मालेगांव ब्लास्ट केस: ATS अधिकारी शेखर बागड़े पर सबूत गढ़ने के आरोप, कोर्ट ने दिए जांच के आदेश

अदालत ने आदेश दिया कि शेखर बागड़े की संदिग्ध हरकत के साथ-साथ एक अन्य गंभीर मुद्दे की भी जांच की जाए.कोर्ट ने पाया कि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्र, जो कथित पीड़ितों की चोटों को दिखाते थे, वे एटीएस अधिकारियों के कहने पर गैर-मान्यता प्राप्त डॉक्टरों द्वारा जारी किए गए थे. ऐसे प्रमाणपत्रों को अदालत ने स्वीकार करने से मना कर दिया.

Advertisement
मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट ने ATS अधिकारी शेखर बागड़े के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं (File Photo: AFP) मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट ने ATS अधिकारी शेखर बागड़े के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं (File Photo: AFP)

विद्या

  • मुंबई,
  • 01 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 3:03 AM IST

मालेगांव 2008 ब्लास्ट केस में मुंबई की एक विशेष NIA कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए महाराष्ट्र एटीएस (ATS) के अधिकारी शेखर बागड़े के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने ये फैसला उस समय दिया जब एनआईए (NIA) की चार्जशीट में ये आरोप सामने आया कि बागड़े ने जानबूझकर एक आरोपी के घर में RDX के अंश रखे थे.

Advertisement

NIA ने 2011 में इस केस की जांच ATS से अपने हाथ में ली थी. अपनी जांच के बाद NIA  ने एक चार्जशीट दायर की, जिसमें उसने भोपाल की पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को क्लीन चिट दे दी थी. इसी चार्जशीट में दावा किया गया था कि एटीएस अधिकारी शेखर बागड़े ने मालेगांव ब्लास्ट में एक आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर में जबरदस्ती घुसकर RDX के अंश रखे थे. चतुर्वेदी एक सैन्य मुखबिर थे और नासिक के देवलाली कैंट इलाके में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित (रिटायर) के पास रहते थे. पुरोहित को भी इस मामले में RDX की आपूर्ति और बम बनाने के अलावा साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने माना कि एनआईए ने अपनी जांच में सेना के एक मेजर और एक सूबेदार की गवाही का हवाला दिया था. इन दोनों ने बताया कि चतुर्वेदी जब घर पर नहीं थे, तो बागड़े चोरी-छिपे उनके घर में घुसे और वहां आरडीएक्स के अंश छिपा दिए. मेजर और सूबेदार ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी को यह भी बताया कि बागड़े ने उनसे कहा था कि वे इस बारे में किसी से शिकायत न करें, लेकिन दो दिन बाद एटीएस की टीम ने उस घर पर छापा मारा और रुई के फाहे से मालेगांव ब्लास्ट में इस्तेमाल RDX जैसा पदार्थ बरामद किया.

Advertisement

ये भी पढ़ें- बाइक किसकी, RDX कहां से आया... जांच में कोर्ट को मिलीं वो 5 खामियां जिससे बरी हुए मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी
  
कोर्ट ने कहा कि बागड़े का यह कृत्य संदेह पैदा करता है. इसके अलावा एटीएस द्वारा इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. ऐसे में अदालत को लगा कि पूरा मामला 'फैक्ट प्लांटिंग' यानी जानबूझकर सबूत गढ़ने की संभावना की ओर इशारा करता है.

फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट पर भी सवाल

अदालत ने आदेश दिया कि शेखर बागड़े की संदिग्ध हरकत के साथ-साथ एक अन्य गंभीर मुद्दे की भी जांच की जाए.कोर्ट ने पाया कि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्र, जो कथित पीड़ितों की चोटों को दिखाते थे, वे एटीएस अधिकारियों के कहने पर गैर-मान्यता प्राप्त डॉक्टरों द्वारा जारी किए गए थे. ऐसे प्रमाणपत्रों को अदालत ने स्वीकार करने से मना कर दिया. इसके अलावा अदालत को यह भी पता चला कि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्रों में जानबूझकर हेराफेरी की गई थी. कोर्ट ने फर्जी मेडिकल प्रमाणपत्रों की जांच के भी निर्देश दिए.

ठोस सबूत नहीं मिले

बता दें कि मालेगांव ब्लास्ट का फैसला 1000 पन्नों से भी ज़्यादा लंबा है और इसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र की प्रमुख जांच एजेंसी एटीएस और केंद्रीय एजेंसी एनआईए को अपना मामला साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिल सके.

यह भी पढ़ें: मालेगांव 2008 ब्लास्ट केस: NIA कोर्ट ने कहा– सबूतों में खामियां, कई आरोप साबित नहीं हुए

Advertisement

कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायाधीश ने कहा कि यह दर्ज करना ज़रूरी है कि मैं समाज को हुई पीड़ा, हताशा और आघात की गंभीरता से पूरी तरह वाकिफ़ हूं. ख़ास तौर पर पीड़ितों के परिवारों को इस बात का एहसास है कि इस तरह के जघन्य अपराध के लिए कोई सज़ा नहीं मिली. हालांकि क़ानून अदालत को सिर्फ़ नैतिक विश्वास या संदेह के आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराने की इजाज़त नहीं देता. उन्होंने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता.कोर्ट को जन भावना के आधार पर नहीं, बल्कि सबूत के आधार पर काम करना होता है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement