संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान आज बुधवार को राहुल गांधी ने मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर सरकार को भारत माता का हत्यारा कहा है. वहीं जवाब में स्मृति इरानी ने भारत माता की हत्या पर ताली बजाने वाले विपक्ष की निंदा की है और इमरजेंसी के जमाने में महिलाओं से कैद में हुए अत्याचार से लेकर कश्मीरी पंडितों के दमन औऱ 1984 के सिख दंगों की याद दिलाई है. इसके बाद सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी विपक्ष पर पलटवार किया.
अमित शाह ने कहा कि जब से आजाद हुए हैं तब से 27 अविश्वास प्रस्ताव और 11 विश्वास प्रस्ताव इस सदन में प्रस्तुत हुए. कई बार सरकारों का बहुमत जाने की स्थिति में सदन के विपक्ष के सदस्य अविश्वास प्रस्ताव लेकर आते हैं. कई बार बड़े जनआंदोलन के समय प्रजा की भावना को प्रतिबिंबित करने के लिए अविश्वास के प्रस्ताव लेकर आते हैं. ये एक अविश्वास का ऐसा है, जिसमें प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के प्रति न जनता को अविश्वास और न सदन को अविश्वास है. इसका उद्देश्य जनता में भ्रांति खड़ी करना है. मैं उनको (विपक्ष) इतना ही कहना चाहता हूं कि अविश्वास प्रस्ताव जब आप लेकर आते हो तो इस पर जो चर्चा होती है, उस चर्चा में सरकार के विरोध में कुछ मुद्दे तो रख देते.
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उन्होंने कहा कि मैंने पूरे भाषण ध्यान से सुने. इसके बाद मैं निश्चित रूप से निर्णय पर पहुंचा हूं कि ये अविश्वास प्रस्ताव केवल और केवल भ्रांति खड़ी करने के लिए लाया गया है. ये प्रजा की इच्छाओं का प्रतिबिंब नहीं है. अल्पमत का तो सवाल ही नहीं है क्योंकि अब तक जो अविश्वास के प्रस्ताव के विरोध में बोले हैं और जो समर्थन सदन का दिखाई दिया है वो बताता है कि अल्पमत का सवाल नहीं है और जनता में भी विश्वास है क्योंकि देश के 60 करोड़ गरीबों को उनके जीवन में नई आशा का संचार किसी सरकार या प्रधानमंत्री ने किया है तो नरेंद्र मोदी सरकार ने किया है.
'कहीं भी अविश्वास की झलक नहीं'
गृह मंत्री ने कहा कि मैं भी देश में घूमता हूं और जनता के बीच जाता हूं. मैंने जनता के साथ कई जगहों पर संवाद किया है. कहीं पर भी अविश्वास की झलक दिखाई नहीं पड़ती है. आजादी के बाद कोई एक सरकार और कोई एक नेता में जनता को सबसे ज्यादा विश्वास है तो नरेंद्र मोदी जी की सरकार में है. 2/3 बहुमत से दो-दो बार एनडीए को चुना गया. 30 साल के बाद पूर्ण बहुमत की स्थिर सरकार देने का काम देश की जनता ने दो बार किया. आजादी के बाद सबसे लोकप्रिय कोई प्रधानमंत्री हैं तो वो नरेंद्र मोदी हैं. ये मैं नहीं कहता, दुनिया भर के कई सर्वेक्षण कहते हैं.
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद एक भी छुट्टी लिए बगैर 24 घंटे में से 17 घंटे काम करने वाला कोई प्रधानमंत्री है तो नरेंद्र मोदी हैं. आजादी के बाद देश के हर राज्य में सबसे ज्यादा किलोमीटर और सबसे ज्यादा दिन प्रवास करने वाला कोई प्रधानमंत्री है तो नरेंद्र मोदी हैं. कोई सरकारें कई सालों तक चलती हैं. कांग्रेस की सरकार 35 सालों तक चलीं. लेकिन 2-4 निर्णय ऐसे होते हैं जिसको युगों तक याद किया जाता है. नरेंद्र मोदी सरकार ने 9 साल में 50 से ज्यादा ऐसे फैसले लिए, जो युगांतकारी फैसले हैं, जो इतिहास के अंदर स्वर्ण अक्षरों से लिखे जाएंगे.
'राजनीति भ्रष्टाचार, परिवार और तुष्टिकरण के नासूर से ग्रसित रही'
अमित शाह ने कहा कि लगभग 30 साल से इस देश की राजनीति भ्रष्टाचार, परिवार और तुष्टिकरण के नासूर से ग्रसित रही है. भारतीय लोकतंत्र को इन तीन नासूरों ने घेर लिया था. नरेंद्र मोदी जी ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण को हटाकर पॉलिटिक्स ऑफ पर्फोर्मेंस को बढ़ावा दिया. आज विकास जनता के फैसलों को निर्णय करता है. मगर फिर भी कहीं-कहीं दूर तक भ्रष्टचार भी बच गया, परिवारवाद तो दिखाई ही पड़ता है और तुष्टिकरण की राजनीति भी चलती है. इसलिए मोदी जी ने नारा दिया, 'भ्रष्टाचार क्विट इंडिया, परिवारवाद क्विट इंडिया, तुष्टिकरण क्विट इंडिया.'
तीन अविश्वास प्रस्तावों का किया जिक्र
उन्होंने कहा कि अविश्वास का प्रस्ताव एक संवैधानिक प्रक्रिया है. विपक्ष का उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, वो उनका अधिकार है. हमें कोई आपत्ति नहीं है. इससे पार्टियों और गठबंधन के चरित्र उजागर होते हैं. कई बार अविश्वास प्रस्ताव आए. मैं तीन का जिक्र करना जरूर करना चाहूंगा. दो यूपीए सरकार के खिलाफ है जब हम विपक्ष में थे तब लेकर आए थे और एक एक NDA के खिलाफ था. 1993 में नरसिम्हा सरकार थी. उसके खिलाफ प्रस्ताव आया. नरसिम्हा को सरकार किसी भी तरह सत्ता में बने रहना था. नरसिम्हा अविश्वास प्रस्ताव जीत गई. बाद में कई लोगों को जेल की सजा हुई, इसमें नरसिम्हा राव भी शामिल थे. क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा को घूस देकर प्रस्ताव पर विजय प्राप्त की गई. आज कांग्रेस और मुक्ति मोर्चा भी वहीं है.
उन्होंने कहा कि 2008 में मनमोहन सरकार विश्वास प्रस्ताव लेकर आई. ऐसा वातावरण था कि इनके पास बहुमत नहीं था. उस वक्त सबसे कलंकित घटना देखी गई. सांसदों को करोड़ो रुपये की घूस दी गई. कुछ सांसद सदन के सामने आए और संरक्षण मांगा. हालांकि, तब सरकार को बचा लिया गया था. यूपीए का चरित्र यह है कि अविश्वास प्रस्ताव आए या विश्वास प्रस्ताव लाना पड़े इससे बचने के लिए सारे सिद्धांत, चरित्र, कानून, परंपरा से सत्ता को संभालना होता है.
वहीं 1999 में अटल सरकार थी. अविश्वास प्रस्ताव आया. कांग्रेस ने जो किया वो हम भी कर सकते थे. घूस देके सरकार बचा सकते थे. लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. अटल वाजपेयी ने अपनी बात रखी और कहा कि संसद का जो फैसला है वह माना जाए. सिर्फ एक वोट से सरकार चली गई. UPA की तरह हम सरकार नहीं बचा सकते थे? बचा सकते थे लेकिन कई बार प्रस्ताव के वक्त चरित्र उजागर होता है. कांग्रेस का चरित्र भ्रष्टाचार का है. वहीं बीजेपी चरित्र सिद्धांत के लिए राजनीति करने वाला है. वाजपेयी की सरकार गई लेकिन अगली बार भारी बहुमत से वह जीते और पीएम बने.
'गरीबी हटाओ का नारा दिया, लेकिन गरीबी नहीं हटी'
शाह बोले कि कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया. लेकिन गरीबी जस की तस रही. लेकिन मोदी ने इस समस्या को समझा क्योंकि उन्होंने गरीबी देखी थी. पीएम मोदी ने 9 साल में 11 करोड़ से ज्यादा परिवारों को शौचालय दिया. लोग क्लोराइड युक्त पानी पीते थे. मोदी ने हर घर जल योजना से 12 करोड़ से ज्यादा लोगों के घर तक पानी पहुंचाया. कांग्रेस कर्ज माफ करने का लॉलीपॉप देती थी, वहीं बीजेपी का अजेंडा है कि किसान को कर्ज ही ना लेना पड़े.
बिहार सीएम पर साधा निशाना
शाह ने कहा कि जब हम बैंक अकाउंट खोलने की जनधन योजना लेकर आए तो नीतीश कुमार ने हमारा मजाक उड़ाया. कि अकाउंट तो खोल दिया, अंदर क्या डालेंगे, बोनी तो कराओ. नीतीश बाबू हमारी बात सुन लीजिए. 49 करोड़ बैंक खाते खोले जिसमें 2 लाख करोड़ गरीबों के जमा हैं. केंद्र-राज्य सरकार की 300 से ज्यादा योजनाओं का पैसा डायरेक्ट इन खातों में जाता है. ये लोग जनधन योजना का विरोध क्यों कर रहे थे ये समझने वाली बात है. यूपीए के शासनकाल में पीएम रहे (राजीव गांधी) नेता ने कहा था कि मैं दिल्ली से 1 रुपया भेजता हूं लेकिन 15 पैसे ही पहुंचते हैं. उन्होंने ये बात कबूल की क्योंकि सच्चे आदमी थे, नए-नए राजनीति में आए थे. लेकिन मैं अब आगे पूछता हूं कि 85 पैसा कौन ले जाता था. ये पैसा वो ले जाते थे जो जनधन का विरोध कर रहे थे. अमित शाह ने आगे कहा कि कांग्रेस ने कहा सबकुछ लेकिन किया कुछ नहीं. किया बीजेपी ने.
वैक्सीन को लेकर अखिलेश-राहुल पर साधा निशाना
कोरोना पर बात करते हुए अमित शाह बोले कि कोरोना काल में अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने जनता से कहा कि ये मोदी वैक्सीन है लेना मत. लेकिन जनता ने मोदी पर विश्वास जताया और सभी डोज लगवाईं. शाह बोले कि लॉकडाउन का भी विरोध किया गया था. विरोधी पार्टियों ने कहा कि लॉकडाउन लग जाएगा तो गरीब क्या खाएगा. लेकिन हमने लॉकडाउन भी लगाया और गरीब को भूखा भी नहीं रखा. 80 करोड़ लोगों को फ्री गेंहू दिए. शाह ने कहा कि विरोधी पार्टियों को मोदी में अविश्वास हो सकता है लेकिन देश की जनता को नहीं. वो मोदी के साथ है.
उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि इस सदन में एक ऐसे नेता हैं जिनको 13 बार राजनीति में लॉन्च किया गया. हर बार उनकी लॉन्चिंग फेल हुई. उनकी एक ऐसी ही लॉन्चिंग संसद से हुई थी. एक गरीब मां कलावती (बुंदेलखंड, महोबा) के घर वह नेता भोजन करने गए. फिर संसद में उसकी गरीबी का वर्णन किया. उसके बाद छह साल कांग्रेस की सरकार रही. लेकिन उस कलावती के लिए कुछ नहीं किया. उस कलावती को घर, बिजली, गैस, अनाज, शौचालय, स्वास्थ्य देना का काम नरेंद्र मोदी ने किया. जिस कलावती के घर आप भोजन पर गए, उसे भी मोदी पर अविश्वास नहीं है.
'पाकिस्तान के घर में घुसकर आतंकियों का खात्मा किया'
देश की सुरक्षा पर बोलते हुए शाह ने कहा कि यूपीए सरकार (2004-14) के दौरान सरहद पार से आतंकी घुसते और जवानों के सिर काटकर ले जाते थे. कोई जवाब नहीं देता था. हमारी सरकार में दो बार पाकिस्तान ने हिमाकत की. दोनों बार (सर्जिकल और एयर स्ट्राइक) पाकिस्तान के घर में घुसकर आतंकियों का खात्मा किया. UPA सरकार में सबसे ज्यादा घोटाला रक्षा क्षेत्र में हुआ.
आगे चीन का जिक्र करते हुए अमित शाह ने आरोप लगाया कि चीन की सीमा पर हमारी तोपें ना पहुंच पाए ऐसी स्थिति थी. सड़क ही नहीं बनाई थी, नक्शा ही देखते रहते थे. लेकिन मोदी और राजनाथ सिंह ने सीमा के अंतिम गांव तक, भारत के प्रथम गांव तक सड़क पहुंचाई.
'दुनियाभर में भागे गुनाहगारों को वापस लाया जाता है'
गृह मंत्री ने कहा कि पीएफआई कई सालों से देश को तोड़ने और आतंकवाद का बीज बोने का काम कर रही थी. 22 सितंबर को 15 राज्यों में 90 से ज्यादा स्थानों पर रेड करके पीएफआई पर बैन लगाया और जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. देशभर में हमने पीएफआई को बैन किया. दुनियाभर में भागे हुए गुनाहगारों को आज वापस लाया जाता है. एनआईए के 9 घनघोर कृत्य करने वाले आतंकवादियों को दुनियाभर से उठाकर हम वापस आए. सिद्धू मूसेवाला की हत्या का आऱोपी सचिन बिश्नोई को वापस लाए. बॉम्बे के बम हमले के आरोपी राणा को भी वापस लेकर आए.
कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस को घेरा
उन्होंने कहा कि इस देश की आंतरिक सलामती से तीन बड़े हॉटस्पॉट माने जाते हैं. एक कश्मीर, दूसरा वामपंथी उग्रवाद का क्षेत्र और तीसरा नॉर्थ ईस्ट. सालों तक कांग्रेस की सरकार रही औऱ ये चलता रहा. आज मैं कहना चाहता हूं कि कश्मीर की समस्या वोटबैंक की राजनीति और समस्या से आंख मूंदना था. कश्मीर की समस्या सरकारों का ढूलमूल रवैया था. कश्मीर के अंदर 2014 से हमारी नीतियों में परिवर्तन आया. 2014 से 2019 तक राजनात सिंह और अब मैं गृहमंत्री बनना हूं, तबसे मोदी जी के नेतृत्व में कश्मीर को आतंकवाद मुक्त करने की दिशा में काम किया गया है. 40 हजार लोग मारे गए कश्मीर में.
अधीर रंजन के विरोध पर पलटवार
भाषण के बीच में कांग्रेस की तरफ से बयानबाजी पर गृहमंत्री ने पलटवार किया. इस दौरान उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष से कहा कि मेरा निवेदन है कि अधीर जी को कांग्रेस ने टाइम नहीं दिया है, इन्हें हमारे समय में से आधा घंटा दे दीजिए. ये बीच में बोलते हैं क्योंकि इनकी पार्टी ने इन्हें टाइम नहीं दिया है. मेरे इस निवेदन का हमारे पार्लियामेंट्री अफयर्स मंत्री मेरे निवेदन का विरोध नहीं करेंगे.
370 को बताया नेहरू सरकार की भूल
कश्मीर के अंदर परिवर्तन लाने वाला युगांतकारी निर्णय इस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिया. जवाहर लाल नेहरू सरकार की एक भूल थी धारा 370. 5 और 6 अगस्त को इस महान सदन ने धारा 370 को समाप्त कर दिया. इसके साथ ही कश्मीर से दो झंडे चले गए, दो संविधान खत्म हो गए और संपूर्ण रूप से कश्मीर का भारत के साथ जुड़ाव करने का काम किया गया.
शाह ने आगे कहा कि उन्होंने विपक्ष से जुड़े एक NGO की रिपोर्ट देखी थी. उसमें लिखा था कि समस्या सुलझाने के लिए हुर्रियत से चर्चा करो. जमीयत से चर्चा करो, पाकिस्तान से चर्चा करो. हम इनमें से किसी से भी चर्चा नहीं करेंगे. हम चर्चा करेंगे तो घाटी की जनता से करेंगे. वो हमारे अपने हैं. अब कश्मीर में किसी आतंकी का जनाजा नहीं निकाला जाता है, क्योंकि जिसको जहां मारा जाता है, वहीं दफन कर दिया जाता है.
कश्मीर पर तीन परिवारों ने शासन किया
विपक्ष कहता है कि वह लोकतंत्र में यकीन करता है. लेकिन यह वहीं देखता कि कश्मीर पर शासन किसने किया. कश्मीर पर तीन परिवारों ने शासन किया. महबूबा मुफ्ती,फारुख परिवार और गांधी परिवार. लेकिन किसी ने पंचायत चुनाव नहीं करवाए. 2018-19 में NDA सरकार ने इसे करवाया. शाह बोले कि पत्थरबाजी की घटनाएं भी अब कम हुई हैं.
शाह बोले कि इसी संसद में विपक्षी दल कहते थे कि जम्मू-कश्मीर से 370 को हटाया तो खून की नदियां बह जाएंगी. लेकिन वहां किसी की कंकड़ चलाने की हिम्मत नहीं है क्योंकि ये नरेंद्र मोदी की सरकार है.
वामपंथी उग्रवाद पर कही ये बात
वामपंथी उग्रवाद एक हॉटस्पॉट माना जाता था. इसमें भी कमी आई. वामपंथी का दायरा था झारखंड, बिहार, ओडिशा, एमपी, महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़. आज झारखंड, बिहार, एमपी, ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना मुक्त हो गया है. केवल छत्तीसगढ़ बचा है. वामपंथी उग्रवाद पर नकेल कसने का काम मोदी सरकार कर रही है. इसलिए मैं कहता हूं कि आपको भले ही अविश्वास प्रस्ताव हो, लेकिन देश की जनता को विश्वास है.
नॉर्थ ईस्ट पर भी बोले अमित शाह
नॉर्थ ईस्ट राज्यों पर बात करते हुए अमित शाह ने कहा कि अब वहां हिंसक घटनाओं में कमी आई है. कई विकास के पंडित कहते हैं कि नॉर्थ ईस्ट में एयरपोर्ट पहुंच गया, दूरी कम हो गई. रेल पहुंच गई, दूरी कम हो गई, सड़के बन गईं दूरी कम हो गई. लेकिन दूरी इनसे नहीं, दिल मिलने से कम होती है. उन्होंने आगे कहा कि देश में ऐसे भी पीएम रहे हैं जो अपने 15-18 साल के कार्यकाल में एक बार भी नॉर्थ ईस्ट नहीं गए, बावजूद इसके विपक्षी दलों को उनपर नाज है. वहीं पीएम मोदी 9 साल में 50 से ज्यादा बार नॉर्थ ईस्ट गए हैं. नरेंद्र मोदी जी ने नॉर्थ ईस्ट को मन के साथ भारत के साथ जोड़ने का काम किया है.
मणिपुर पर ये बोले अमित शाह
अविश्वास प्रस्ताव पर बात करते हुए अमित शाह ने कहा कि मैं विपक्ष की इस बात से सहमत हूं कि मणिपुर में हिंसा का तांडव हुआ है. हमें भी दुख है. जो घटनाएं वहां हुई वो शर्मनाक है, लेकिन उसपर राजनीति करना और भी ज्यादा शर्मनाक. ये भ्रम फैलाया गया कि सरकार मणिपुर पर चर्चा नहीं करना चाहती. हम पहले दिन से चर्चा पर तैयार थे, विपक्ष चर्चा नहीं हंगामा चाहता था.
मणिपुर की नस्लीय हिंसाओं को लोगों को समझना होगा. करीब छह साल से मणिपुर में बीजेपी की सरकार है. एक दिन भी वहां कर्फ्यू नहीं लगाना पड़ा. उग्रवादी हिंसा करीब-करीब खत्म हो गई. 2021 में पड़ोसी देश म्यांमार में सत्ता परिवर्तन हुआ. वहां लोकतांत्रिक सरकार गिर गई और मिलिट्री का शासन आ गया. इस बीच वहां कुकी डेमोक्रेटिक फ्रंट ने लोकतंत्र के लिए आंदोलन शुरू किया. फिर वहां की सेना ने इनपर दबाव बनाना शुरू किया. ऐसे में कुकी लोग वहां से शरणार्थियों बनकर मिजोरम और मणिपुर आने लगे.
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