'बर्बाद किया देश, फिर भी मैं साथ हूं...', शेख हसीना के समर्थन में उतरीं धुर विरोधी तसलीमा नसरीना

निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने बांग्लादेश की एक अदालत द्वारा शेख हसीना को सुनाई मौत की सजा का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि लोगों से अन्याय के खिलाफ खड़े होने की अपील की, चाहे वह अन्याय दुश्मन के साथ ही क्यों न हो. दूसरी ओर उन्होंने शेख हसीना पर देश को बर्बाद करने और जिहादी फैक्ट्रियां खोलने का आरोप लगाया है.

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शेख हसीना की सजा का तसलीमा ने किया विरोध. (photo: ITG) शेख हसीना की सजा का तसलीमा ने किया विरोध. (photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:07 AM IST

बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है, जिसके बाद देश में भारी हंगामा मचा हुआ है. अब बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका और शेख हसीना की धुर विरोधी रहीं तसलीमा नसरीन उनकी सजा के खिलाफ आवाज उठाई है. उन्होंने कहा कि हर तरह के अन्याय का विरोध करना चाहिए, चाहे वह अन्याय आपके दुश्मन के साथ ही क्यों न हो रहा हो. साथ ही उन्होंने शेख हसीना पर बांग्लादेश को बर्बाद करने का आरोप लगाया है.

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तसलीमा नसरीन ने एक्स पर लंबा-चौड़ा पोस्ट साझा कर कहा कि शेख हसीना ने देश को बर्बाद कर दिया, लेकिन फिर भी अन्याय के खिलाफ उनके साथ खड़ी हूं.

'अनगिनत मस्जिदें और मदरसे बनवाए'

उन्होंने शेख हसीना पर देश को बर्बाद करने का आरोप लगाते हुए कहा, 'शेख हसीना ने अनगिनत मस्जिदें और मदरसे बनवाए- यानी दूसरे शब्दों में कहें तो जिहादी फैक्ट्रियां खोल दीं और देश को बर्बाद कर दिया. उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को तबाह कर दिया- मदरसा की डिग्री को यूनिवर्सिटी डिग्री के बराबर करार दे दिया. मिसोजिनिस्ट जिहादियों को धार्मिक प्रवचनों के जरिए युवाओं का ब्रेनवॉश करने की खुली छूट दी.'

तसलीमा ने कहा, 'उन्होंने स्वतंत्र विचारकों को जिहादी हिंसा का शिकार बनते देखते हुए भी कोई सुरक्षा नहीं दी गई.'

'पासपोर्ट रिन्यू पर भी लगाई रोक'

उन्होंने शेख हसीना पर खुद को देश से बाहर निकालने का आरोप लगाते हुए आगे लिखा, 'जनवरी 1999 में जब मैं अपनी मरणासन्न मां से मिलने निर्वासन से लौटी थी तो सिर्फ तीन महीने बाद ही शेख हसीना ने मेरे खिलाफ ‘धार्मिक भावनाएं आहत करने’ का मुकदमा दर्ज करवाया और मुझे फिर देश से भगा दिया. उसके बाद मेरा कभी बांग्लादेशी पासपोर्ट रिन्यू नहीं किया और विदेशी पासपोर्ट पर भी मुझे कभी बांग्लादेशी वीजा नहीं दिया गया.'

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तसलीमा ने दावा किया कि भले ही उन्होंने मेरी पुरस्कार-विजेता आत्मकथा ‘आमार मेयेबेला’ (जिसे आनंद पुरस्कार मिला था) पर प्रतिबंध लगा दिया. हालांकि, उनके आदेश पर दूतावास के अफसरों ने मेरे पावर-ऑफ-अटॉर्नी दस्तावेज अटेस्ट करने से इनकार कर दिया, जिससे मुझे भारी आर्थिक नुकसान हुआ.

नसरीना ने कहा कि इतने सारे व्यक्तिगत और वैचारिक अत्याचारों के बाद भी जब उन पर (शेख हसीना) मुश्किलें आईं और जब उन पर फर्जी मुकदमे चलाए गए और अब उन्हें मौत की सजा सुनाई गई तो मैंने इस अन्याय के खिलाफ जोरदार विरोध किया. उन्होंने अंत में कहा, 'हर तरह के अन्याय का विरोध करें- चाहे अन्याय आपके दुश्मन के साथ ही क्यों न हो, उस अन्याय का भी विरोध करें.'

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