पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों के लिए नामांकन जारी है. इस बीच जगह-जगह हिंसक झड़प और लड़ाई झगड़ों के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. आलम ये है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने 8 जुलाई को होने वाले मतदान के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के आदेश दिए हैं. दरअसल, बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हिंसक झड़पें कोई नई बात नहीं है. 2018 के पंचायत चुनावों की बात करें तो हिंसा के दौरान दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई थी.
2018 के पंचायत चुनाव में आधिकारिक तौर पर झड़पों में मरने वालों की संख्या 27 है. वहीं घायलों की संख्या की बात करें तो वह इससे कई गुना अधिक है. राज्य में पिछले 50 वर्षों में राजनीतिक झगड़ों के परिणामस्वरूप मरने वाले लोगों की संख्या हजारों में है. वहीं इन हिंसक झड़प के पैटर्न को देखा जाए तो समझ में आता है कि जब-जब राज्य में कोई चुनाव होता है, तब तब ऐसी घटनाएं अचानक से बढ़ जाती हैं. सत्तारूढ़ पार्टी औऱ विपक्ष एक दूसरे को इन झड़पों के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है. जानकारों की मानें तो मारपीट और झड़पें उस दौरान बढ़ जाती हैं, सत्तारूढ़ शासन को बाहर करने के लिए कोई पार्टी तेजी से आगे बढ़ रही होती है.
विपक्षी उम्मीदवारों को पानी-गुलाब दे रहे टीएमसी कार्यकर्ता
पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई को होने वाले पंचायत चुनावों में इस बार हालात क्या रहेंगे, इसका अंदेशा लगाना सही नहीं होगा. यूं तो तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व यानी ममता बनर्जी और उनके उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी ने शांति बनाए रखने को निर्देश जारी किए हैं. इसके परिणामस्वरूप टीएमसी कार्यकर्ताओं ने पश्चिम बर्धमान जिले के आसनसोल में नामांकन दाखिल करने के लिए बीडीओ कार्यालय पहुंचने वाले विपक्षी उम्मीदवारों को ठंडा पानी, गुलाब आदि वितरित किए.
मारपीट में विकेट का भी हो रहा उपयोग
शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव सुनिश्चित करने के टीएमसी के इरादों के दूसरी ओर कई जगह बम फेंके गए, वाहनों पर हमला किया गया, विपक्षी उम्मीदवारों के साथ मारपीट की गई, बंदूकें जब्त की गईं. इससे साफ है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले होने वाली हिंसा का रिकॉर्ड नहीं बदला है. बल्कि अब नई चीजों को हथियार बनाया जा रहा है, जैसे कि क्रिकेट मैचों में इस्तेमाल होने वाले विकेट. लोग विकेट लेकर नामांकन करने वालों पर हमला कर रहे हैं.
2018 में 20 हजार से अधिक सीटों पर निर्विरोध चुनाव
विपक्षी पार्टियां लगातार सत्तारूढ़ टीएमसी पर उनके उम्मीदवारों पर हमला करने के आरोप लगा रही हैं. राज्यपाल से और कोर्ट में भी इसकी शिकायत की गई है. 2018 की बात करें तो जगह-जगह हुए हिंसक प्रदर्शन के कारण ही तब 34 प्रतिशत यानी 20,000 से अधिक सीटों पर टीएमसी उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए. इन सीटों पर दूसरे किसी उम्मीदवार ने डर के कारण नामांकन ही दाखिल नहीं किया था.
इस बार, टीएमसी बहुत अधिक सचेत नजर आ रही है. इसका कारण यह है कि सत्ताधारी पार्टी लगातार आरोपों का सामना कर रही है. हालांकि राज्य में चुनाव से पहले होने वाली हिंसा को रोकना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. ममता बनर्जी की अपील और विपक्ष की सर्वदलीय बैठक के बाद भी हिंसा की छुटपुट घटनाएं सामने आईं. वहीं हाईकोर्ट ने भी इन घटनाओं को लेकर नाराजगी जताई है.
73 हजार उम्मीदवारों के नाम ममता के लिए बड़ी चुनौती
बता दें कि ममता बनर्जी के लिए पंचायत चुनाव सबसे कठिन चुनौती बताई जाती है. टीएमसी को बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को मैदान में उतारना उसके संगठन के लिए एक चुनौती है. राज्य में कुल 73,000 से अधिक पंचायत के लिए प्रतिनिधियों को मैदान में उतारना किसी चुनौती से कम नहीं है. इसमें 22 जिलों के लिए 928 जिला परिषद उम्मीदवार, 9,730 पंचायत समिति उम्मीदवार और 63,229 ग्राम पंचायत उम्मीदवार शामिल हैं. पिछला रिकॉर्ड देखें तो उम्मीदवारी को लेकर भी हिंसक प्रदर्शन हुए हैं. 2022 में हुए नगरपालिका चुनावों के लिए उम्मीदवारों की दो सूचियां सामने आने पर पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच ही मारपीट हो गई थी.
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