रव्यूह', जानें- सबसे ऊंचे रेल ब्रिज से होंगे क्या रणनीतिक फायदे

जम्मू-कश्मीर में चिनाब रेल ब्रिज को बनाने की लागत 1500 करोड़ रुपये है. सवाल ये है कि इतनी बड़ी रकम एक पुल पर क्यों खर्च की गई तो इसका जवाब आतंक से लेकर चीन की चुनौती से जुड़ा हुआ है.

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 प्रधानमंत्री मोदी ने चिनाब रेल पुल का उद्घाटन किया. (PTI Photo) प्रधानमंत्री मोदी ने चिनाब रेल पुल का उद्घाटन किया. (PTI Photo)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2025,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के आतंकियों के लिए एक महीने के भीतर कयामत वाली रात के बाद कयामत वाला दिन तक ला दिया है. क्योंकि भारत ने चीन-पाकिस्तान के खिलाफ चिनाब वाला चक्रव्यूह रच दिया है. वो रेलवे पुल, जिसके बारे में आप सिर्फ दुनिया में सबसे ऊंचा रेल पुल होने का रिकॉर्ड ही सोच रहे हैं तो यह खबरदार करती रिपोर्ट जरूर पढ़िए, ताकि आप सजग होकर ये जान सकें कि एक पुल कैसे चीन से लेकर पाकिस्तान तक की परेशानी बढ़ाएगा.

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आज छह जून है...आज से ठीक एक महीने पहले ऐसी ही रात के कुछ घंटे बाद भारतीय सेना को पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की ऐसी छूट मिली थी कि पूरी दुनिया ने ऑपरेशन सिंदूर को देखा. आज एक महीने बाद उसी पाकिस्तान के आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देता ऑपरेशन चिनाब प्रधानमंत्री ने पूरा कर दिया है. अब तक आपको हो सकता है कि बताया गया हो कि प्रधानमंत्री ने पहली बार कश्मीर को रेल नेटवर्क से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल का उद्घाटन किया है. लेकिन आपको ये किसी ने नहीं बताया होगा कि प्रधानमंत्री ने आज चिनाब का चक्रव्यूह भी पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ रच दिया है.

हर मौसम में देश के बाकी हिस्सों से कनेक्ट रहेगा कश्मीर

दरअसल, LoC से लेकर LAC तक भारत की सेना की ताकत चिनाब पुल बनने जा रहा है. अब भारी बर्फबारी में भी कश्मीर से लद्दाख तक भारतीय सेना का पहुंचना आसान होगा. सीमा के पास के गांव तक संपर्क करने में अब सरलता होगी. ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती मिलेगी ही, साथ ही ट्रेड और टूरिज्म को अब और भी बढ़ावा मिलेगा. चिनाब ब्रिज केवल ईंट-सीमेंट-लोहे का ढांचा नहीं, ये भारत की शक्ति का जीवंत प्रतीक है. ये भारत के उज्जवल भविष्य की सिंह गर्जना है. चिनाब का चक्रव्यूह रचने के साथ प्रधानमंत्री ने अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर पहुंचकर ऑपरेशन चिनाब के साथ कई संदेश साफ कर दिए हैें. जैसे पाकिस्तान धर्म पूछकर आतंक फैलाता है. भारत धर्म की ताकत के साथ ही विकास करता है.

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दो पहाड़ों के बीच अब पहाड़ जैसा चिनाब का चक्रव्यूह खड़ा करके भारत साफ कर रहा है कि पाकिस्तान कश्मीर में पर्यटन पर वार करेगा तो भारत कश्मीर में सैलानियों की ही चट्टान खड़ा करेगा. लोग पेरिस में एफिल टावर देखने जाते हैं और ये ब्रिज उससे भी बहुत ऊंचा है. अब लोग चिनाब ब्रिज के जरिए कश्मीर देखने तो जाएगें ही, ये ब्रिज आकर्षक टूरिस्ट डेस्टिनेंस बनेगा. सब सेल्फी पॉइंट पर जाकर सेल्फी निकालेंगे. यानी जो शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर सोचते रहे कि उनके आतंकी भारत में हमला करके कश्मीर को डरा लेंगे. धर्म के नाम पर भारतीयों को डरा लेंगे. उन्ही के सामने तिरंगा लहराकर भारत साफ कर रहा है कि तुम्हारे आतंक के अड्डों को खत्म करने के बाद हिंदुस्तान जानता है कि कश्मीर को कैसे आतंक से महफूज रखना है.

चिनाब रेल ब्रिज को बनाने की लागत 1500 करोड़ रुपये

जम्मू-कश्मीर में चिनाब रेल ब्रिज को बनाने की लागत 1500 करोड़ रुपये है. सवाल ये है कि इतनी बड़ी रकम एक पुल पर क्यों खर्च की गई तो इसका जवाब आतंक से लेकर चीन की चुनौती से जुड़ा हुआ है. इस एक पुल से जहां कश्मीर के नौजवानों को नए अवसर मिलेंगे तो वहीं आतंक के खिलाफ जंग में भी तेजी आएगी. यही वजह है कि जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाथ में तिरंगा लेकर चिनाब पुल के पास लहराते हैं. वो तिरंगा सिर्फ एक पुल के उद्घाटन, एक ट्रेन की शुरुआत का उत्सव नहीं रहता, बल्कि दुश्मन को विकास के चक्रव्यूह में लाकर घेर लेने का वार बन जाता है. किसी भी बारूदी हमले से बेअसर ये पुल पाकिस्तान के गले की फांस बनने जा रहा है. 

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22 अप्रैल, 2025 वो तारीख जब पहलगाम के पास बैसरन घाटी में आतंकी हमला करके पीर पंजाल दर्रे की तरफ भाग गए. तब से अबतक उन आतंकवादियों की तलाश हो रही है. पहलगाम में जहां हमला हुआ, उसके चारों ओर पीर पंजाल पर्वत के घने जंगलों का इलाका है, जहां आतंकियों की खोज भूसे में सुई खोजने के बराबर है. एक्सपर्ट का मानना है कि ये रेल ब्रिज आतंक के इसी नेटवर्क को ध्वस्त करने का काम करेगा. कश्मीर का सपना पूरा हो चुका है. अब बारी आतंक के उस रूट पर पूर्ण विराम लगाने की है, जहां से पाकिस्तान आतंकवादियों की घुसपैठ करवाता है. पीर पंजाल दर्रा जिसे पीर की गली भी कहा जाता है, हिमालय का ही एक विस्तार है, जो PoK के किशनगंगा से हिमाचल के ऊपर ब्यास नदी तक जाती है. ये भारत में घुसपैठ के लिए नेचुरल रूट की तरह काम करती है.

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जम्मू और कश्मीर में रेल कनेक्टिविटी को बेहतर होगी

पहले कश्मीर घाटी में पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ होती थी, इसलिए आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र घाटी था. लेकिन ऑपरेशन ऑलआउट के बाद आतंकवादियों की कमर घाटी में टूट चुकी है और वो पीर-पंजाल रेंज में शिफ्ट हो गए हैं, जहां से अब आतंकी घुसपैठ हो रही है. पीर पंजाल की पहाड़ियां बहुत मुश्किल ऊबड़ खाबड़ जमीन वाली हैं, जिनकी तुलना अक्सर अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों से की जाती है. यहां रहना बहुत मुश्किल है, लेकिन आतंकवादियों ने इसे अब अपना ठिकाना बना लिया है. उन्हें यहां छिपने के लिए घने जंगल और गुफाएं मिल जाती हैं, जिससे उन्हें ढूंढना असंभव सा हो जाता है. बड़ी बात ये है कि पीर पंजाल की रेंज जम्मू को कश्मीर से जोड़ती है. इस तरह से आतंकवादियों के लिए ये सुरक्षित रास्ता बनता जा रहा है. पहलगाम हमले के बाद आतंकी इन्हीं जंगलों में भाग गए और अबतक पकड़े नहीं गए हैं. लेकिन अब इस रेल ब्रिज से खेल बदल सकता है. 

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ये पुल जम्मू और कश्मीर में रेल कनेक्टिविटी को बेहतर करेगा इससे आर्थिक विकास, पर्यटन और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. इलाके में खुशहाली आएगी. नए अवसर मिलने से नौजवानों को फायदा होगा और आतंक का काम मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा इस रेल लिंक के बनने से हर मौसम में सेनाएं और साजो-सामान सीमा तक पहुंच सकेंगे. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सीमा पर तैयारी में बड़ी मदद मिलेगी, आतंक से निपटना आसान हो जाएगा. मतलब चीन और पाकिस्तान दोनों की टेंशन बढ़ेगी. जम्मू-कश्मीर विकास के नए युग में प्रवेश कर चुका है, जहां पर चौतरफा बदलाव महसूस किया जा सकता है. घाटी में विकास की चकाचौंध ने ही आतंक के अंधेरे को कम करने का काम किया है. अब बारी पीर पंजाल रेंज की है, जहां आतंक की कमर तोड़ने में ये रेल ब्रिज अहम भूमिका निभाएगा.

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कश्मीर तक रेल कनेक्टिविटी से व्यापार को बढ़ावा

भारत के कश्मीर में दौड़ती विकास की वंदेभारत को देखकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हाफिज, शहबाज और मुनीर को डर लगने लगा है. वजह अपना पेट भरने के लिए पाकिस्तान द्वारा पीओके को दरकिनार करना. पीओके को चीन के पैसे के चक्कर में भुला देना. कश्मीर के विकास को जहां रफ्तार मिली है, तो वहीं PoK अपनी तकदीर को कोस रहा है, जब वो पाकिस्तान के कब्जे में चला गया. क्या यही वजह है कि भारत की तरफ से कहा गया कि पीओके तो खुद ही चलकर आएगा. जम्मू-कश्मीर में हो रहे विकास से पाकिस्तान इसलिए चिढ़ता है. चिनाब रेल ब्रिज को देखकर तो असीम मुनीर के सीने पर सांप लोट रहे होंगे, क्योंकि ये पुल PoK के लोगों को बेचैन कर देगा. पाकिस्तान की सरकार को कठघरे में खड़ा करने का काम करेगा. क्योंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लोग अब उसकी हकीकत जान चुके हैं. इसलिए वहां पर आए दिन प्रदर्शन होता रहता है, जबकि कश्मीर विकास के रोज नए-नए रिकॉर्ड तोड़ रहा है.

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पाकिस्तान ने PoK में विकास के बारे में कभी नहीं सोचा. उसने सिर्फ कश्मीरियों का इस्तेमाल किया. उनके पानी और खनिज संपदा को लूटकर चीन को बेच दिया. इसलिए PoK की हालत ये है कि वहां पर लकड़ी के कमजोर पुल पर लोगों को जान जोखिम में डालकर चलना पड़ता है. सड़कें और पुल न होने से PoK में नौजवानों के पास रोजगार के सीमित साधन हैं, जिस वजह से वहां पर असंतोष बढ़ रहा है. वहीं जम्मू-कश्मीर में रेल पहुंचने से कायाकल्प होने की भविष्यवाणी हो रही है. रेल चलने से कश्मीर के बागवानी इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलने की संभावना जताई जा रही है. कश्मीर की चेरी देश भर में जाएगी. जम्मू-कश्मीर हर साल देश के विभिन्न भागों में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक कीमत केे सेब, चेरी, खुबानी, अखरोट, बादाम भेजता है.

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले चंद सालों में इस उद्योग में 4 गुना की वृद्धि देखी जा सकती है और ये कारोबार 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. रेलवे परिवहन से न सिर्फ लागत कम होगी बल्कि इससे माल भेजना विश्वसनीय और समय की बचत भी करेगा. कश्मीर के बागवानी उद्योग की इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए यहां के लोगों की तरफ से एक समर्पित मालगाड़ी शुरू करने की अपील की जा रही है, जो कश्मीरी सेब के साथ-साथ अन्य उत्पादों को देश के दूरदराज के बाजारों, विशेषकर देश के पश्चिमी और दक्षिणी भागों तक ले जाए. इस तरह पहले सड़क और सुरंग और अब रेल से कश्मीर विकास के रास्ते पर पूरी रफ्तार से दौड़ लगाएगा.

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