जस्टिस स्वामीनाथन के समर्थन में उतरे 50 से अधिक पूर्व जज... महाभियोग को बताया डराने की कोशिश

50 से अधिक पूर्व न्यायाधीशों ने एक कड़े शब्दों वाला पत्र जारी कर इस कदम की कड़ी निंदा की. पत्र में पूर्व जजों ने इस कोशिश को न्यायपालिका को कमजोर करने वाली लंबी और चिंताजनक राजनीतिक परंपरा का हिस्सा बताया.

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मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.एस. स्वामीनाथन. (File Photo: PTI) मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.एस. स्वामीनाथन. (File Photo: PTI)

अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:18 PM IST

मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन को हटाने की मांग करते हुए 100 से अधिक सांसदों की ओर से लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के खिलाफ शुक्रवार को बड़ा विरोध सामने आया. 50 से अधिक पूर्व न्यायाधीशों, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और कई हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश शामिल हैं, ने एक कड़े शब्दों वाला पत्र जारी कर इस कदम की कड़ी निंदा की. उन्होंने इस कदम को जजों को डराने-धमकाने की खुली कोशिश बताया.

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पूर्व जजों ने कहा कि कार्तिगई दीपम दीप-प्रज्वलन मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर जस्टिस स्वामीनाथन को हटाने की कोशिश लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की जड़ें हिला देने वाली है. उन्होंने लिखा कि MPs द्वारा बताए गए कारण सतही और इतने गंभीर संवैधानिक कदम के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं हैं.

आपातकाल जैसे दौर की याद?

पत्र में पूर्व जजों ने इस कोशिश को न्यायपालिका को कमजोर करने वाली लंबी और चिंताजनक राजनीतिक परंपरा का हिस्सा बताया. उन्होंने आपातकाल के बाद तीन वरिष्ठ जजों की सुपरसिडिंग, जस्टिस एचआर खन्ना की उपेक्षा और पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़ और अब सीजेआई सूर्याकांत के खिलाफ चलाए गए राजनीतिक अभियान का उल्लेख किया.

पूर्व न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि महाभियोग जैसे संवैधानिक प्रावधान का इस्तेमाल आर्म-ट्विस्टिंग और बदले की राजनीति के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा, “आज निशाना एक जज है, कल पूरा संस्थान निशाने पर होगा.”

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पूर्व जजों ने सांसदों, बार काउंसिल, सिविल सोसाइटी और नागरिकों से अपील की कि इस कदम को शुरुआत में ही रोक दिया जाए, क्योंकि जज संविधान के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि राजनीतिक समूहों की पसंद-नापसंद के प्रति.

वह आदेश जिसने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया

बता दें कि यह पूरा विवाद तमिलनाडू में तब उठा, जब जस्टिस स्वामीनाथन ने तिरुप्परंकुंद्रम हिल पर दीपथून स्तंभ पर कार्तिगई दीपम का दीप जलाने का आदेश दिया. यह स्थान सिकंदर बादूशा दरगाह के पास है और लंबे समय से संवेदनशील माना जाता रहा है. याचिकाकर्ताओं की मांग पर जज ने 4 दिसंबर शाम 6 बजे तक दीप जलाने का निर्देश दिया. उन्होंने दलील दी कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन दीप न जलाने से पहाड़ी पर मंदिर के अधिकार कमजोर हो सकते हैं, क्योंकि वहां कथित अतिक्रमण की शिकायतें उठती रही हैं.

हालांकि तमिलनाडू सरकार ने यह कहते हुए कि इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है, आदेश लागू करने से इनकार कर दिया. इसके बाद पुलिस और हिंदू संगठनों के बीच झड़पें भी हुईं. DMK ने आरोप लगाया कि जज ने 2017 की डिवीजन बेंच के आदेश को उलट दिया है और उनका निर्देश चुनाव से ठीक पहले सांप्रदायिक तनाव भड़का सकता है. पार्टी नेता टीआर बालू ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाते हुए दावा किया कि BJP राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है.

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वहीं तमिलनाडू BJP अध्यक्ष नैनार नागेन्द्रन ने महाभियोग प्रस्ताव को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया. उन्होंने कहा कि DMK न्यायिक फैसले तभी स्वीकार करती है जब वे उसके हित में हों. BJP नेता ने कहा कि जस्टिस स्वामीनाथन ने कोई अपराध नहीं किया और मंदिर व पुलिस प्रशासन की विफलता के कारण ही उन्हें आदेश देना पड़ा. उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के महाभियोग प्रयास गलत परंपरा कायम करेंगे और संस्थानों के बीच टकराव को जन्म दे सकते हैं.
 

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