सिंहस्थ से जुड़े अपशकुन से बचने के लिए शिवराज को संघ का सहारा

बीजेपी का बड़ा नेता हो, मुख्यमंत्री हो या फिर अध्यक्ष संकट की घड़ी में संघ-संघ ही जपता है. इस समय कुछ ऐसी ही हालत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है. उसकी वजह राजनीतिक नहीं बल्कि शुभ-अशुभ शकुन- अपशकुन से जुडी मान्यता है. इसका सीधा ताल्लुक उज्जैन सिंहस्थ कुंभ से है.

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सिंहस्थ विचार महाकुंभ में सीएम शिवराज सिंह चौहान सिंहस्थ विचार महाकुंभ में सीएम शिवराज सिंह चौहान

केशव कुमार / रीमा पाराशर

  • उज्जैन,
  • 14 मई 2016,
  • अपडेटेड 7:53 PM IST

बीजेपी में हर डूबते नेता के लिए तिनके का सहारा अगर कहीं है तो सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास. पार्टी का बड़ा नेता हो, मुख्यमंत्री हो या फिर अध्यक्ष संकट की घड़ी में संघ-संघ ही जपता है. इस समय कुछ ऐसी ही हालत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है. उसकी वजह राजनीतिक नहीं बल्कि शुभ-अशुभ शकुन- अपशकुन से जुडी मान्यता है. इसका सीधा ताल्लुक उज्जैन सिंहस्थ कुंभ से है.

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सिंहस्थ से जुड़ा अद्भुत संयोग
सिंहस्थ कुंभ के साथ एक खास किस्म का संयोग जुड़ा हुआ है जो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए शुभ नहीं होता. राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी चलती रहती है क़ि सिंहस्थ के दौरान जो भी मुख्यमंत्री रहा, उसे कुर्सी से हाथ धोना पड़ा. चाहे कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हो या बीजेपी के सिंहस्थ में मुखिया को दोबारा शिप्रा में डुबकी लगाने का मौका नहीं मिला.

संघ के सिंहस्थ रोडमैप को जमीन पर उतारा
कुंभ में अपशकुन का यह दोष शिवराज सिंह को ना लगे इसके लिए मुख्यमंत्री संघ के सामने दंडवत करने की हर कोशिश में लगे हैं. कुंभ से पहले शिवराज ने नागपुर जाकर मोहन भागवत से मुलाकात की. संघ ने कुंभ के लिए जो रोडमैप दिया शिवराज ने उसे जस का तस अमल में उतारा. अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ में भारतीय परंपराओं और जीने की कला की थीम को सामने लाना संघ का पहला एजेंडा था जिसे सफल बनाने का बीड़ा शिवराज ने उठाया.

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शिवराज ने हासिल की संघ-बीजेपी की तारीफ
दलितों के साथ समरसता स्नान और संतों को उसके साथ जोड़ना भी इसी का हिस्सा था जिसे संघ हर हालत में पूरा करना चाहता था. इन कार्यक्रमों में कोई चूक ना रह जाए इसकी जिम्मेदारी खुद शिवराज ने संभाली और उज्जैन में ही डेरा जमा लिया. नतीजा ये निकला कि संघ ने शिवराज की पीठ थपथपाई और मंच से मोहन भागवत और अमित शाह ने उनकी तारीफ की. इस सबसे क्या शिवराज अपशकुन का मिथक तोड़ पाएंगे, ये सवाल फिलहाल नेता हो या अधिकारी सबकी जुबां पर है.

सीएम की कुर्सी पर भारी पड़ा सिंहस्थ
साल 1980 में जब जनता पार्टी सरकार में सुंदर लाल पटवा मुख्यमंत्री थे तो सिंहस्थ के बाद उनकी सरकार चली गई. 1992 के सिंहस्थ में भी पटवा मुख्यमंत्री थे, लेकिन सिंहस्थ के छह माह बाद ही मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया और उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. 2004 के सिंहस्थ के लिए दिग्विजय सिंह ने तैयारियां शुरू करवाईं लेकिन चुनाव में उन्हें पटखनी मिली और उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं. उमा ने सिंहस्थ पूरा तो करवाया लेकिन उन्हें भी बीच में ही पद छोडना पड़ा.

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