अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में रविवार को हजारों की संख्या में राज्य के 27 जिलों, 26 प्रमुख जनजातियों और 100 उप-जनजातियों के लोग सड़कों पर उतरे. पारंपरिक पोशाकों में सजे ये लोग अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (APFRA) 1978 यानी 46 साल पुराने एंटी-कन्वर्जन कानून के तत्काल लागू करने की मांग को लेकर विशाल शांतिपूर्ण रैली में शामिल हुए.
IFCSAP ने आयोजित की रैली
यह रैली इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (IFCSAP) द्वारा आयोजित की गई. संगठन के अध्यक्ष डॉ. एमी रूमी ने कहा कि यह कानून 1978 में विधानसभा के पहले सत्र के कुछ ही महीनों बाद पारित हुआ था और इसे तत्कालीन राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिली थी, लेकिन अब तक लागू नहीं किया गया. उन्होंने कहा, “अगर यह कानून लागू होता है, तो हमारी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक पहचान को संरक्षित किया जा सकेगा.”
रैली में शामिल लोगों ने क्या कहा?
रैली में शामिल आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना था कि लगातार बढ़ रहे धार्मिक रूपांतरण से डोनी-पोलो जैसी पारंपरिक आस्थाएं संकट में हैं. ‘डोनी’ का अर्थ सूर्य और ‘पोलो’ का अर्थ चंद्रमा होता है जो अरुणाचल की प्राचीन आस्था का प्रतीक है.
वहीं, अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम (ACF) इस कानून का विरोध कर रहा है. संगठन के अध्यक्ष तारह मिरी ने कहा कि “एंटी-कन्वर्जन कानून धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और यह ईसाइयों को निशाना बनाता है.” इसी साल फरवरी में ACF ने इस कानून के खिलाफ आठ घंटे की भूख हड़ताल भी की थी.
मुख्यमंत्री पेमा खांडू पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि गुवाहाटी हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सरकार को इस कानून के नियमों का मसौदा छह महीने में तैयार करना है, जिसकी समयसीमा इसी महीने समाप्त हो रही है.
रैली में मुख्य वक्ता एस.डी. लोडा, जो पेशे से अधिवक्ता हैं, उन्होंने कहा कि हम नहीं चाहते कि अरुणाचल भी मिजोरम या नागालैंड की तरह अपनी मूल पहचान खो दे, जहां विदेशी धार्मिक प्रचार से स्थानीय आस्थाएं खत्म हो गईं.
प्रोफेसर डॉ. नानी बाथ ने कहा कि APFRA किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह “आदिवासी समुदायों को बहकावे या लालच के जरिए हो रहे धर्मांतरण” से बचाने के लिए एक सुरक्षा कवच है.
APFRA कानून की प्रमुख बातें:
जबरन या लालच से धर्मांतरण पर रोक.
किसी भी धर्मांतरण की सूचना प्रशासन को देना अनिवार्य.
स्थानीय आस्थाओं जैसे डोनी-पोलो, बौद्ध और वैष्णव परंपराओं की सुरक्षा.
राज्य में अब यह मुद्दा धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सांस्कृतिक संरक्षण की सबसे बड़ी बहस में बदल चुका है. अदालत की समयसीमा नजदीक आने के साथ ही आने वाले हफ्तों में अरुणाचल का रुख तय करेगा कि राज्य अपनी मूल पहचान की रक्षा करेगा या धार्मिक स्वतंत्रता की राह पर आगे बढ़ेगा.
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