देश के उच्च न्यायालयों में घट रहे न्यायाधीश, बढ़ रहे मुकदमे, 40 फीसदी तक पद खाली 

सुप्रीम कोर्ट में भले तय जजों की संख्या में चार पद खाली हैं, लेकिन देश के सबसे पुराने और बड़े हाईकोर्ट मे शुमार इलाहाबादए बॉम्बे और कलकत्ता हाईकोर्ट में जजों की पूरी क्षमता से 40 फीसदी तक सीटें खाली हैं. 

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प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

संजय शर्मा

  • दिल्ली,
  • 05 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 9:13 AM IST
  • सुप्रीम कोर्ट में चार पद खाली 
  • लगातार बढ़ रहा मुकदमों का बोझ

मुकदमों के लगातार बढ़ते बोझ और उच्च न्यायालयों में जजों की खाली पड़ी कुर्सियों के बीच अंतर बढ़ता ही जा रहा है. हाई कोर्ट कोलेजियम से जजों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश आने. फिर सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम से उन पर मंजूरी की मुहर लगाने और फिर केंद्र सरकार की सिफारिश के साथ राष्ट्रपति के यहां से नियुक्ति के वारंट जारी होने के बीच तालमेल की रफ्तार को देखते हुए नहीं लगता कि इन हाईकोर्ट मे जजों की सीटें पूरी क्षमता के मुताबिक भरी पूरी हों. क्योंकि जजों के रिटायर होने का समय तो तय है, लेकिन नियुक्ति की रफ्तार अपनी तरह से आगे बढ़ती है. 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की बात करें, तो 160 जजों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन आसीन जज सिर्फ 96 हैं. यानी 64 जजों की कमी है. इसी तरह बॉम्बे हाईकोर्ट में जजों के कुल स्वीकृत पद 94 हैं, जिनमें से 30 खाली हैं.कलकत्ता हाईकोर्ट में जजों के कुल स्वीकृत 72 पदों में से लगभग आधे यानी 38 खाली हैं. जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट मे करीब दस लाखए बॉम्बे हाईकोर्ट में साढ़े चार लाख और कलकत्ता हाईकोर्ट में सवा दो लाख से ज्यादा मुकदमे लंबित पड़े हैं. 

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पुराने रिकॉर्ड पलटें तो विभिन्न हाईकोर्ट कोलेजियम से केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम तक आए जजों की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित नाम में से दर्जनों वर्षों से लंबित पड़े हैं. 23 न्यायविदों की फाइल्स तो 33 महीनों से केंद्र या फिर सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के पास इस इंतजार में हैं कि इन पर हां या ना की मुहर लग जाए. सुप्रीम कोर्ट ने डेढ़ साल पहले जिन 16 न्यायविदों को विभिन्न हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने पर अपनी सहमति जताई थी, उन नामों पर केंद्र अब तक कुंडली मारे बैठा है. इनमें दिल्ली हाईकोर्ट से आए पांच नाम भी शामिल हैं. 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट कोलेजियम ने 41 नाम भेज रखे हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 22 और कलकत्ता हाईकोर्ट ने आठ नाम पिछले साल भेजे थे. हाईकोर्ट कोलेजियम ये नाम केंद्र सरकार को भेजते हैं. केंद्र उनकी खुफिया जांच कराने के बाद सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भेजता है. फिर सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम उन पर विचार कर अपनी सिफारिश के साथ केंद्र को भेजता है. फिर उसी मुताबिक जजों की नियुक्ति का वारंट राष्ट्रपति की ओर से जारी होता है. सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को इन पर फैसला लेना है. फिर केंद्र सरकार को नियुक्ति का वारंट जारी करना है.

 


 

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