हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के खिलाफ बड़े एक्शन की तैयारी, दोनों गुटों पर बैन लगा सकता है केंद्र

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों के खिलाफ केंद्र सरकार बड़ा एक्शन ले सकती है. दोनों के खिलाफ यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है. 

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हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों के खिलाफ बैन की तैयारी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों के खिलाफ बैन की तैयारी

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 5:52 PM IST
  • हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों के खिलाफ लग सकता है बैन
  • यूएपीए के तहत हो सकती है कार्रवाई

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों के खिलाफ केंद्र सरकार बड़ा एक्शन ले सकती है. दोनों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है. इससे संबंधित अधिकारियों ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में दो दशकों से अलगाववादी आंदोलन की अगुवाई कर रहे अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों पर यूएपीए के तहत बैन लगाए जाने की उम्मीद है.

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अधिकारियों ने आगे कहा कि पाकिस्तान में इंस्टीट्यूट्स द्वारा कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस सीटें देने की हालिया जांच से संकेत मिलता है कि कुछ संगठनों द्वारा उम्मीदवारों से इकट्ठे किए गए पैसे का इस्तेमाल केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंचाने के लिए किया जा रहा था.

अधिकारियों ने कहा कि हुर्रियत के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 3 (1) के तहत प्रतिबंध लगने की संभावना है. इस धारा के तहत यदि केंद्र सरकार का मानना है कि कोई यूनियन गैर-कानूनी है तो वह आधिकारिक राजपत्र में नोटिफिकेशन जारी कर ऐसे यूनियन को गैर-कानूनी घोषित कर सकती है.

दोनों गुटों पर बैन लगाने वाला यह प्रस्ताव केंद्र की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत पेश किया गया है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस साल 1993 में 26 समूहों के साथ अस्तित्व में आया था, जिसमें कुछ पाकिस्तान और प्रतिबंधित संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ और दुख्तारन-ए-मिल्लत के समर्थक शामिल थे. इसमें पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल थी.

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साल 2005 में टूट गया था अलगाववादी समूह

इसके बाद अलगाववादी समूह साल 2005 में दो गुटों में टूट गया था. इसमें एक का नेतृत्व नरमपंथी समूह मीरवाइज का था और दूसरा कट्टरपंथी समूह का नेतृत्व सैयद अली शाह गिलानी ने किया. केंद्र सरकार अब तक जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर चुकी है. दोनों पर साल 2019 में बैन लगाया गया था.

अधिकारियों का कहना है कि आतंकवादी समूहों के वित्त पोषण की जांच में अलगाववादी नेताओं की कथित संलिप्तता का संकेत मिलता है. इसमें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सदस्य और कैडर शामिल हैं. उन्होंने कहा कि कैडर्स ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों को वित्तीय मदद करने के लिए हवाला सहित विभिन्न अवैध माध्यमों से देश और विदेश से धन जुटाया.

'पैसे का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया गया'

उन्होंने यह भी दावा किया कि इकट्ठा किए गए धन का इस्तेमाल कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पथराव, व्यवस्थित रूप से स्कूलों को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एक आपराधिक साजिश के तहत किया गया था.

यूएपीए के तहत हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों पर प्रतिबंध लगाने के मामले का समर्थन करते हुए अधिकारियों ने आतंकवादी फंडिंग से संबंधित कई मामलों का हवाला दिया है. इसमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की जा रही एक जांच का मामला भी शामिल है. इसमें समूह के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है. अधिकारियों ने बताया कि दोनों गुटों के कई लोग साल 2017 से जेल में बंद हैं. जेल में बंद लोगों में गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह भी शामिल हैं. 

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