Beating Retreat: 300 साल से भी ज्यादा पुरानी है बीटिंग रिट्रीट की परंपरा, जानें इसका पूरा इतिहास

बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी (what is beating retreat ceremony) गणतंत्र दिवस के समारोह के समापन का प्रतीक होता है. 1950 के दशक से ही हर साल 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी होती आ रही है. इस दौरान राष्ट्रपति तीनों सेनाओं को अपनी बैरकों में लौटने की इजाजत देते हैं.

Advertisement
बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी हर साल 29 जनवरी को होती है. (फाइल फोटो-PTI) बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी हर साल 29 जनवरी को होती है. (फाइल फोटो-PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 4:40 PM IST
  • हर साल 29 जनवरी को होती है बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी
  • तीनों सेनाओं के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं

Beating Retreat Ceremony: हर साल 29 जनवरी को दिल्ली के विजय चौक पर बीटिंग द रिट्रीट समारोह होता है. इससे गणतंत्र दिवस के समारोह का समापन होता है. बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी सेना की वापसी का प्रतीक है. इस दौरान राष्ट्रपति सेनाओं को अपनी बैरकों में लौटने की इजाजत देते हैं. दुनिया के कई देशों में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी की परंपरा है.

Advertisement

भारत में 1950 के दशक में इसकी शुरुआत हुई थी. तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने सेनाओं के बैंड्स के डिस्प्लेस के साथ इस सेरेमनी को पूरा किया था. इस समारोह में राष्ट्रपति मुख्य अतिथी रहते हैं. उनके आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है.

इसके बाद राष्ट्रगान जन-गण-मन होता है. तीनों सेनाओं के बैंड मिलकर पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं. बैंड के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है. इसी दौरान बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति लेते हैं. इसका मतलब होता है कि 26 जनवरी का समारोह पूरा हो गया. बैंड मार्च वापस जाते हुए 'सारे जहां से अच्छा' की धुन बजाते हैं.

ये भी पढ़ें-- Republic Day 2022: देश की तीनों सेनाएं करती हैं अलग-अलग तरीके से सैल्‍यूट, जानें क्‍या है सभी में फर्क

Advertisement

बीटिंग रिट्रीट का इतिहास क्या है?

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी सदियों पुरानी परंपरा है. ये तब से ही चली आ रही है जब सूर्यास्त के बाद जंग बंद हो जाती थी. जैसे ही बिगुल बजाने वाले पीछे हटने की धुन बजाते थे, वैसे ही सैनिक लड़ाई बंद कर देते थे और युद्ध भूमि से पीछे हट जाते थे. 

जानकारी के मुताबिक, 17वीं सदी में इंग्लैंड में इसकी शुरुआत हुई थी. तब जेम्स II ने शाम को जंग खत्म होन के बाद अपने सैनिकों को ड्रम बजाने, झंडा झुकाने और परेड करने का आदेश दिया था. उस वक्त इस समारोह को वॉच सेटिंग कहा जाता था.

बीटिंग रिट्रीट की ये परंपरा ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में है. भारत में पहली बार 1952 में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन हुआ था. तब इसके दो कार्यक्रम हुए थे. पहला कार्यक्रम दिल्ली में रीगल मैदान के सामने मैदान में हुआ था और दूसरा लालकिले में. 

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में तीनों सेनाओं के बैंड शामिल होते हैं. (फोटो-PTI)

सेनाओं के बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत 'Abide With Me' की धुन बजाई थी. तभी से ये धुन हर साल बजाई जाती थी. हालांकि, इस बार ये धुन नहीं बजाई जाएगी. इस धुन को 2020 में भी नहीं बजाया गया था. हालांकि विवाद के बाद 2021 में इसे फिर बजाया गया. 

Advertisement

Abide With Me को स्कॉटलैंड के कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में लिखा था. इसकी धुन प्रथम विश्व युद्ध में बेहद लोकप्रिय हुई. भारत में इस धुन को प्रसिद्धि तब मिली जब महात्मा गांधी ने इसे कई जगह बजवाया. 

इस बार बीटिंग रिट्रीट में क्या होगा खास?

इस बार बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में कई धुनें जोड़ी गई हैं. इनमें 'केरल', 'हिंद की सेना' और 'ऐ मेरे वतन के लोगों' शामिल हैं. इस कार्यक्रम का समापन 'सारे जहां से अच्छा' की धुन के साथ होगा. इस समारोह में 44 ब्यूगलर्स (बिगुल बजाने वाले), 16 ट्रंपेट प्लेयर्स और 75 ड्रमर्स शामिल होंगे.

इस बार विजय चौक पर एक ड्रोन शो भी होगा. इसमें लगभग एक हजार ड्रोन शामिल होंगे. इस ड्रोन को आईआईटी दिल्ली और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की मदद से 'बोटलैब डायनेमिक्स' ने किया है. ये एक स्टार्टअप है. ये ड्रोन शो 10 मिनट तक चलेगा.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement