शिवसेना से बागी हुए एकनाथ शिंदे का हो सकता है पार्टी पर कब्जा? जानें क्या हैं नियम

शिवसेना के टूटने के बाद बागी गुट के विधायक निर्वाचन आयोग जाकर शिवसेना के चुनाव चिह्न, झंडे और नाम पर भी दावा कर सकते हैं. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निर्वाचन आयोग फैसला लेगा.

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एकनाथ शिंदे (फाइल फोटो) एकनाथ शिंदे (फाइल फोटो)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2022,
  • अपडेटेड 11:55 PM IST
  • एकनाथ शिंदे बागी विधायकों के साथ गुवाहाटी में मौजूद
  • शिवसेना के कई विधायकों को लेकर पहुंचे हैं शिंदे

महाराष्ट्र में शिवसेना के कोटे से सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे के साथ करीब ढाई दर्जन विधायकों ने बगावत का झंडा उठा रखा है. ऐसे में कानून की रोशनी में ये बागी कौन-सी राह पर चल सकते हैं?  

सुप्रीम कोर्ट में निर्वाचन आयोग के पैनल में शामिल सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी के मुताबिक अभी शिवसेना से बागी विधायक एकनाथ शिंदे को दल-बदल निरोधक कानून के शिकंजे से बचने के लिए शिवसेना के कुल विधायकों में से दो तिहाई यानी 36 विधायकों को अपने पाले में करना होगा. ताकि बागी विधायक दल बदल निरोधक कानून के तहत अयोग्य होने से बच सकें. शिवसेना के कम से कम 36 या उससे ज्यादा विधायकों को अपने पाले में करने के बाद ही एकनाथ शिंदे को विधान सभा में अलग गुट या पार्टी के रूप में जगह मिलेगी. ये बागी चाहें तो अपनी एकराय से किसी राजनीतिक दल में भी शामिल हो सकते हैं. यानी शिवसेना में दोफाड़ के आसार बनते दिख रहे हैं. 

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बागी विधायक कर सकते हैं पार्टी पर दावा

शिवसेना के टूटने के बाद बागी गुट के विधायक निर्वाचन आयोग जाकर शिवसेना के चुनाव चिह्न, झंडे और नाम पर भी दावा कर सकते हैं. जाहिर है कि बागी आयोग का रुख करेंगे तो दूसरे पक्ष यानी ठाकरे ग्रुप को भी आयोग में दस्तक देनी होगी. ऐसे में आयोग दोनों पक्षों की दलीलें और अन्य तथ्यों पर गौर करने के बाद अपना फैसला सुनाएगा क्योंकि निर्वाचन आयोग ही पार्टियों के अंदरूनी आपसी विवाद सुलझाने वाली संस्था है. निर्वाचन आयोग समर्थक विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की संख्या के आधार पर बहुमत वाले गुट को पार्टी का चिह्न, चुनाव चिह्न, झंडा, नाम आदि आवंटित कर देगा. बड़ा सवाल शिंदे की बगावत से ये उभरा है कि पार्टी में विद्रोह कर अपनी बात मनवाने की जिद के ये तेवर कहीं इतिहास के पन्नों में दर्ज घटनाओं की अगली कड़ी तो नहीं बन रहे!  

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नायडू ने 1995 में TDP पर किया था कब्जा

एकनाथ शिंदे से पहले 1995 में एनटी रामाराव की तेलुगुदेशम पार्टी में  एनटीआर के खिलाफ उन्हीं के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने बगावत की और पार्टी पर कब्जा कर लिया. ऐसी ही घटना जयललिता के निधन के बाद 2017 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (AIADMK) में ओ पनीर सेल्वम ने शशिकला के खिलाफ बगावत की और पार्टी पर कब्जा किया. इसी कड़ी में अभी पिछले ही साल 2021 में राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में पासवान के बेटे चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर पशुपति कुमार पारस ने पार्टी पर अपना प्रभाव कायम किया. अलग-थलग पड़े चिराग को अपनी पार्टी का नाम तक बदलना पड़ा.  

 

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