महाराष्ट्र: उद्वव बनाम एकनाथ गुट मामले पर मेरिट के आधार पर 21 फरवरी से सुनवाई करेगा SC

नबाम रेबिया मामले में पिछली संविधान पीठ के फैसले पर विचार के लिए और बड़ी संविधान पीठ के पास इसे भेजे जाने की जरूरत से कोर्ट ने फिलहाल इनकार कर दिया है. साथ ही अब  सुप्रीम कोर्ट 21 फरवरी से उद्वव बनाम एकनाथ गुट के मुख्य मुद्दे पर मेरिट के आधार पर सुनवाई शुरू करेगी.

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सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट

संजय शर्मा

  • मुंबई,
  • 17 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 11:05 AM IST

महाराष्ट्र विधानसभा में अध्यक्ष और कुछ सदस्यों की अयोग्यता के मामले में दलीलों के मुख्य आधार नेबाम रेबिया पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव या सुधार पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई की. नबाम रेबिया मामले में पिछली संविधान पीठ के फैसले पर विचार के लिए और बड़ी संविधान पीठ के पास इसे भेजे जाने की जरूरत से कोर्ट ने फिलहाल इनकार कर दिया है. साथ ही अब  सुप्रीम कोर्ट 21 फरवरी से उद्वव बनाम एकनाथ गुट के मुख्य मुद्दे पर मेरिट के आधार पर सुनवाई शुरू करेगी. गुरुवार को ही संविधान पीठ ने उद्धव गुट बनाम शिंदे गुट के बीच अयोग्यता के मामले में नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित किया था.

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पहले सुनवाई के दौरान उद्धव गुट ने नबाम रेबिया फैसले के कुछ पहलुओं पर भी सवाल उठाया था और कहा था कि नबाम रेबिया फैसले के कुछ पहलुओं को 7 जजों के पास भेजा जाए. जबकि शिंदे गुट का कहना है कि नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है.

महाराष्ट्र विधानसभा में संवैधानिक संकट

शिवसेना में दोफाड़ की वजह से महाराष्ट्र विधानसभा में बढ़े संवैधानिक संकट पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी इस बात को अपवाद के तौर पर गंभीरता से लिया कि कोर्ट में अपनी बात रखते हुए पक्षकार बनाए गए राज्यपाल को राज्य और खास कर सदन में सरकार बनाने के लिए किए गए राजनीतिक गठजोड़ को लेकर कोई ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जिससे इस पद की गरिमा को ठेस पहुंचे.

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सुप्रीम कोर्ट में सुभाष देसाई बनाम प्रमुख सचिव, महाराष्ट्र सरकार मुकदमे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मुकेश आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ कर रही है. पीठ ने भी सवाल किया कि राज्यपाल राजनीतिक दलों के गठजोड़ और सरकार बनाने के लिए की गई जोड़तोड़ पर ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकते हैं?

दरअसल इस मामले में पक्षकार बनाए गए राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील देते हुए कह दिया कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य वही है जो 2019 में चुनाव पूर्व गठबंधन था. यानी चुनाव के पहले बीजेपी और शिवसेना का गठजोड़ था. लेकिन सरकार बनाने के लिए शिवसेना के तब के नेता उद्धव ठाकरे ने अपने चुनाव पूर्व धुर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिला लिया. ये शिवसेना के अधिकांश विधायकों को गवारा नहीं हुआ. क्योंकि आप चुनाव में वोटर के सामने अपनी अलग निजी पहचान लेकर नहीं बल्कि गठबंधन के तौर पर साझा विचारधारा की पहचान लेकर जाते हैं. वोटर उस विचार धारा के लिए वोट देता है जो आपने साझा प्रोजेक्ट किया है.

'हमने हॉर्स ट्रेडिंग जैसी बातें सुनीं'

राज्यपाल ने कोर्ट में कहा कि लेकिन जब अधिकांश विधायकों ने पार्टी नेता की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाई और मूल गठबंधन (बीजेपी शिवसेना) की ओर लौट चले तो हमने हॉर्स ट्रेडिंग जैसी बातें सुनीं. जबकि अस्तबल का अगुआ ही अपने धुर विरोधियों (कांग्रेस एनसीपी) के साथ मिलकर सरकार बनाने को उतावला हो गया. ये अंतरात्मा की आवाज और नैतिकता के तकाजे के कतई खिलाफ है विरुद्ध है.

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'राज्यपाल को राजनीतिक चक्रव्यूह में घुसने की जरूरत नहीं'

इस पर पहले तो ठाकरे गुट के वकील कपिल सिब्बल ने जोरदार आपत्ति दर्ज कराई और फिर पीठ ने भी कहा कि राज्यपाल की ओर से की गई ये टिप्पणी और दलील उचित नहीं है. पीठ ने कहा कि सरकार के गठन को लेकर राज्यपाल ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकते हैं? राज्यपाल की ऐसी टिप्पणी हम कैसे सुन सकते हैं? सीजेआई ने कहा कि हमारी समझ से तो राज्यपाल को राजनीतिक चक्रव्यूह में घुसने की जरूरत नहीं है. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.

2016 के एक फैसले में सुधार पर सुनवाई

कोर्ट फिलहाल तो 2016 में आए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के एक फैसले में सुधार को लेकर दी जा रही दलीलों पर सुनवाई कर रहा है. नबाम रेबिया बनाम स्पीकर मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर स्पीकर के खिलाफ अविश्वास की शिकायत यानी अयोग्यता की अर्जी विधायकों ने दे रखी हो तो उसे विधायकों को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू करने का अधिकार नहीं है. चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे सामने भी ये बेहद पेचीदा मसला है. क्योंकि मामला चित्त हो या पट दोनों ही स्थितियों के नतीजे अलग, अनपेक्षित और गंभीर होंगे. महाराष्ट्र के मामले में इसका एक पहलू है तो अन्य राज्यों में ये किसी और रूप में असर दिखाता है.

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