बयानों पर बवाल, MVA से सियासी पंगा... भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से क्यों दिया इस्तीफा?

भगत सिंह कोश्यारी बतौर महाराष्ट्र गवर्नर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे. उन्होंने कई बार ऐसे बयान दिए, जिसको लेकर विवाद छिड़ गया और माफी तक मांगनी पड़ी. इसके साथ ही वह लगातार विपक्ष और खासकर महाविकास अघाड़ी के निशाने पर रहे. उन पर बीजेपी के इशारे पर काम करने के भी आरोप लगे.

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महाराष्ट्र के गवर्नर रहे भगत सिंह कोश्यारी (File Photo) महाराष्ट्र के गवर्नर रहे भगत सिंह कोश्यारी (File Photo)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है. उनकी जगह पर झारखंड के राज्यपाल रहे रमेश बैस को महाराष्ट्र में नियु्क्त किया गया है. दरअसल, कोश्यारी ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी. इसके लिए उन्होंने पत्र लिखकर पद मुक्त किए जाने की मांग की थी. इसके साथ ही उन्होंने ट्वीट कर लिखा था, 'पीएम मोदी की हाल ही की मुंबई यात्रा के दौरान मैंने उन्हें अपनी सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने और अपना शेष जीवन पढ़ने, लिखने और अन्य गतिविधियों में बिताने की अपनी इच्छा से अवगत कराया है. मुझे हमेशा पीएम मोदी से स्नेह मिला है और मुझे इस संबंध में भी ऐसा ही मिलने की उम्मीद है.'

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राज्यपाल की कुर्सी पर लगभग 3 साल रहे कोश्यारी इस छोटे से कार्यकाल में अपने बयानों और फैसलों से कई बार विवाद खड़ा कर चुके हैं. अपने कार्यकाल के दौरान महाविकास अघाड़ी के साथ भी उनकी तनातनी खुलकर नजर आई. वहीं उनके बयानों को लेकर विपक्ष लगातार उन पर निशाना साधता रहा और बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाता रहा. उन्होंने कई बार ऐसे बयान दिए, जिसको लेकर विवाद छिड़ गया और माफी तक मांगनी पड़ी. इसी साल जनवरी में उन्होंने महाराष्ट्र राजभवन में आयोजित जैन समुदाय के एक कार्यक्रम में कहा था कि भले ही इस पद पर उन्हें कोई खुशी नहीं है, लेकिन जब आध्यात्मिक नेता गवर्नर हाउस में आते हैं और वे ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है.

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को साल 2019 में महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. इससे पहले वह नैनीताल के सांसद भी रह चुके हैं. वह 2002 से 2007 तक वे उत्तराखंड विधानसभा में नेता विपक्ष रहे. फिर वर्ष 2008 से 2014 तक वे उत्तराखंड से राज्यससभा के सदस्य चुने गए थे. इसके बाद उन्हें महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल सी रविशंकर का कार्यकाल पूरा होने के बाद यहां का नया राज्यपाल नियु्क्त किया गया था. 

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दिन निकलते ही फडणवीस को दिलाई थी सीएम की शपथ

महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर भगत सिंह कोश्यारी का एक फैसला सबसे अधिक विवादों में रहा. जिसको लेकर वह विपक्ष के निशाने पर आ गए थे. कारण, 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद कोश्यारी ने 23 नवंबर, 2019 को तड़के देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई थी. हालांकि इसके तीन दिन बाद अजीत पवार के सरकार से अलग होने के बाद फडणवीस ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. 

उद्धव ठाकरे को एमएलसी बनाए जाने पर साध ली थी चुप्पी

राज्य में फडणवीस सरकार गिरने के बाद जब महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. 28 नवंबर 2019 को ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली. हालांकि तब उद्धव ठाकरे राज्य विधानसभा या विधान परिषद में से किसी के भी सदस्य नहीं थे और संविधान के मुताबिक सीएम या मंत्री को शपथ लेने के छह महीने के अंदर विधानसभा या विधानपरिषद में से किसी भी एक सदन की सदस्यता लेनी होती है. ऐसा न होने की स्थति में उसे पद से इस्तीफा देना पड़ता है. इसी मामले में शिवसेना की ओर से कोश्यारी को प्रस्ताव भेजा गया था, जिस पर राज्यपाल ने पूरी तरीके से चुप्पी साध ली थी. जिसके बाद शिवसेना और कोश्यारी में तनातनी देखने को मिली थी. हालांकि बाद में राजनीतिक दखल के चलते यह विवाद सुलझ गया था और ठाकरे को एमएलसी बनाया गया था.

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कांग्रेस विधायक की शपथ पर जताया था ऐतराज

गर्वनर के इस तरह शपथ कराने पर महाराष्ट्र में लंबे समय तक सियासत चली. वहीं इसके बाद उद्धव ठाकरे के मंत्रियों की शपथ के दौरान भी राज्यपाल से विवाद हो गया था. क्योंकि मंत्रियों के पद और गोपनीयता की शपथ लेने के दौरान कांग्रेस विधायक केसी पाडवी ने कुछ ऐसे शब्‍द कहे थे, जिससे राज्‍यपाल भगत सिंह कोश्‍यारी नाराज हो गए थे और उन्होंने पाडवी को नसीहत दी थी कि शपथ लेने की जो लाइनें निर्धारित हैं, उन्‍हें ही पढ़ें. 

शिवाजी महाराज पर बयान को लेकर घिरे थे कोश्यारी

पिछले साल कोश्यारी ने एक सार्वजनिक समारोह में मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज को 'पुराने समय का प्रतीक' कहकर विवाद खड़ा कर दिया था. इसके बाद राज्यपाल कोश्यारी की खूब आलोचना हुई थी. जिस पर उन्हें सफाई भी देनी पड़ी थी. इसके लिए उन्होंने अमित शाह को एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था, 'मैं देश के महापुरुषों का अपमान करने की बात सपने में भी नहीं सोच सकता. आज के कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति का उदाहरण देना महान नेताओं का अपमान नहीं हो सकता. मैं मुगल युग के दौरान साहस और बलिदान के प्रतीक महाराणा प्रताप, गुरु गोबिंद सिंहजी और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महापुरुषों का अपमान करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता.'

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गुजराती-राजस्थानी वाले बयान पर मांगनी पड़ी थी माफी

भगत सिंह कोश्यारी ने 29 जुलाई को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुंबई के विकास में गुजराती-राजस्थानी लोगों के योगदान की प्रशंसा कर विवाद खड़ा कर दिया था. जिस पर उन्हें माफी तक मांगनी पड़ी थी. अपनी सफाई में उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश के विकास में सभी का विशेष योगदान रहता है. संबंधित प्रदेश की उदारता व सबको साथ लेकर चलने की उज्ज्वल परम्परा से ही आज देश प्रगति की ओर बढ़ रहा है. मैंने महाराष्ट्र और मराठी भाषा का सम्मान बढ़ाने का पूरा प्रयास किया है लेकिन कार्यक्रम में भाषण देने के दौरान मुझसे कुछ भूल हो गई. महाराष्ट्र जैसे महान प्रदेश की कल्पना में भी अवमानना नहीं की जा सकती. इस राज्य सेवक को माफ कर जनता अपने विशाल हृदय का परिचय देगी.

बाल विवाह पर भी की थी टिप्‍पणी 

कोश्यारी ने पिछले साल मार्च 2022 में ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के बाल विवाह पर टिप्‍पणी की थी, जिस पर खूब बवाल मच था. कोश्यारी ने कहा था कि 'सावित्रीबाई की शादी 10 साल की उम्र में हुई थी और उनके पति उस समय 13 साल के थे. अब, इसके बारे में सोचें कि शादी करने के बाद लड़की और लड़का क्या सोच रहे होंगे. हालांकि इस बयान की भी कोश्यारी ने खंडन किया था.

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