पत्नी को 'सेकंड हैंड' कहना पड़ा भारी... अब पति को देना होगा 3 करोड़ रुपये का मुआवजा, बॉम्बे HC से याचिका खारिज

पत्नी का मामला यह था कि नेपाल में हनीमून के दौरान पति ने उसे 'सेकंड हैंड' कहकर प्रताड़ित किया क्योंकि उसकी पिछली सगाई टूट चुकी थी. बाद में अमेरिका में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके साथ शारीरिक और भावनात्मक शोषण किया गया. पति ने उसके चरित्र पर लांछन लगाए और उसके अपने भाइयों पर भी अन्य पुरुषों के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया.

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 बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति की याचिका खारिज की (प्रतीकात्मक तस्वीर) बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति की याचिका खारिज की (प्रतीकात्मक तस्वीर)

विद्या

  • मुंबई,
  • 27 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:06 AM IST

अमेरिका में रहने वाले एक व्यक्ति की तलाक की याचिका को खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा उस महिला के आत्मसम्मान को प्रभावित करती है, जिसे हनीमून पर "सेकंड हैंड" कहा गया और उसके पति द्वारा उसके साथ मारपीट की गई. साथ ही हाईकोर्ट ने निचली के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें अलग रह रही पत्नी को 3 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था. 

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दरअसल, पति और पत्नी अमेरिका के नागरिक हैं. उनकी शादी 3 जनवरी, 1994 को मुंबई में हुई थी. एक और शादी अमेरिका में भी हुई थी, लेकिन 2005-2006 के आसपास वे मुंबई आ गए और एक घर में रहने लगे. पत्नी ने भी मुंबई में नौकरी की और बाद में अपनी मां के घर चली गई. 2014-15 के आसपास पति वापस अमेरिका चला गया और 2017 में उसने वहां की कोर्ट में तलाक के लिए मुकदमा दायर किया और पत्नी को समन भेजा गया. उसी वर्ष, पत्नी ने मुंबई मजिस्ट्रेट अदालत में घरेलू हिंसा (डीवी) अधिनियम के तहत एक याचिका दायर की. 2018 में, अमेरिका की एक कोर्ट ने जोड़े को तलाक दे दिया. 

पत्नी का मामला यह था कि नेपाल में हनीमून के दौरान पति ने उसे 'सेकंड हैंड' कहकर प्रताड़ित किया क्योंकि उसकी पिछली सगाई टूट चुकी थी. बाद में अमेरिका में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके साथ शारीरिक और भावनात्मक शोषण किया गया. पति ने उसके चरित्र पर लांछन लगाए और उसके अपने भाइयों पर भी अन्य पुरुषों के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया. कथित तौर पर पति ने उसे रात में तब तक सोने नहीं दिया जब तक उसने अवैध और व्यभिचारी संबंध होने की बात कबूल नहीं कर ली. 

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1999 पत्नी संग की थी मारपीट

नवंबर 1999 में पति ने कथित तौर पर उसे इतनी बेरहमी से पीटा था कि शोर सुनकर पड़ोसियों ने स्थानीय पुलिस को बुला लिया और उसे घरेलू हिंसा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. पत्नी ने कहा कि उसने पुलिस से शिकायत नहीं की थी, हालांकि पुलिस ने उसके चेहरे पर चोट के निशान देखे और स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले का संज्ञान लिया और उसके भाई के आवेदन के बाद उसे जमानत दे दी गई और पति को काउंसलिंग से गुजरना पड़ा. 

महिला ने यह भी बताया कि 2000 में जब उसके माता-पिता अमेरिका गए थे, उस समय उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन उसके पति ने उसे अपने पिता के साथ रहने की इजाजत नहीं दी. पत्नी ने दावा किया कि जब दंपती भारत लौटा, तब भी पति ने उस पर अन्य पुरुषों के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया, जो सामान देने के लिए आने वाले दूधवालों या सब्जी विक्रेताओं तक भी पहुंच गया. जब उसने इस बारे में मनोचिकित्सक से बात की तो पति के भ्रमित होने का पता चला.  हालांकि उसने दवा लेने से इनकार कर दिया.

2008 में दम घोंटने की कोशिश की

महिला का आरोप है कि 2008 में पति ने तकिए से उसका दम घोंटने की कोशिश की थी जिसके बाद वह अपनी मां के घर चली गई थी. उसने यह भी आरोप लगाया कि पति ने अपनी शादी के दौरान दूसरी महिला से शादी कर ली.  पति ने दलीलों का विरोध किया था, लेकिन चूंकि उसने खुद से जिरह नहीं की, इसलिए मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उसकी बात खारिज कर दी. दूसरी ओर, पत्नी की मां, भाई और चाचा ने उसके मामले का समर्थन करते हुए अदालत में गवाही दी थी.  

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2023 में मजिस्ट्रेट ने एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया कि महिला घरेलू हिंसा का शिकार हुई थी. जबकि ट्रायल कोर्ट ने पत्नी को मुंबई में दंपति के संयुक्त स्वामित्व वाले फ्लैट का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, अदालत ने पति को उसके रहने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने या घर के किराए के लिए उसे प्रति माह 75,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था. 

2017 में कोर्ट ने दिया था ये आदेश

अदालत ने पति को 2017 से भरण-पोषण के रूप में पत्नी को 1,50,000 रुपये प्रति माह और दो महीने के भीतर मुआवजे के रूप में तीन करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया था. 50 हजार रुपये का खर्च भी पति को देना पड़ा. 

इसके बाद पति ने निचली अदालत के आदेश को सत्र न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसने उसकी चुनौती खारिज कर दी. इसके बाद, उसने हाईकोर्ट के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की. लेकिन 3 करोड़ रुपये के मुआवजे को बरकरार रखते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा के कृत्य ने पत्नी के आत्मसम्मान को प्रभावित किया. 

न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख ने कहा, “वर्तमान मामले में माना जाता है कि दोनों पक्ष अच्छी तरह से शिक्षित हैं और अपने कार्यस्थल और सामाजिक जीवन में उच्च पद पर हैं. सामाजिक प्रतिष्ठा होने के कारण, घरेलू हिंसा के कृत्यों को पत्नी द्वारा अधिक महसूस किया जाएगा क्योंकि यह उसके आत्मसम्मान को प्रभावित करेगा. इसका यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि जीवन के अन्य क्षेत्रों से पीड़ित व्यक्ति अपने द्वारा झेली गई घरेलू हिंसा से प्रभावित नहीं होंगे. प्रत्येक मामले के तथ्यों पर संचयी प्रभाव को भी ध्यान में रखना होगा."

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