कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस आरोप ने सियासी बवाल मचा हुआ है कि "हरियाणा की राई विधानसभा क्षेत्र के 10 बूथों पर एक 'ब्राजीलियाई महिला' की फोटो 22 बार छपी है." इसे उन्होंने "वोट चोरी के लिए जानबूझकर की गई हेरफेर" का सबूत बताया.
इस दावे के बाद, 'आजतक' ने दो दिनों तक हरियाणा के राई विधानसभा क्षेत्र के मछरौली और पड़ोसी गांवों का दौरा किया और अब-बदनाम "ब्राजीलियाई मॉडल की फोटो" वाले छह अलग-अलग मतदाता मामलों की पहचान की. जमीनी पड़ताल में जो सामने आया, वह क्लेरिकल त्रुटियों, पुराने रिकॉर्ड और संभावित डेटा हेरफेर का एक जटिल मिश्रण था.
जो तस्वीर सामने आई उसने “साजिश” के बजाय “सिस्टम की खामियां” उजागर कर दीं. पांच मामलों में से दो में, मतदाताओं ने स्वीकार किया कि उनकी तस्वीरें गलत छपी थीं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने बिना किसी रूकावट के अपना वोट डाला.
कोई 'वोट चोरी' नहीं, केवल फोटो की गलती
मछरौली की पिंकी ने बताया कि जब उन्होंने दिल्ली से शिफ्ट होकर नया वोटर कार्ड बनवाया, तो कार्ड में किसी दूसरी महिला की तस्वीर छप गई.उन्होंने बताया, “हमने कार्ड लौटा दिया था, सही कार्ड नहीं मिला. लेकिन आधार और वोटर स्लिप से वोट डाला. यहां कोई चोरी नहीं है.”
इसी तरह मुनेश नामक मतदाता के परिवार ने कहा कि “फोटो स्लिप में गड़बड़ थी, वोट में नहीं ” दोनों मामलों में स्थानीय लोग इसे “ऑपरेटर की गलती” बता रहे हैं, न कि किसी राजनीतिक साजिश का हिस्सा. मुनेश के देवर ने विवाद को "दुष्प्रचार" बताया और त्रुटि के लिए स्थानीय चुनाव कार्यालय को दोषी ठहराया.
ये दोनों गवाहियां राहुल गांधी के संगठित हेरफेर के आरोप को खारिज करती हैं, और इसके बजाय प्रशासनिक चूक की ओर इशारा करती हैं.
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मृत्यु प्रमाण पत्र के बावजूद लिस्ट में नाम
जांच में सबसे चौंकाने वाला मामला सामने आया गुनिया नाम की महिला का, जिनकी मृत्यु मार्च 2022 में हो चुकी थी लेकिन उनकी प्रविष्टि 2024 की वोटर लिस्ट में अब भी थी,और वही ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर के साथ.
गुनिया की सास ने मृत्यु प्रमाण पत्र दिखाते हुए कहा, “वो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन नाम अभी भी सूची में है.” यह मामला मतदाता सूची अपडेट और डेटा वेरिफिकेशन की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है.
एक ही पहचान पर दोहरा नामांकन
एक अन्य मामले में, मतदाता बिमला (पत्नी रमेश) के दो अलग-अलग नामांकन पाए गए- एक असली और दूसरा उसी नाम, मकान नंबर, लेकिन अलग EPIC नंबर और ब्राजीलियाई मॉडल की फोटो के साथ.
बिमला के बेटे, प्रदीप ने कहा, "मेरी मां ने वोट डाला, लेकिन उनके नाम और उस फोटो वाला यह दूसरा आईडी फर्जी है. जिसने भी यह बनाया है, उसे सज़ा मिलनी चाहिए." उन्होंने 'वोट हेरफेर' के राहुल गांधी के आरोप का समर्थन किया और एक ही परिवार और मकान नंबर के भीतर फर्जी आईडी होने की जांच की मांग की.
दुल्हन चली गई, नाम रह गया
सरोज, जो शादी के बाद वे भिवानी चली गईं, उनका नाम राय विधानसभा की लिस्ट में अब भी मौजूद है, उसी ब्राज़ीलियन फोटो के साथ. उनके परिवार ने नाराज़गी जताते हुए कहा, “वो 2001 से यहां वोट नहीं दे रहीं. अब भी नाम है तो ये चुनाव आयोग की गलती है.”
एक चेहरा, कई समस्याएं
पांच मामलों में दो मतदाताओं ने बताया कि उन्होंने बिना रुकावट वोट डाला, जबकि तीन मामलों ने प्रशासनिक लापरवाही और डेटा एरर को उजागर किया. “ब्राज़ीलियन महिला का चेहरा” किसी संगठित धोखाधड़ी का नहीं, बल्कि भारत की पुरानी और त्रुटिपूर्ण मतदाता डेटा प्रणाली का प्रतीक बन गया है.
क्यों होती हैं ऐसी गड़बड़ियां
डेटा प्रबंधन का संकट
सामूहिक रूप से, ये मामले किसी एक, समन्वित धोखाधड़ी के बजाय डेटा त्रुटियों और खराब मतदाता सूची प्रबंधन के एक पैटर्न की ओर इशारा करते हैं. सोनीपत जिला चुनाव कार्यालय के अधिकारियों ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि डिजिटलीकरण या डेटा माइग्रेशन के दौरान ऑपरेटर-स्तर की त्रुटियों के कारण फोटो बेमेल हो सकता है.
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राहुल गांधी का “वोट चोरी” वाला आरोप नकली और डुप्लिकेट आईडी के मामलों में कुछ हद तक सही ठहरता है, लेकिन 'आजतक' की ग्राउंड में यह दिखा कि असली समस्या राजनीति से ज़्यादा गहरी है. भारत की चुनावी प्रणाली अब भी ऐसे डेटा एरर्स की शिकार है, जिन्हें आसानी से राजनीतिक रंग दिया जा सकता है.
“ब्राज़ीलियन महिला की फोटो” कोई एक अलग फर्जीवाड़े का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत के विशाल और पुराने मतदाता डेटाबेस की एक झलक है, जिसमें क्लेरिकल गलतियां, डेटा अपडेट में देरी और डिजिटल एकीकरण की कमी जैसी खामियां मौजूद हैं. अगर ये तकनीकी कमजोरियां गलत हाथों में पड़ जाएं, तो वे न सिर्फ राजनीतिक हथियार बन सकती हैं, बल्कि वास्तविक वोटर फ्रॉड के लिए भी दरवाजे खोल सकती हैं.
श्रेया चटर्जी