केरल के तट पर एक ऐसी घटना हुई जो किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं. केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक मालवाहक जहाज MSC Akiteta II को 'हिरासत' में लेने का आदेश दिया. ये जहाज MSC शिपिंग कंपनी का है और इसे तिरुवनंतपुरम के विशिनजम पोर्ट पर रोका गया. लेकिन मजेदार बात यह है कि इस जहाज को इसके अपने किसी गलत काम की वजह से नहीं बल्कि इसके 'भाई' जहाज MSC Elsa III की गलती की सजा के तौर पर पकड़ा गया. MSC Elsa III जो उसी कंपनी का है. ये मई में केरल के अलप्पुझा तट पर डूब गया था और उसने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया.
क्यों रोका गया MSC Akiteta II?
MSC Elsa III मई के दूसरे हफ्ते में 643 कार्गो कंटेनरों के साथ केरल के तट पर डूब गया. इस हादसे ने समुद्र और तट के पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया. केरल पर्यावरण विभाग ने इसे 'भारी पर्यावरणीय क्षति' बताया. हादसे के कुछ दिन बाद तिरुवनंतपुरम की समुद्री तटों पर छोटे-छोटे प्लास्टिक के दाने (नर्डल्स) मिले जो समुद्री जीवों, तटीय पर्यावरण और इंसानों के लिए खतरनाक हैं.
इसके बाद केरल सरकार ने MSC शिपिंग कंपनी से 9,531 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा. सरकार का कहना है कि कंपनी को इस पर्यावरणीय नुकसान की जिम्मेदारी लेनी होगी. इसी वजह से कोर्ट ने कंपनी के एक और जहाज, MSC Akiteta II, को विशिनजम पोर्ट पर रोकने का आदेश दिया ताकि कंपनी मुआवजा देने के लिए मजबूर हो.
इससे पहले जून में तीन काजू आयात करने वाली कंपनियों ने MSC Elsa III के डूबने से हुए नुकसान के लिए मुआवजा मांगा था. तब कोर्ट के आदेश पर कंपनी के एक अन्य जहाज, MSC Manasa F को कुछ समय के लिए रोका गया था. बाद में कंपनी ने 6 करोड़ रुपये जमा किए जिसके बाद उस जहाज को छोड़ दिया गया.
भारत में जहाजों की हिरासत कोई नई बात नहीं
भारत में जहाजों को हिरासत में लेना कोई नई बात नहीं है हालांकि ऐसा कम ही होता है. साल 2020 में मुंबई में एक बहामास के झंडे वाला जहाज पोर्ट का बकाया न चुकाने की वजह से रोका गया था. साल 2021 में चेन्नई में एक जहाज को तेल रिसाव से हुए नुकसान के लिए हिरासत में लिया गया था.
कानून कैसे करता है मदद
भारत के समुद्री कानून इस तरह की कार्रवाइयों को संभव बनाते हैं. ये कानून पर्यावरण या आर्थिक नुकसान के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराते हैं.
एडमिरल्टी (जूरिस्डिक्शन एंड सेटलमेंट ऑफ मैरीटाइम क्लेम्स) एक्ट, 2017: इस कानून की धारा 4 के तहत कोर्ट एक ही कंपनी के अन्य जहाजों को भी जिम्मेदार ठहरा सकता है, अगर उनके मालिक एक ही हैं. जैसे कि MSC के मामले में हुआ.
मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 और एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट, 1986: ये कानून भारत के समुद्री क्षेत्र जो तट से 12 नॉटिकल मील (लगभग 22 किलोमीटर) तक की सीमा कवर करता है. इसके तहत प्रदूषण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देते हैं.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT): ये पर्यावरण संरक्षण के लिए बना एक अर्ध-न्यायिक निकाय है जो पर्यावरणीय नुकसान के लिए मुआवजे के मामलों को देखता है.
क्या है इस कार्रवाई का मतलब
MSC Akiteta II की हिरासत भारत के समुद्री और पर्यावरणीय कानूनों के तहत की गई एक सख्त कार्रवाई है. यह दिखाता है कि भारत वैश्विक शिपिंग कंपनियों को स्थानीय पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की जिम्मेदारी से नहीं बख्शेगा. ये कदम न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा मिले.
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