बीजेपी जाति जनगणना के तोड़ में गरीब कल्याण के एजेंडे पर कर रही फोकस

जातिगत जनगणना के इस जाल में न फसने के लिए भाजपा आने वाले समय में करीब कल्याण की योजनाओं में सरकार की भागीदारी और पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यकों को सबसे ज्यादा लाभ दिए जाने के इस एजेंडे पर काम करती नजर आएगी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

अभिषेक मिश्रा

  • पटना,
  • 04 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 10:54 PM IST

बिहार में जाति कार्ड आधारित जनगणना के नतीजे सामने आने के बाद इस मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश में राजनीति तेज होती नजर आ रही है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के कई ऐसे दल के नेता हैं जो लगातार जाति का जनगणना की मांग करते रहे हैं. अब आने वाले 2024 के चुनाव के पहले कहीं जाति का जनगणना का मुद्दा भाजपा सरकार के लिए मुसीबत पैदा ना करे. इसलिए भाजपा अपनी रणनीति के साथ इस मुद्दे को निपटाने के लिए आगे बढ़ाने की तैयारी में है. 

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लोकसभा चुनाव में पार्टी को इसका उल्टा नुकसान ना हो और जातिगत जनगणना के मुद्दों पर उत्तर प्रदेश में राजनीति को गर्म न होने देना इस वक्त सत्तारूढ़ पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती नजर आती है.

दरअसल उत्तर प्रदेश में इसकी काट के तौर पर बीजेपी गरीब कल्याण की एजेंट को रफ्तार देते हुए आगे बढ़ाने की तैयारी कर रही है. इसके अलावा अगले साल जनवरी में राम मंदिर के भव्य उद्घाटन के साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर भी बीजेपी आगे होती हुई नजर आएगी. 

दरअसल, बिहार में हुए जातिगत जनगणना के प्रयोग ने वहां का राजनीतिक परिदृश्य बदला है, जिसमें पिछड़ों की बढ़ती संख्या सीधे तौर पर वहां के सियासी दलों को फायदा पहुंचती नजर आ रही है. 

वहीं उत्तर प्रदेश से अगर बात की जाए तो समाजवादी पार्टी मुखर होकर जाति की जनगणना की बात करती रही है और अपने घोषणा पत्र में भी जगह देती रही है. दूसरी तरफ बसपा से मायावती ने भी इस मुद्दे पर मुखर होकर इस पर विचार करने की बात कही और इशारों इशारों में बीजेपी सरकार पर चुप रहने की बात सामने रख दी. इस मुद्दे पर कांग्रेस भी पूरे देश में जातिगत जनगणना कराया जाने की मांग पर मुखर होकर बोल रही है. यानी तीनों मुख्य विपक्षी दल इस वक्त एक साथ इस मुद्दे पर खड़े नजर आ रहे हैं.

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वहीं, दूसरी तरफ जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भाजपा के सहयोगी भी विपक्ष के साथ सुर मिलाते दिखाई देते हैं. जिसमें निषाद पार्टी के संजय निषाद, सुभाषपा अध्यक्ष ओपी राजभर और अपना दल प्रमुख अनुप्रिया पटेल भी जातिगत जनगणना कराए जाने और सामाजिक न्याय की मांग करती रही है. 

अगले साल लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में यह मुद्दा सियासी पारा बढ़ा सकता है ऐसे में भाजपा अपने विरोधी सपा बसपा कांग्रेस पर हमलावर होने के संकेत दे रही है, लेकिन इसके लिए इस मुद्दे पर फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है.

जातिगत जनगणना के इस जाल में न फसने के लिए भाजपा आने वाले समय में करीब कल्याण की योजनाओं में सरकार की भागीदारी और पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यकों को सबसे ज्यादा लाभ दिए जाने के इस एजेंडे पर काम करती नजर आएगी. सरकार का फोकस गरीब कल्याण की योजनाओं से वंचित वर्ग को लाभ पहुंचाने को जनता तक ले जाने पर होगा और इसमें भागीदारी दलित और अति पिछड़ी जातियों की है जिसे बीजेपी बनाने की कोशिश में है. वहीं दूसरी तरफ इस मामले को बनाए रखने के लिए बीजेपी बड़े स्तर पर दलित सम्मेलन की तैयारी कर रही है.

इसके साथ ही तमाम पिछड़े और दलित जातियों को हिंदुत्व के सूत्र में बांधते हुए राम मंदिर के भव्य निर्माण से पहले हिंदुत्व की भावना को जागते हुए इसे प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश में है. खास तौर पर छत्तीसगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री मोदी का खुले तौर पर कहना कि जातिगत आधारित जनगणना हिंदू समाज को बांटने की कवायद है, सीधे तौर पर इसे बीजेपी के गरीब कल्याण और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दे को तूल देता नजर आता है. जिसे बीजेपी जातिगत जनगणना के काट के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है.

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वहीं हाल ही में नारी शक्ति वंदन अधिनियम का दाव चल चुकी भाजपा महिला और पिछड़ों अल्पसंख्यकों को साथ लेकर कहीं ना कहीं लोकसभा चुनाव की तैयारी में जाति नजर आ रही है.

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