RTI Exclusive: दो दशक…चार सरकारें…ट्रेनें बढ़ीं सिर्फ दस, दिल्ली से बिहार जाने वालों की दिक्कतें जस की तस!

त्योहारों पर हर कोई चाहता है कि वह अपने घर में अपनों के साथ सेलिब्रेट करे, लेकिन बिहार के प्रवासियों को हर साल त्योहारों के समय घर जाने के लिए संघर्ष से गुजरना पड़ता है. पिछले दो दशकों में सरकारें तो बदल गईं लेकिन आम जनता को त्योहारों के समय घर जाने के लिए उचित सुविधाएं नहीं मिल पाई.

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त्योहारों पर भीड़ के चलते हर साल लोग अपने घर जाने को परेशान रहते हैं. RTI से पता चला है कि पिछले दो दशकों में बिहार के रूट पर नई ट्रेनें बहुत कम चलाई गई हैं. (Photo: PTI) त्योहारों पर भीड़ के चलते हर साल लोग अपने घर जाने को परेशान रहते हैं. RTI से पता चला है कि पिछले दो दशकों में बिहार के रूट पर नई ट्रेनें बहुत कम चलाई गई हैं. (Photo: PTI)

अशोक उपाध्याय

  • नई दिल्ली,
  • 14 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 7:08 PM IST

हर साल धनतेरस, दिवाली और छठ के आते ही दिल्ली-NCR में एक अफरा-तफरी सी दिखने को मिलती है. त्योहारों के आते ही हजारों बिहार के प्रवासी घर लौटने के संघर्ष में जुट जाते हैं. कई लोगों को अपने घर जाने के लिए काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

हवाई जहाज के किराए आसमान छूते हैं और ट्रेन में रिजर्वेशन मिलना नामुमकिन सा हो जाता है. यह सालाना संकट भारत की ट्रांसपोर्ट प्लानिंग की बड़ी चूक को उजागर करता है. बीते 20 सालों में बिहार से एनसीआर की ओर भारी पलायन हुआ, लेकिन भारतीय रेलवे ने पटना और दिल्ली के बीच कनेक्टिविटी में नाममात्र का ही विस्तार किया है.

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हर साल एक ही दिक्कत से जूझते हैं लोग

2011 की जनगणना के मुताबिक, केवल दिल्ली में ही 11 लाख से ज्यादा बिहारी रहते थे. अगर नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों को भी जोड़ें, जो शहरी विस्तार के साथ तेजी से बढ़े हैं, तो आज यह संख्या कई गुना ज्यादा हो सकती है. ये प्रवासी एनसीआर की कंस्ट्रक्शन, सर्विस और अनौपचारिक सेक्टर की रीढ़ हैं, फिर भी उनकी सबसे बुनियादी जरूरत त्योहार के समय में सस्ती यात्रा अब भी अधूरी नजर आती है.

ट्रेनों की संख्या में हुई बढ़ोतरी, मुसीबत वही

इस साल भारतीय रेलवे ने पूजा स्पेशल के तहत 763 ट्रेनें घोषित की हैं, जो कुल 10,782 ट्रिप्स करेंगी ताकि त्योहार में भीड़ को परेशानी न हो. लेकिन क्या यह बढ़ती मांग को पूरा कर पाएंगी, यह देखना दिलचस्प हो सकता है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर ट्रेनों में पहले से ही कोई सीट उपलब्ध नहीं है.

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आरटीआई रिपोर्ट में हुआ खुलासा

आरटीआई रिपोर्ट में सामने आया है कि 2005 में पटना और दिल्ली के बीच 17 ट्रेनें चलती थीं. 2010 में यह संख्या बढ़कर 22 हुई, फिर 2015 में 23, 2019 में 26 और 2025 में 27 हुई. दो दशकों में सिर्फ 10 नई ट्रेनों की जोड़ी चलाई जा रही है. बढ़ती मांग के मुकाबले यह बेहद कम प्रतीत होता है और भी चिंता की बात ये है कि इनमें से ज़्यादातर ट्रेनें वीकली और बाय-वीकली थीं, जो त्योहारी सीजन की भीड़ के समय कोई खास राहत नहीं देतीं. एक ट्रेन, ट्रेन नंबर 2387, जो 2003–04 में शुरू हुई थी, 2010 के बाद से सूची में नहीं है. ऐसा लगता है कि इसे बंद कर दिया गया.

सरकारें तो बदलीं लेकिन मुसीबत कम न हुई

आरटीआई जवाब की गहराई से पड़ताल करने पर पता चलता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (2004–2014) के कार्यकाल में सात ट्रेनें शुरू की गईं. इनमें 2 डेली, 3 वीकली, 2 बाय-वीकली ट्रेनें शामिल थी. इसके बाद के दशक में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (2014–9 सितंबर 2025 तक) के कार्यकाल में सिर्फ 6 ट्रेनें जुड़ीं, जो कि 1 डेली, 4 वीकली, 1 बाय-वीकली है. दो दशक, दो सरकारें लेकिन विस्तार की रफ्तार लगभग जस की तस रही, जबकि प्रवास और मांग लगातार बढ़ती रही है.

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त्योहारों पर घर जाना मुश्किल 

एनसीआर में रहने वाले लाखों प्रवासी परिवारों के लिए यह सिर्फ असुविधा नहीं है, यह एक भावनात्मक और आर्थिक बोझ बन चुका है. 25 अक्टूबर तक कोई ट्रेन सीट उपलब्ध नहीं है, दिल्ली से पटना के हवाई किराए बढ़ गए हैं, जिससे कई लोगों को उधार लेना या प्लान रद्द करना पड़ रहा है. बस ऑपरेटर भी मांग का फायदा उठाकर दोगुना किराया वसूल रहे हैं, वो भी तंग और रातभर की यात्रा के लिए. जो प्रवासी एनसीआर की ऊंची इमारतें बनाते हैं और इसकी अर्थव्यवस्था को चलाते हैं, उनके लिए छठ पर घर लौटना अब एक लग्जरी बन गया है.

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